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नयी दिल्ली। कांग्रेस ने देश में बिगड़ती वायु गुणवत्ता के लिए सोमवार को केंद्र सरकार पर नीतिगत खामियों का आरोप लगाया और कहा कि इस सरकार की कार्यप्रणाली स्पष्ट रूप से इस बात से इनकार करना है कि वायु प्रदूषण से जुड़ी मृत्यु दर की कोई समस्या है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्वतंत्रता बहाल की जानी चाहिए और पिछले 10 वर्षों में किए गए जन-विरोधी पर्यावरण कानून संशोधनों को वापस लिया जाना चाहिए।
रमेश ने एक बयान में कहा, ‘‘नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री के शासनकाल की ऐसी त्रासदियों में से एक जिनके बारे में कम लोग जानते हैं और वो राष्ट्रीय स्तर पर तेज़ी से बिगड़ती वायु गुणवत्ता और नीतिगत खामियां हैं।’’ उनके मुताबिक, जुलाई की शुरुआत में, प्रतिष्ठित जर्नल ‘लैंसेट’ में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला कि भारत में होने वाली मौतों में से 7.2 प्रतिशत वायु प्रदूषण से संबंधित हैं तथा केवल के 10 शहरों में हर साल लगभग 34,000 मौत हो रही हैं।
रमेश का कहना है कि जुलाई के मध्य में ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट’ के एक अध्ययन से पता चला कि प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में सरकार ग़लत ढंग से हस्तक्षेप कर रही है तथा राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) औद्योगिक, वाहन और बायोमास उत्सर्जन को नियंत्रित करने के बजाय सड़क की धूल को कम करने पर केंद्रित है। उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘इस सरकार की कार्यप्रणाली स्पष्ट रूप से इस बात से इनकार करना है कि वायु प्रदूषण से जुड़ी मृत्यु दर की कोई समस्या है। सरकार प्रदूषण को कम करने के लिए लक्षित कोष में कटौती कर रही है। वह आवंटित संसाधनों का उपयोग करने में विफल है।’’
कांग्रेस महासचिव ने कहा, ‘‘सबसे पहला कदम भारत के व्यापक हिस्से में वायु प्रदूषण से जुड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य के संकट को स्वीकार करना होगा। एनसीएपी के तहत उपलब्ध कराई जाने वाली धनराशि में वृद्धि की जाए।’’ रमेश ने सरकार से आग्रह किया, ‘‘एनसीएपी को वायु गुणवत्ता नियंत्रण के लिए एक क्षेत्रीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए तथा नगरपालिका और राज्य प्राधिकरणों के पास न्यायक्षेत्रों में सहयोग करने के लिए आवश्यक शासन वास्तुकला और संसाधन होने चाहिए।’’ उन्होंने यह भी कहा, ‘‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्वतंत्रता बहाल की जानी चाहिए और पिछले 10 वर्षों में किए गए जन-विरोधी पर्यावरण कानून संशोधनों को वापस लिया जाना चाहिए।