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फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी सहित उनकी मांगों पर दो केंद्रीय मंत्रियों के साथ बैठक बेनतीजा रहने के बाद, पंजाब के किसानों ने अपनी मांगों पर दबाव बनाने के लिए मंगलवार सुबह अपना ‘दिल्ली चलो’ मार्च शुरू किया था। किसानों की ओर से आंदोलन को फिर से जीवित किया जा रहा है जो 2021 में केंद्र के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने के बाद खत्म हो गया था। वह आंदोलन लगभग एक साल तक चला था। भारतीय किसान संघ (बीकेयू), जो संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) का हिस्सा है, ने किसानों की कई अधूरी मांगों का हवाला देते हुए शुक्रवार, 16 फरवरी को ग्रामीण भारत बंद का आह्वान किया है। इसका असर भी देखने को मिल रहा है। सरकार के साथ बातचीत के बाद भी किसानों के तेवर कम नहीं हो रहे हैं। हालांकि, यह बात भी सच है कि इस बार किसानों के प्रदर्शन को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं।
2020 में, किसानों ने तीन कृषि कानूनों का विरोध किया, जिसके कारण 2021 में उन्हें निरस्त कर दिया गया। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कानूनी गारंटी, स्वामीनाथन आयोग के फॉर्मूले को लागू करने, कर्ज माफी, पेंशन और पिछले विरोध के मामलों को वापस लेने की मांग को लेकर ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन शुरू किया गया है। 2020 के विपरीत, किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए कंटीले तारों, सीमेंट बैरिकेड्स और बाधाओं सहित सख्त सुरक्षा उपाय किए गए हैं। दिल्ली में धारा 144 लागू कर दी गई है और राज्यों के बीच की सीमाएं सील कर दी गई हैं। इस बार किसानों के दिल्ली से दूर ही रोकने की कोशिश है। 2020 में वे दिल्ली में दाखिल हो चुके थे। इस बार ‘दिल्ली चलो’ मार्च से पहले किसानों और सरकार के बीच बातचीत शुरू हो गई है। पहले ऐसा नहीं हुआ था। इस बार किसान संगठनों ने ‘दिल्ली चलो’ मार्च का भी आह्वान किया है। पिछली दफा आत्महत्या, खराब मौसम और कोविड-19 के कारण दर्जनों किसानों की मौत हो गई थी।
प्रमुख कृषि नेताओं, जिन्होंने 2020-21 में किसानों के विरोध का नेतृत्व किया था, ने इस साल आंदोलन से खुद को दूर कर लिया है। पिछले संयुक्त किसान मोर्चा से बना संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) पिछले तीन दिनों से पंजाब और हरियाणा में किसान विरोध 2.0 को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। योगेन्द्र यादव, जोगिंदर सिंह उगराहां, राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चादुनी, बलबीर सिंह राजेवाल, मंजीत राय, डॉ. दर्शन पाल, शिव कुमार कक्का और डॉ वीएम सिंह जैसे दिग्गज इस बार नदारद हैं। किसान मजदूर संघर्ष समिति के महासचिव सरवन सिंह पंढेर और भारतीय किसान यूनियन सिद्धूपुर के प्रधान जगजीत सिंह डल्लेवाल इसका नेतृत्व करते दिख रहे हैं।
चल रहे किसानों के विरोध के माध्यम से मौजूदा मांगों में फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सुनिश्चित करना, ऋण माफी, किसानों के खिलाफ मामलों को वापस लेना और आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करना शामिल है। हालाँकि, किसान नेताओं ने कई अन्य माँगें भी रखी हैं, जैसे किसानों से संबंधित डब्ल्यूटीओ समझौते को रद्द करना, बिजली संशोधन विधेयक 2020 को रद्द करना, प्रदूषण कानूनों से किसानों को छूट रखना और बिजली के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीटर लगाने का विरोध करना शामिल है। किसान यह भी चाहते हैं कि सरकार उनकी आय दोगुनी करने के वादे का सम्मान करे, उनकी शिकायत है कि पिछले कुछ वर्षों में खेती की लागत में वृद्धि हुई है जबकि आय स्थिर हो गई है, जिससे खेती घाटे का सौदा बन गई है।
जगजीत सिंह डल्लेवाल का एक बयान खूब वायरल हो रहा है जिससे उनके विरोध की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। एक वीडियो सामने आया है जिसमें जगजीत सिंह डल्लेवाल कह रहे हैं कि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ नीचे लाने के लिए किसानों का विरोध प्रदर्शन शुरू किया गया है। जगजीत सिंह दल्लेवाल ने कहा कि राम मंदिर के बाद पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ बहुत ऊपर चला गया है…बहुत कम समय है…उनके ग्राफ को कैसे नीचे लाया जा सकता है। दरअसल, लोकसभा चुनाव के तारीखों के ऐलान में एक महीने से भी कम का वक्त बचा हुआ है। ऐसे में कहीं ना कहीं यह किसान आंदोलन सरकार पर सिर्फ और सिर्फ दबाव बनाने की रणनीति है। साथ ही ऐसा प्रतीत होता है कि यह कहीं ना कहीं राजनीति से प्रेरित है। किसानों को इस बार भी विपक्ष का साथ मिल रहा है। हालांकि, पिछली बार जिन लोगों ने किसान आंदोलन का नेतृत्व किया था, उनके दूर रहने से इस बार सवाल उठ रहे हैं। डल्लेवाल की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि यह एक राजनीतिक बयान है। क्या इतना बड़ा विरोध प्रदर्शन होने पर लोग पीएम मोदी का समर्थन करना बंद कर देंगे? जनता में यह संदेश प्रसारित हो रहा है कि यह विरोध का सही तरीका नहीं है।