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रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध जारी है, जो भारत से कई हजार मीलों दूर लड़ा गया है। मगर इस युद्ध के कारण सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर कई आपूर्ति श्रृंख्लाओं को बाधित किया गया है। इसका सर्वाधिक असर ऊर्जा बाजार में देखने को मिला है। यहां भारत के आयात और मुद्रास्फिति पर काफी असर देखने को मिला है।
हालाँकि, इन वैश्विक समस्याओं के बाद भी भारत ने अपनी आर्थिक चुनौतियों के प्रबंधन में उल्लेखनीय लचीलापन प्रदर्शित किया है। सरकार ने न केवल मुद्रास्फीति के दबावों से निपटा है, बल्कि रणनीतिक कूटनीतिक प्रयासों और स्मार्ट आर्थिक नीतियों के माध्यम से तेल की कीमतों को अपेक्षाकृत स्थिर भी रखा है।
रूस-यूक्रेन संघर्ष ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया
फरवरी 2022 में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का वैश्विक व्यापार पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। खासकर तेल, गैस, गेहूं और उर्वरक के क्षेत्र में इसका असर दिखा है। रूस दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादकों में से एक है, और जैसे ही पश्चिमी देशों ने उस पर प्रतिबंध लगाए, वैश्विक तेल आपूर्ति कम हो गई। रूसी ऊर्जा पर यूरोपीय देश अधिक निर्भर रहते हैं, जिन्होंने विकल्प खोजने की शुरुआत भी कर दी है। ऐसे में अब वैश्विक स्तर पर मांग और अधिक बढ़ी है। इस कारण कीमतों में भी इजाफा हुआ है। भारत जो लगभग 80 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है, इस व्यवधान ने एक गंभीर आर्थिक खतरा पैदा कर दिया। इन समस्याओं के बाद भी भारत ने युद्ध से उत्पन्न चुनौतियों का कुशलतापूर्वक सामना किया है।
वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में उछाल के बाद भी भारत रूस से रियायती दरों में तेल खरीदने में सफल रहा है। इससे कीमतों में बढ़ोतरी का असर कम हुआ है। इसके अतिरिक्त, भारत ने पश्चिम के साथ अपने संबंधों और रूस से महत्वपूर्ण ऊर्जा आयात को बनाए रखा है। इस संतुलन को बनाए रखते हुए ही कूटनीतिक चैनलों का भारत ने बेहतरीन और प्रभावी ढंग से उपयोग किया है। ऐसी कदमों से ये भी सुनिश्चित हुआ है कि भारत में ईंधन की कीमतें बढ़ने के बाद भी ये अन्य देशों की तरह नियंत्रण से बाहर न हो जाएं।
वैश्विक अस्थिरता के बीच भारत ने तेल की कीमतों को ऐसे किया नियंत्रित
युद्ध के सबसे गंभीर परिणामों में से एक वैश्विक तेल की कीमतों में अस्थिरता रही है। इसमें 70 डॉलर से 120 डॉलर प्रति बैरल के बीच भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। ईंधन आयात पर भारी निर्भरता को देखते हुए, इस तरह के मूल्य उतार-चढ़ाव आसानी से भारत में गंभीर मुद्रास्फीति संकट का कारण बन सकते हैं। ईंधन की बढ़ती कीमतों का सीधा असर परिवहन लागत पर होता है। ये विनिर्माण से लेकर कृषि तक लगभग हर क्षेत्र को प्रभावित करता है। हालांकि, रियायती दरों पर रूसी तेल खरीदने के भारत के रणनीतिक फैसले ने इन झटकों के खिलाफ एक बफर के तौर पर काम किया है। मोदी सरकार ने भी इस मौका का फायदा उठाया है। इसके चलते रूस से तेल आयात को लगभग नगण्य स्तर से बढ़ाकर रूस को भारत के शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ताओं में शुमार है।
सोर्सिंग में इस बदलाव से भारत को स्थिर तेल आपूर्ति बनाए रखने में मदद मिली है। राहत देने के लिए भारत सरकार ने कई तरह की ईंधन सब्सिडी की भी शुरुआत की है, जिससे उपभोक्ताओं पर पड़ने वाला बोझ काफी कम हुआ है। हालांकि इन सब्सिडी ने अन्य कल्याणकारी कार्यक्रमों से पैसों को पुनर्निर्देशित किया। उन्होंने मुद्रास्फीति को और भी अधिक बढ़ने से रोका और लाखों भारतीय परिवारों को ईंधन की बढ़ती लागत से बचाया। ये केंद्र सरकार के सुनियोजित दृष्टिकोण का ही परिणाम है कि मुद्रास्फीति, जो अभी भी चिंता का विषय है, ऐसे स्तर तक न पहुंचे जो अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर दे।