भारत के साथ साथ दक्षिण अफ्रीका में भी राष्ट्रपति चुनाव हुए। यहां पर 29 मई से आम चुनाव के लिए वोट डाले गए। दक्षिण अफ्रीका के सभी नौ राज्यों में वोटिंग हुई है लेकिन इस बार का चुनाव बहुत अलग है। कहा जा रहा है कि 30 सालों में ऐसा पहली बार होगा जब वहां की सबसे बड़ी पार्टी को बहुमत नहीं मिलेगा। मंडेला की बनाई अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस इस बार बहुमत से चूक सकती है। दक्षिण अफ्रीका की संसद में 400 सीटें हैं और किसी भी पार्टी को सरकार बनाने के लिए 201 सीटों की जरूरत होती है। अगर सरकार चला रही एएनसी को चुनाव के बाद बहुमत नहीं मिल पाता है तो राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा को दूसरे सहयोगी दलों का समर्थन हासिल करना होगा। ऐसी स्थिति में पहली बार ऐसा होगा जब देश में गठबंधन की सरकार बनेगी।
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दक्षिण अफ्रीका में इस बार सबसे अधिक 70 पार्टियां चुनावी मैदान में हैं। 2.78 करोड़ मतदाता इनके उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे। दक्षिण अफ्रीका में सत्तारूढ़ अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (एएनसी) को आम चुनाव में लगभग 43 प्रतिशत मत प्राप्त हुए जबकि विपक्षी डेमोक्रेटिक अलायंस को 26 प्रतिशत मत हासिल हुए। देश में 23 हजार मतदान केंद्रों पर जारी मतगणना के नवीनतम आंकड़ों में यह जानकारी सामने आई है। दक्षिण अफ्रीका में श्वेत अल्पसंख्यक नियंत्रण की रंगभेद प्रणाली समाप्त हुई और 1994 में लोकतंत्र की स्थापना हुई, तब से एएनसी सत्ता में बहुमत वाली पार्टी रही है और राष्ट्रपति पद पर काबिज रही है। यहां अफ्रीका के सबसे उन्नत देश में मुख्य चुनाव के लिए एक मार्गदर्शिका दी गई है और इस बार संसद के लिए राष्ट्रपति चुनना जटिल क्यों हो सकता है।
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अनुमान लगाया जा रहा था कि राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा के नेतृत्व वाली एएनसी 30 साल पहले नेल्सन मंडेला के निर्वाचित होने के बाद पहली बार अपना बहुमत खो सकती है। निर्वाचन आयोग द्वारा बृहस्पतिवार की सुबह 11 बजे साझा किये गये नतीजों के अनुसार एएनसी को लगभग 43 प्रतिशत मत मिले हैं। विपक्षी डेमोक्रेटिक अलायंस को 26 प्रतिशत वोट मिले और इकोनॉमिक फ्रीडम फाइटर्स (ईएफएफ) पार्टी लगभग आठ प्रतिशत वोट के साथ तीसरे स्थान पर है।