महिलाओं की एनजीओ में भर्ती पर रोक के आदेश के बाद तीन विदेशी गैर-सरकारी संगठनों ने रविवार से अफगानिस्तान में अपना कामकाज बंद कर दिया।
‘सेव द चिल्ड्रेन’, ‘नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल’ और ‘केयर’ ने कहा कि वे अपनी महिला कर्मचारियों के बिना अफगानिस्तान में जरूरतमंद बच्चों, महिलाओं और पुरुषों तक प्रभावी ढंग से नहीं पहुंच सकते हैं।
अफगानिस्तान में बिगड़ती मानवीय दशाओं के बीच ये तीन एनजीओ स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और बाल संरक्षण एवं पोषण संबंधी सेवाएं प्रदान करते हैं।
‘नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल’ की अफगानिस्तान प्रमुख नील टर्नर ने रविवार को कहा, ‘‘हमने सभी सांस्कृतिक मानदंडों का पालन किया है और हम अपनी समर्पित महिला कर्मचारियों के बिना काम नहीं कर सकते हैं, जो हमारे लिए उन महिलाओं तक पहुंचने के लिए आवश्यक हैं, जिन्हें सहायता की सख्त जरूरत है।’’
अफगानिस्तान में तालिबान सरकार ने शनिवार को महिलाओं के घरेलू और विदेशी एनजीओ में काम करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। साथ ही सभी गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को महिला कर्मचारियों की भर्ती नहीं करने का आदेश दिया था।
यह आदेश वित्त मंत्री कारी दीन मोहम्मद हनीफ के एक पत्र में आया था, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई एनजीओ आदेश का पालन नहीं करता है, तो अफगानिस्तान में उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा।
मंत्रालय ने कहा कि उसे एनजीओ के लिए काम करने वाली महिला कर्मचारियों के बारे में ‘‘गंभीर शिकायतें’’ मिली हैं, जो ‘‘सही तरह से हिजाब नहीं पहनती हैं।’’
तालिबान सरकार के उस हालिया आदेश की भी दुनिया भर में व्यापक निंदा की गई है, जिसमें महिलाओं के विश्वविद्यालय जाने पर रोक लगाई गई है।
अमेरिका ने अफगानिस्तान में एनजीओ में महिलाओं की नियुक्ति पर रोक संबंधी आदेश को लेकर तालिबान की निंदा करते हुए कहा है कि इस पाबंदी के कारण लाखों लोगों को जीवन रक्षक सहायता में व्यवधान उत्पन्न होगा।
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने शनिवार को कहा, ‘‘दुनियाभर में महिलाएं मानवीय सहायता संचालन के केंद्र में हैं। यह (गैर सरकारी संगठनों में भर्ती पर रोक का) फैसला अफगान लोगों के लिए विनाशकारी होगा।’’
वहीं, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कहा कि वह पाबंदी की इस खबर से बहुत परेशान हैं। उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘संयुक्त राष्ट्र तथा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों समेत उसके साझेदार 2.8 करोड़ से अधिक अफगानों की मदद कर रहे हैं, जो जीवित रहने के लिए मानवीय सहायता पर निर्भर हैं।’’
गौरतलब है कि पिछले साल तालिबान के सत्ता में काबिज होने से अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी और लाखों लोग गरीबी एवं भुखमरी की स्थिति में पहुंच गये हैं।