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देश के वीर जवानों की याद दिलाता Amar Jawan Jyoti युद्ध स्मारक, इंडिया गेट पर लौ रखने की भी है एक अलग कहानी

अमर जवान ज्योति एक ऐसा युद्ध स्मारक है, जिसकी परिकल्पना भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 के बाद की गई थी। इस स्मारक का अनावरण 26 जनवरी 1972 को किया गया था। यह उन अनगिनत सैनिकों की याद दिलाता है, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। अमर जवान ज्योति का मतलब है ‘अमर सैनिक ज्वाला’। फरवरी 2019 तक इसे भारत के राष्ट्रीय स्मारक के रूप में जाना जाता था। उसके बाद नई दिल्ली में एक नया राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनाया गया।
तीन साल पहले 21 जनवरी 2022 को अमर जवान ज्योति की पुरानी लौ को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में नई लौ के साथ मिला दिया गया। राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, अमर जवान ज्योति संरचना एक हेलमेट संरचना के साथ एक उलटी संगीन है। स्मारक राजसी कर्तव्य पथ और सेंट्रल विस्टा के मौजूदा लेआउट और समरूपता के साथ सामंजस्य का प्रतीक है।
स्मारक की बनावट
अमर जवान ज्योति स्मारक की संरचना में 4 फीट 3 इंच की ऊंचाई के साथ 15 वर्ग फीट का आधार शामिल है। जिसके आधार पर एक काले संगमरमर का कुरसी है जो 3 फीट 2 इंच ऊंचा है। इस कुरसी पर चारों तरफ सोने से हिंदी में “अमर जवान” शब्द लिखा है। अमर जवान ज्योति लौ के बारे में आपको जो कुछ भी जानना चाहिए इन ज्वालाओं को शाश्वत ज्वाला के रूप में जाना जाता था, और इसे किसी भी तरह से बुझने नहीं दिया जाता था।
इसकी लौ को हमेशा जलाए रखने की जिम्मेदारी मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विसेज के पास है। देश की स्वतंत्रता के बाद से भारतीय सशस्त्र बलों के 26,000 से अधिक सैनिकों ने देश की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी है। इस प्रकार राष्ट्रीय युद्ध स्मारक अपने सशस्त्र बलों के प्रति राष्ट्र की कृतज्ञता का प्रतिनिधित्व करता है। स्मारक हमारे नागरिकों में अपनेपन, उच्च नैतिक मूल्यों, बलिदान और राष्ट्रीय गौरव की भावना को मजबूत करने में भी मदद करता है। यह स्वतंत्रता के बाद से विभिन्न संघर्षों, संयुक्त राष्ट्र अभियानों, मानवीय सहायता और आपदा प्रतिक्रिया अभियानों के दौरान हमारे सैनिकों द्वारा दिए गए बलिदानों का प्रमाण है।
आखिर इसे क्यों रखा गया इंडिया गेट पर?
इंडिया गेट को अखिल भारतीय युद्ध स्मारक भी कहा जाता हैं और यह दुनिया के सबसे बड़े युद्ध स्मारकों में से एक हैं, जो प्रथम विश्व युद्ध और तीसरे एंग्लो अफगान युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना की ओर से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले भारतीय सैनिकों के याद में बनाया गया हैं। 
1914 से 1918 तक चले पहले विश्व युद्ध और 1919 में हुए तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध में करीब 90,000 भारतीय वीर जवानों ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी। 4 साल से भी अधिक समय चले पहले विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिशों ने एक लाख से भी अधिक भारतीय जवानों की नियुक्ति की थी। और इस दुर्भाग्यवश घटना में 70,000 से भी अधिक भारतीय सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की थी। इंडिया गेट के ऊपरी भाग में ब्रिटिश इंपीरियल कॉलोनी के प्रतिक के रूप में एक शिलालेख लिखा हुआ हैं और इस शिलालेख में अंग्रेज़ी में यह लिखा है।
“To the dead of the Indian armies who fell honoured in France and Flanders Mesopotamia and Persia East Africa Gallipoli and elsewhere in the near and the far-east and in sacred memory also of those whose names are recorded and who fell in India or the north-west frontier and during the Third Afgan War.”
स्मारक पर 13,000 से अधिक मृत सैनिकों के नामों का उल्लेख किया गया है। चूंकि यह युद्धों में मारे गए भारतीय सैनिकों के लिए एक स्मारक था, इसलिए इसके तहत अमर जवान ज्योति की स्थापना 1972 में सरकार द्वारा की गई थी।

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