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तीन तलाक मामले में अब तक कितनी हुई FIR? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगी जानकारी

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को तीन तलाक की घोषणा के लिए मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत दर्ज आपराधिक मामलों के बारे में डेटा प्रदान करने का निर्देश दिया। अदालत 2019 अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले मुस्लिम संगठनों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की खंडपीठ ने 1991 के मुस्लिम महिला (विवाह में अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली 12 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए लंबित तीन तलाक के मामलों और इससे पहले लंबित किसी भी चुनौती के बारे में भी पूछा। 

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पार्टियों को दोनों पक्षों की ओर से लिखित दलीलें दाखिल करनी होंगी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया, जांच करें और हमें दर्ज की गई एफआईआर की संख्या पर डेटा दें। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि कानून ने धार्मिक पहचान के आधार पर व्यक्तियों के एक वर्ग के लिए विशिष्ट दंडात्मक कानून पेश किया है। यह गंभीर सार्वजनिक शरारत का कारण है, जिसे अगर नियंत्रित नहीं किया गया तो समाज में ध्रुवीकरण और वैमनस्यता पैदा हो सकती है। उन्होंने आगे तर्क दिया कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने शायरा बानो मामले में पहले ही तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक घोषित कर दिया है, इसलिए कानून का कोई उद्देश्य नहीं है। 

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तर्क दिया गया है कि इस कानून के पीछे मंशा तीन तलाक को खत्म करना नहीं बल्कि मुस्लिम पतियों को सजा देना है। न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता केवल इस प्रथा के अपराधीकरण को चुनौती दे रहे थे और इस प्रथा का बचाव नहीं कर रहे थे।

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