अक्सर ऐसा माना जाता है कि ‘बॉडी इमेज’ (शारीरिक छवि) से जुड़े मुद्दे मुख्यत: महिलाओं पर असर डालते हैं, लेकिन कुछ सर्वेक्षणों में अनुमान लगाया गया है कि 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के करीब 28 फीसदी पुरुष अपनी ‘बॉडी इमेज’ से आए दिन संघर्ष करते रहते हैं।
पुरुषों में बॉडी इमेज की समस्याएं अधिक होने के सबूत के बावजूद इस समस्या के बारे में जागरूकता की काफी कमी है। साथ ही उनकी मदद के लिए उपलब्ध सहायता की भी कमी है। जो ज्यादातर सहायता उपलब्ध है, वह अब भी महिलाओं पर केंद्रित है।
ऐसा नहीं हो सकता है कि इस उपलब्ध सहायता का इस्तेमाल पुरुष भी कर सकें, क्योंकि बॉडी इमेज से जुड़ी चिंताएं लैंगिक रूप से अलग-अलग होती हैं। महिलाओं के ऊपर उनका शरीर दुबला-पतला दिखने का दबाव होता है। पुरुषों के ऊपर ज्यादातर हृष्ट-पुष्ट और दुबला या बलिष्ठ दिखने का दबाव होता है।
अनुसंधान में दो वैकल्पिक पद्धतियों की पहचान की गयी है, जो पुरुषों को बॉडी इमेज संबंधी परेशानियों से उबारने में मददगार हो सकती हैं।
पहला तरीका मीडिया साक्षरता में सुधार लाना है। सोशल मीडिया और आदर्श शरीर वाले लोगों की तस्वीरें देखने का पुरुषों और महिलाओं दोनों के कुशलक्षेम और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता दिखायी दिया है।
मीडिया साक्षरता प्रशिक्षण में लोगों को सोशल मीडिया पर दिखायी देने वाली तस्वीरों की ‘‘सच्चाई’’ के बारे में शिक्षित किया जाता है। उन्हें इस बारे में बताया जा सकता है कि तस्वीरों से डिजिटल रूप से कैसे छेड़छाड़ की जा सकती है, यह दिखाया जा सकता है कि कैसे कृत्रिम रोशनी किसी वस्तु को दुबला दिखाने में इस्तेमाल की जा सकती है।
दूसरा तरीका लोगों की सोच में बदलाव लाना है। यह मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया लोगों को नकारात्मक विचार प्रवृत्तियों की पहचान करना और उन्हें सकारात्मक सोच से बदलने के बारे में सिखाती है।
उदाहरण के लिए, जब कोई सोशल मीडिया पर तस्वीरें देखता है तो उसे लग सकता है कि ‘‘मेरा शरीर इस व्यक्ति के मुकाबले भद्दा’’ दिखता है। लेकिन संज्ञानात्मक पुनर्गठन यानी सोच में बदलाव लाने का प्रशिक्षण उन्हें इन विचारों को पहचानने तथा कुछ अधिक सकारात्मक और तार्किक चीजों के बारे में सोचने में मदद करता है।
पहली चीज यह याद रखिए कि आप जो ऑनलाइन देखते हैं, वे असली नहीं है। सोशल मीडिया पर तस्वीरें आम तौर पर असल जिंदगी का सही प्रतिबिंब नहीं होती हैं और इंटरनेट इसके उदाहरणों से भरा पड़ा है।
दूसरा, सोशल मीडिया पर पोस्ट तस्वीरें देखते वक्त अपने आप में कोई राय बनाने को लेकर अधिक सचेत रहें। क्या वे सही हैं? क्या वे उचित है? क्या आप अपनी जरूरत से अधिक आलोचना कर रहे हैं? इन भावनाओं के बारे में जानना इनका आपके ऊपर असर कम करने की दिशा में पहला कदम है।
उम्मीद है कि इन विषय पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित कर, हम न केवल बॉडी इमेज समस्याओं का बेहतर निदान विकसित कर सकते हैं, बल्कि जागरूकता भी बढ़ा सकते हैं, जो पुरुषों के काम आ सकती हैं।