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लखनऊ । समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नजूल लैंड के मामले को पूरी तरह से ‘घर उजाड़ने’ का फैसला करार देते हुए शुक्रवार को मांग की है कि अमानवीय ‘नजूल जमीन विधेयक’ हमेशा के लिए वापस हो। सपा प्रमुख यादव ने शुक्रवार को सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर अपने एक पोस्ट में कहा, ‘‘नजूल लैंड का मामला पूरी तरह से ‘घर उजाड़ने’ का फैसला है क्योंकि बुलडोजर हर घर पर नहीं चल सकता है।’’ यादव ने कहा, ‘‘भारतीय जनता पार्टी घर-परिवार वालों के खिलाफ है। जनता को दुख देकर भाजपा अपनी खुशी मानती है।
जब से भाजपा आई है, जनता रोजी-रोटी-रोजगार के लिए भटक रही है, और अब भाजपाई मकान भी छीनना चाहते हैं।’’ सपा प्रमुख ने सवाल उठाया, ‘‘कुछ लोगों के पास दो जगह का विकल्प है, पर हर एक उनके जैसा नहीं है। बसे बसाए घर उजाड़ कर भाजपा वालों को क्या मिलेगा? क्या भू-माफियाओं के लिए भाजपा जनता को बेघर कर देगी?’’ सपा नेता ने कहा, ‘‘अगर भाजपा को लगता है कि उनका ये फैसला सही है तो हम डंके की चोट पर कहते हैं, अगर हिम्मत है तो इसे पूरे देश में लागू करके दिखाएं क्योंकि नजूल लैंड केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं पूरे देश में है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सपा की यही मांग है कि अमानवीय ‘नजूल जमीन विधेयक’ हमेशा के लिए वापस हो।’’ बाद में सपा मुख्यालय से जारी एक बयान में अखिलेश यादव ने आरोप लगाया, ‘‘मुख्यमंत्री जी ये विधेयक अपने निजी फायदे के लिए लाकर गरीबों की जमीनें हड़पना चाहते हैं। इस विधेयक का जनहित तथा विकास से कोई वास्ता नहीं है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘गोरखपुर में नजूल के अंतर्गत आने वाली बेशकीमती जमीनों पर मुख्यमंत्री की नजर है। मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी जी ने सोचा कि सत्ता का फायदा उठाकर उन जमीनों पर कब्जा लिया जाए, इसलिए ये विधेयक लाया गया है।’’ सपा प्रमुख ने कहा, ‘‘भाजपा की पहले गोरखपुर, अयोध्या फिर लखनऊ और धीरे-धीरे पूरे उत्तर प्रदेश की बेशकीमती नजूल भूमि पर कुदृष्टि है और गरीब जनता पर बुलडोजर चलाने की तैयारी है।’’
उन्होंने बयान में यह भी कहा, ‘‘ये जमीनें जनता से छीन कर बिल्डर, उद्योगपतियों को देने की साजिश है, चूंकि तमाम भाजपाई दिग्गजों की कोठियां, मकान, प्रतिष्ठान, बंगले भी नजूल में आ रहे हैं इसीलिए भाजपा के अंदर भी उसका विरोध हो रहा है।’’ उत्तर प्रदेश विधानसभा में बुधवार को उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (लोक प्रयोजनार्थ प्रबन्ध और उपयोग) विधेयक पारित किया गया लेकिन बृहस्पतिवार को विधान परिषद की मंजूरी नहीं मिली और सत्ता पक्ष के सदस्यों के प्रस्ताव पर ही इसे सदन की प्रवर समिति के पास भेज दिया गया। विधानसभा में बुधवार को पारित किए जाने से पहले इस पर सत्ता पक्ष के कुछ विधायकों ने भी इसमें संशोधन की जरूरत बताई थी। हालांकि, बाद में इसे ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। इस विधेयक को लेकर विपक्ष और सत्तापक्ष के कई सदस्यों ने असंतोष जाहिर किया है।