त्रिपुरा के खोआई जिले में अठारामुरा की पहाड़ियों पर स्थित मोंतांग अपनी सुदंरता की वजह से पर्यटकों के लिए नया आकर्षण का केंद्र बन रहा है।
हाल में ही मोंतांग का दौरा करकर लौटे त्रिपुरा विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के शिक्षक प्रसन्नजीत देबनाथ बताते हैं कि इस पहाड़ी को देखने के लिए स्थानीय निवासी और पर्यटक बड़ी तादाद में आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि त्रिपुरा के स्थानीय लोग इसे ‘शांति का पहाड़’ कहते हैं जिसपर बादल घुमड़ते नजर आते हैं।
चकमाघाट बैराज के नजदीक राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 से पतली सड़क करीब 30 किलोमीटर दूर अठारामुरा पहड़ी तक जाती है।
यह स्थान त्रिपुरा की राजधानी से करीब 80 किलोमीटर दूर है।
यह स्थान उस समय चर्चा में आया जब फिल्मकार के पेशे से राजनीति में आए कमल कलाई ने बांस से बने घरों पर वृत्तचित्र ‘टोंग घर’ बनाया जिनमें वह स्वयं समय बिताकर लौटे थे।
स्वयं आदिवासी समुदाय से आने वाले कलाई ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘रोजाना की व्यस्त जिंदगी से दूर कुछ समय निकालकर मैंने टोंग घर में बिताने का सोचा। मैंने सोचा कि ‘झूम खेती’ से एकत्र चावल और सब्जियों को पकाऊंगा और पहाड़ी पर बहने वाली छोटी नदियों से मछली पकड़ कर पकाऊंगा।’’
उन्होंने बताया कि वहां की तस्वीरें सोशल मीडिया पर आने के बाद उक्त स्थान पर्यटल स्थल बना गया और बड़ी संख्या में यात्री और प्राकृति प्रेमी आने लगे।
कलाई पिछले साल अप्रैल में चुनाव जीतने के बाद अब त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्रीय स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) के सदस्य हैं। इस परिषद के अंतर्गत राज्य के दो तिहाई इलाके आते हैं।
आदिवासी परिषद का कार्यकारी सदस्य बनने के बाद उन्हें प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत कोष मिला जिससे उन्होंने राष्ट्रीय राजमार्ग आठ से मोंतांग तक सडक़ बनाई जो उनके निर्वाचन क्षेत्र में आता है और ‘टोंग घर’ वहां बनाया।
कलाई ने कहा, ‘‘मेरा सपना उसे पूर्ण पर्यटन स्थल बनाने का है। टीटीएएडीसी के पास पर्याप्त धन खर्च करने के लिए नहीं है। इसलिए मैं चाहता हूं कि राज्य पर्यटन विभाग वहां के विकास पर ध्यान दे। कानून व्यवस्था को भी देखा जाना चाहिए क्योंकि लोग इस स्थान को देखने के लिए लगातार आ रहे हैं।