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Iran पर हमले का डर, इजरायल संग भयंकर युद्ध की आशंकाओं के बीच कहां पहुंची भारत की नौसेना

 1 अक्टूबर की रात ईरान ने इजरायल पर मिसाइल हमला किया था। इजरायल के आसमान में गूंजने वाले मिसाइलों के शोर ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। ईरान ने इस हमले को अपना पहला बदला बताया। इस हमले के बाद पूरे मीडिल ईस्ट में तनाव चरम पर है। कहा जा रहा है कि यहां के हालात कभी भी बिगड़ सकते हैं। ऐसे में कई देश कई तरह की तैयारियां कर रहे हैं। एक तस्वीर सामने आई है जिसे भारत की तैयारी के तौर पर देखा जा रहा है। एक तरफ भारत के कुछ शिप ईरान पहुंचे हुए हैं। वहीं दूसरी तरफ भारत के कुछ शिप ओमान में भी हैं। यानी की मीडिल ईस्ट में भारत इस वक्त काफी एक्टिव है। खासकर भारत की नौसेना औक कोस्ट गार्ड और इसकी बड़ी वजह भी है। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा कि ईरान ने ये मिसाइल दागकर बहुत बड़ी गलती की है। 

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ईरान को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। यानी इजरायल की तरफ से ईरान को जवाब दिया जाएगा। इजरायल के हमले के बाद कैसी स्थिति परिस्थिति होगी ये कोई नहीं जानता। यही वजह है कि सारे देश अपनी अलग अलग तरह की तैयारियां कर रहे हैं। हालांकि इस तरह की तैयारी को लेकर कोई तरह का बयान सामने नहीं आया है। लेकिन जानकारी के मुताबिक भारतीय नेवल शिप और इंडियन कोस्ट गार्ड शिप वीरा पहले ट्रेनिंग स्काड्रन के लिए भारतीय नेवी की तरफ से लॉन्ग रेंज ट्रेनिंग डिप्लॉयमेंट के लिए मस्कट ओमान पहुंचे। यहां उनका स्वागत किया गया और एक तरह से ये दोनों देशों के बीच मजबूत संबंधों को सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सशक्तता के साथ दर्शाता है। मैरिटाइम डेमोन में ओमान के साथ भारत के मजबूत रिश्तों में भी ये अहम किरदार निभाएगा। 

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भारतीय नौसेना बंदरगाह पर बातचीत, संयुक्त अभ्यास और प्रशिक्षण आदान-प्रदान सहित विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से ओमान की रॉयल नेवी के साथ जुड़ेगी। इन संलग्नताओं का उद्देश्य दोनों नौसेनाओं के बीच अंतरसंचालनीयता में सुधार करना और साझा समुद्री चुनौतियों से निपटने में अधिक सहयोग को बढ़ावा देना है। कर्मचारियों के बीच व्यावसायिक बातचीत और मैत्रीपूर्ण खेल आयोजन आदान-प्रदान को और समृद्ध करते हैं, जिससे सौहार्द की भावना पैदा करने में मदद मिलती है। यह तैनाती पिछले एक दशक में फर्स्ट ट्रेनिंग स्क्वाड्रन की ओमान की तीसरी यात्रा है, जो दोनों देशों के बीच नौसैनिक सहयोग के सुसंगत पैटर्न को प्रदर्शित करती है। इस तरह की संलग्नताएं परिचालन तालमेल को बढ़ाने और भविष्य की समुद्री चुनौतियों के लिए तैयारी सुनिश्चित करने में सहायक बन गई हैं। 

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