सुप्रीम कोर्ट ने जल निकायों में प्लास्टिक और अन्य अपशिष्ट पदार्थों की अनियंत्रित डंपिंग पर गंभीर चिंता व्यक्त की है, चेतावनी दी है कि यह प्रदूषण महत्वपूर्ण पर्यावरणीय गिरावट का कारण बन रहा है और जलीय जीवन को नुकसान पहुंचा रहा है। न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और एसवीएन भट्टी की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अधिकारियों के एकीकृत प्रयास और जनता के सहयोग के बिना, अवैध निर्माणों को संबोधित करने और गंगा सहित नदियों में पानी की गुणवत्ता में सुधार करने का कोई भी प्रयास “भ्रम” बना रहेगा।
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पीठ ने अपने 2 अगस्त के आदेश में कहा कि प्लास्टिक के डंपिंग से गंभीर पर्यावरणीय क्षति हो रही है और देश में नदी तटों और जल निकायों में जलीय जीवन पर भी असर पड़ रहा है। जब तक जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा लोगों के सहयोग से ठोस प्रयास नहीं किया जाता, अवैध/अनधिकृत निर्माणों को निशाना बनाने के प्रयासों के बावजूद, देश में गंगा नदी/अन्य सभी नदियों और जल निकायों में पानी की गुणवत्ता में वांछित सुधार भ्रम ही रहेगा।
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अदालत ने भारत सरकार और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी को आदेश में उल्लिखित पर्यावरणीय चिंताओं को संबोधित करते हुए एक हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया। अदालत ने वकील अजमत हयात अमानुल्लाह के माध्यम से प्रतिनिधित्व कर रहे बिहार को उसी समय सीमा के भीतर एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें पटना और उसके आसपास गंगा के किनारे अनधिकृत निर्माणों को संबोधित करने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण दिया गया हो।