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मेंटल हेल्थ से संबंधित बीमारियों का इलाज सही समय पर करना बेहद जरुरी होता है। खासतौर से डिप्रेशन जैसी गंभीर समस्या से पीछा छुड़ाने के लिए जरुरी है कि व्यक्ति बेहतर डॉक्टर से अपना समय पर इलाज करवाए ताकि स्थिति को गंभीर होने से रोका जा सके।
वहीं बदलते समय के साथ मानसिक बीमारी जैसे डिप्रेशन या अन्य समस्याओं में दवाइयों के उपयोग में भी काफी बदलाव देखने को मिला है। किसी समय में जिन दवाइयों को लेकर कई तरह की भ्रांतियां लोगों के मन में फैली हुई थी वहीं अब ये काफी कम हो गई है। समय के साथ इन दवाइयों से होने वाले साइड इफैक्ट्स भी काफी मामूली हो गए है। माना जाता है कि डिप्रेशन या मेंटल हेल्थ से जुड़ी बीमारी में एंटी डिप्रेसेंट दवाइयों को खाने से पीड़ित की परेशानी कम होती है।
डिप्रेशन और मानसिक स्वास्थ्य में दी जाने वाली दवाईयों के संबंध में चाइल्ड एंड अडोलेसेंट साइकैट्रिस्ट डॉ. शिल्पा अग्रवाल ने बताया कि समय में आए बदलाव के साथ ही दवाओं का असर भी अलग हो गया है। दवाई दिए जाने का तरीका भी बदला है। आजकल काफी अधिक रिसर्च होने के कारण दवाइयों से होने वाले साइडइफेक्ट काफी कम हो गए है। पहले कई बार दवाओं के सेवन से व्यक्ति में कई तरह के साइड इफैक्ट देखने को मिलते थे, जिसमें हाथ-पैर में कंपन होना, पार्किंसंस होना, आदि शामिल है। हालांकि समय के साथ दवाओं की गुणवत्ता में सुधार हुआ और रिसर्च की बदौलत पीड़ित मरीज को होने वाले साइड इफैक्ट काफी कम देखने को मिलते है। वैसे मानसिक रोगों के लिए दवाइयों पर रिसर्च आज भी जारी है मगर इसके साइड इफेक्ट किसी अन्य बीमारी की तरह ही देखने को मिलते है।
इसमें वजन बढ़ना, हॉर्मोन्स में बदलाव होना शामिल है। मरीज अगर डाइट पर ध्यान ना दें तो भी दवाइयों के कुछ साइड इफैक्ट देखने को मिल सकते है। ऐसे में दवाइयों का सेवन जब भी मरीज शुरू करता है तो उसे नियमित रूप से डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लेकर मिलना होता है ताकि किसी गंभीर लक्षण पर डॉक्टर नजर रख सके।
दवाइयां जारी रखना जरुरी
कई गंभीर बीमारियों जैसे मेनिया, सिजोफ्रेनिया आदि में दवाईयों का सेवन मरीज को जीवनभर करना पड़ सकता है। ये दवाई भी उसी प्रकार हुई जैसे बीपी या शुगर की दवाई, तो मानसिक बीमारी की दवाई को लेकर आशंकित नहीं होना चाहिए। वहीं कई अन्य मानसिक बीमारियां जैसे डिप्रेशन, एंग्जायटी, स्ट्रेस से संबंधित मामलों में डॉक्टर की देखरेख में मरीज को छह से दो वर्षों के बीच दवाई लेनी पड़ सकती है। डॉक्टर मरीज का पूरा विश्लेषण करने, दवाई का असर देखने, इससे होने वाले गंभीर या मामूली साइडइफेक्ट आदि को देखने के बाद ही मरीज की दवाई में बदलाव करता है या जरुरत पड़ने पर दवाई को बंद करता है। मरीज को कभी खुद से लक्षण सामान्य दिखने पर दवाई का सेवन बंद नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से मरीज के लक्षण जल्द ही दोबारा उभर सकते हैं, जिसके कई गंभीर परिणाम भी देखने को मिल सकते है।