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सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकार पर आपराधिक मामले दर्ज नहीं किए जा सकते, SC से UP के जर्नलिस्ट को मिली राहत

सुप्रीम कोर्ट ने 4 अक्टूबर को सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार के बारे में आलोचनात्मक लेखन के लिए पत्रकारों पर आपराधिक मामला नहीं दर्ज किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामले सिर्फ इसलिए नहीं थोपे जाने चाहिए क्योंकि उनके लेखन को सरकार की आलोचना माना जाता है। न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ उपाध्याय की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने अपने पत्रकारिता लेख को लेकर यूपी पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। उत्तर प्रदेश राज्य को नोटिस जारी करते हुए पीठ ने मामले को 5 नवंबर के लिए पोस्ट कर दिया।

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पीठ ने पत्रकारिता की स्वतंत्रता के संबंध में कुछ प्रासंगिक टिप्पणियाँ कीं। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि लोकतांत्रिक देशों में किसी के विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाता है। पत्रकारों के अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत संरक्षित हैं। केवल इसलिए कि एक पत्रकार के लेखन को सरकार की आलोचना, आपराधिक माना जाता है लेखक के खिलाफ मामले नहीं थोपे जाने चाहिए। अपनी याचिका के माध्यम से उपाध्याय ने यूपी पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के साथ-साथ अन्य स्थानों पर घटना के संबंध में दर्ज की गई अन्य एफआईआर को रद्द करने की मांग की है।

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याचिकाकर्ता का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान विपक्ष के नेता अखिलेश यादव द्वारा ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में इसकी सराहना किए जाने के बाद उनका लेख चर्चा का विषय बन गया। इसके बाद उन्हें ऑनलाइन धमकियां मिलनी शुरू हो गईं। ऐसी धमकियों के खिलाफ उन्होंने यूपी पुलिस के कार्यवाहक डीजीपी को एक ईमेल लिखा और उसे अपने ‘एक्स’ हैंडल पर पोस्ट किया।  

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