सिंधु जल संधि को लेकर भारत और पाकिस्तान में विवाद लगातार जारी है। इन सब के बीच भारत ने कहा कि विश्व बैंक को न्यूट्रल एक्सपर्ट अप्वाइंट करने और कोर्ट ऑफ आरबिट्रेशन की प्रक्रिया शुरू करने संबंधी निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। बता दें कि पिछले हफ्ते, भारत ने विवादों से निपटने में इस्लामाबाद की “हठधर्मिता” के बाद सीमा पार नदियों के प्रबंधन के लिए 62 वर्षीय सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) की समीक्षा और संशोधन की मांग करते हुए पाकिस्तान को एक नोटिस जारी किया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि वे (विश्व बैंक) हमारे लिए संधि की व्याख्या करने की स्थिति में हैं। यह हमारे दोनों देशों के बीच एक संधि है और संधि के बारे में हमारा आकलन है कि इसमें श्रेणीबद्ध दृष्टिकोण का प्रावधान है।
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विश्व बैंक द्वारा किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं पर मतभेदों को हल करने के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता अदालत के अध्यक्ष की नियुक्ति की घोषणा के महीनों बाद भारत ने पाकिस्तान को नोटिस भेजने का महत्वपूर्ण कदम उठाया और संधि में संशोधन करने के अपने इरादे से अवगत कराया। नई दिल्ली विशेष रूप से मध्यस्थता अदालत की नियुक्ति पर निराश हुई है। बागची ने मामले पर एक सवाल का जवाब देते हुए एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि भारत के सिंधु जल आयुक्त ने 25 जनवरी को अपने पाकिस्तानी समकक्ष को 1960 की सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए एक नोटिस जारी किया था। उन्होंने कहा, “यह नोटिस पाकिस्तान को संधि के चल रहे भौतिक उल्लंघन को सुधारने के लिए सरकार से सरकार की बातचीत में प्रवेश करने का अवसर प्रदान करने के इरादे से जारी किया गया था।
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बागची ने कहा कि भारत ने पाकिस्तान से 90 दिनों के भीतर संधि के अनुच्छेद 12 (III) के तहत अंतर-राज्यीय द्विपक्षीय वार्ता शुरू करने के लिए एक उपयुक्त तिथि अधिसूचित करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “मुझे अभी तक पाकिस्तान की प्रतिक्रिया की जानकारी नहीं है। मुझे विश्व बैंक द्वारा किसी भी प्रतिक्रिया या टिप्पणी की जानकारी नहीं है।” विश्व बैंक की भूमिका प्रक्रियात्मक है और यह सीमा पार नदियों से संबंधित मुद्दों पर भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेदों के मामले में तटस्थ विशेषज्ञों या मध्यस्थता अदालत के अध्यक्ष की नियुक्ति करता है।