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देश में जबरन धर्मांतरण का मुद्दा काफी गर्म है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार का रुख जानने की कोशिश की थी। अब केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में साफ तौर पर कहा है कि जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून बनाने के लिए कदम उठा रहे हैं। सरकार की ओर से जो जवाब दाखिल किया गया है उसके मुताबिक वह इस मुद्दे की गंभीरता से अवगत है। अपने जवाब में सरकार ने कहा कि धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार में दूसरे लोगों को धर्मांतरित करना शामिल नहीं है। केंद्र ने साफ तौर पर कहा है कि धार्मिक स्वतंत्रता का मतलब धोखाधड़ी, प्रलोभन व अन्य माध्यम से किसी दूसरे व्यक्ति का धर्म परिवर्तन कराना नहीं है।
केंद्र ने यह भी बताया है कि फिलहाल 9 राज्यों में इस तरह के कानून लागू है जिसमें ओडिशा, मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक तथा हरियाणा शामिल है। केंद्र के मुताबिक यहां धर्मांतरण कानून बना हुआ है। इसके अलावा केंद्र ने यह भी कहा है कि महिलाओं और आर्थिक तथा सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों सहित कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए इस तरह के अधिनियम की आवश्यकता है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने जबरन धर्मांतरण को ‘बहुत गंभीर’ मुद्दा करार देते हुए केंद्र से कहा था कि वह इसे रोकने के लिए कदम उठाए और इस दिशा में गंभीर प्रयास करे।
कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा था कि यदि जबरन धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो ‘‘बहुत मुश्किल स्थिति’’ पैदा होगी, क्योंकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिकों के धर्म और अंत:करण की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। न्यायमूर्ति एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा था कि सरकार प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के लिये उठाए गए कदमों के बारे में बताए। वहीं, धमकी या तोहफे और मौद्रिक लाभ का प्रलोभन देकर किये जाने वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में संशोधन का निर्देश देने के वास्ते उच्चतम न्यायालय में एक नयी अर्जी दायर की गई थी।