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जिस लता मंगेशकर को पूरी दुनिया चाहती थी, आखिर वो क्यों रहीं जिंदगी भर अकेली? क्यों नहीं की सुर साम्राज्ञी ने शादी

लता मंगेशकर ऐसी प्रख्यात गायिका जिनकी पूरे विश्व में एक अलग पहचान थी। दीदी के कंठ से निकली हुई आवाज लोगों के दिलों को छू जाती है। ऐसी प्रख्यात गायिका जिनकी पूरे विश्व में एक अलग पहचान थी। वतन की आवाज ‘लता’, भक्ति की आवाज ‘लता’, शक्ति की आवाज ‘लता’, मोहब्बत की आवाज ‘लता’, बिछड़न की आवाज ‘लता’, ऐतबार की आवाज ‘लता’…. लता मंगेशकर संगीत की दुनिया का ऐसा नाम है जिनके योगदान को सदियों तक नहीं भुलाया जा सकता है। हिंदी सिनेमा में लता मंगेशकर जैसी आवाज और सुर किसी के नहीं रहे। लता मंगेशकर को इसी वजह से सुरो की रानी कहा जाता हैं। आज भले ही वह हम सबसे बीच नहीं है लेकिन उनके गाने हमेशा हमारे जहन में रहेंगे। लता मंगेशकर जी की आवाज में ना सिर्फ खनक थी बल्कि वह रुहानियत भी थी जो हर किसी को उनका कायल बना दे। फिल्म संगीत के 70 साल के कॅरियर में लता ने हर पीढ़ी को अपनी आवाज से आकर्षित किया। मीना कुमारी और नरगिस से लेकर काजोल और रानी मुखर्जी तक, हर दौर की हीरोइन, हर उम्र की हीरोइन उनकी आवाज में खुद को डालने के लिए बेताब रहती हैं। लता मंगेशकर हम सबके बीच रही हैं, आज भी हैं और आगे भी रहेंगी। उनकी आवाज में वह जादू था जिसे किसी के लिए भी भूल पाना मुमकिन नहीं। महज 13 साल की ही उम्र में गाने की शुरुआत करने वाली लता मंगेशकर उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी खुद को संगीत के प्रति समर्पित रखा। 
 

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36 भारतीय भाषाओं में गाना गाने का बनाया रिकॉर्ड
स्वर कोकिला और भारत रत्न स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने 36 भारतीय भाषाओं में गाने रिकॉर्ड किए हैं। महज 11 साल की उम्र से ही उनके गाना गाने की शुरूआत हो गई थी। उन्होंने 1943 में मराठी फिल्म गजाभाऊ में हिन्ही गाना माता एक सपूत की दुनिया बदल दे गाया था। बता दें कि यह लता का पहला गाना था। दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड के साथ-साथ उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया। अपने सरल और निर्मल स्वभाव के कारण ही लता जी को दीदी कहकर पुकारा जाता था। आइये जानते है लता जी से जुड़ी कुछ अनकहे किस्सों के बारे में।
 

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लताजी की बचपन
लताजी का जन्म 28 सितंबर, 1929 इंदौर, मध्यप्रदेश में हुआ था। उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर एक कुशल रंगमंचीय गायक थे। लता का पहला नाम ‘हेमा’ था, मगर जन्म के 5 साल बाद माता-पिता ने इनका नाम ‘लता’ रख दिया था और इस समय दीनानाथजी ने लता को तब से संगीत सिखाना शुरू किया। उनके साथ उनकी बहनें आशा, ऊषा और मीना भी सीखा करतीं थीं। लता हमेशा से ही ईश्वर के द्वारा दी गई सुरीली आवाज, जानदार अभिव्यक्ति व बात को बहुत जल्द समझ लेने वाली अविश्वसनीय एवं विलक्षण क्षमता का उदाहरण रहीं हैं। इन्हीं विशेषताओं के कारण उनकी इस प्रतिभा को बहुत जल्द ही पहचान मिल गई थी। लेकिन पांच वर्ष की छोटी आयु में ही आपको पहली बार एक नाटक में अभिनय करने का अवसर मिला। शुरुआत अवश्य अभिनय से हुई किंतु आपकी दिलचस्पी तो संगीत में ही थी। इस शुभ्रवसना सरस्वती के विग्रह में एक दृढ़ निश्चयी, गहन अध्यवसायी, पुरुषार्थी और संवेदनशील संगीत-साधिका-आत्मा निवास करती है। उनकी संगीता-साधना, वैचारिक उदात्तता, ज्ञान की अगाधता, आत्मा की पवित्रता, सृजन-धर्मिता, अप्रमत्तता और विनम्रता उन्हें विशिष्ट श्रेणी में स्थापित करती है। 
 
संघर्षपूर्ण रहा बचपन
लताजी के पूर्वजों का पुण्य प्रबल था और उसी पुण्य की बदौलत बचपन के संघर्षपूर्ण हालातों में किसी सज्जन व्यक्ति की प्रेरणा से मास्टर विनायक की ‘प्रफुल्ल पिक्चर्स’ संस्था में लता को प्रवेश मिल गया। उस संस्था ने ‘राजाभाऊ’, ‘पहली मंगल गौर’ ‘चिमुक संसार’ जैसे मराठी चित्रों में छोटी-छोटी भूमिकाएं मिलीं, जिन्हें लताजी ने बड़ी खूबी से निभाया। लताजी का लक्ष्य अभिनय की दुनिया नहीं था, वे संगीत की दुनिया में जाना चाहती थी। सौभाग्य से उन्हें पितृतुल्य संरक्षण और स्नेह देनेवाले गुरु खां साहब अमान अली मिल गए। उन्होंने डेढ़ साल तक लताजी को तालीम दी। तब लताजी ने हिन्दी-उर्दू का अभ्यास कर उच्चारण-दोष दूर करने का प्रयास शुरू कर दिया उनकी इस श्रम-साधना ने ही उन्हें यशस्वी गायिका बनाकर सफलता के सुमेरु पर पहुंचाया। हैदर साहब ने उन्हीं दिनों बाम्बे टाकीज में बन रही फिल्म ‘मजबूर’ के लिए उन्हें पाश्र्वगायिका के रूप में लिया। ‘मजबूर’ के गाने बड़े लोकप्रिय हुए और यहीं से लताजी का भाग्योदय शुरू हुआ। एक गुलाम हैदर ही क्या, 1947 से 2021 तक शायद एक भी ऐसा संगीत-निर्देशक नहीं होगा, जिसने लता से कोई न कोई गीत गवाकर अपने आपको धन्य न किया हो।
क्यों नहीं की कभी शादी
हर फैंस के जहन में ये सवाल तो होगा कि आखिर लता जी ने किसी से शादी क्यों नहीं की? कहते हैं लता मंगेशकर को कभी किसी से प्यार हुआ था लेकिन ये लवटस्टोरी अधूरी ही रह गई और यहीं कारण है कि लता ने शादी नहीं की। खबरों के माने तो लता मंगेशकर को डूंगरपुर राजघराने के महाराजा राज सिंह से प्यार हो गया था। राज, लता के भाई ह्रदयनाथ मंगेशकर के दोस्त थे। कहा जाता है कि राज ने अपने माता-पिता से वादा किया था कि वह किसी भी आम घर की लड़की को उनके घराने की बहू नहीं बनाएंगे। राज ने ये वादा मरते दम तक निभाया। वहीं लता के ऊपर घर की पूरी जिम्मेदारी थी और इसलिए उन्होंने कभी शादी नहीं की और लता की तरह राज भी जीवन भर अविवाहित रहे। राज, लता से 6 साल बड़े थे और राज को क्रिकेट का बहुत शौक था और इसलिए वे कई सालों तक बीसीसीआई से जुड़े रहे। 
लता को मिट्ठू कहकर पुकारते थे
आपको बता दें कि महाराजा प्यार से लता को मिट्ठू कहकर बुलाते थे और उनके जेब में हमेशा एक टेप रिकॉर्डर रहता था जिसमें वह लता के चुनिंदा गाने सुनते थे। बता दें कि लता का नाम राज सिंह के अलावा किसी और के साथ नहीं जुड़ा। लता मंगेशकर ने छोटी बहन को पढ़ाने के लिए खुद की पढ़ाई छोड़ी दी थी। अपने पिता के साथ मराठी संगीत नाटक में काम कर रही लता ने 14 साल की उम्र में बड़े कार्यक्रमों में अभिनय करना शुरू कर दिया था। लता अपने सभी भाई-बहनों में सबसे बड़ी थी।
जब पिता की भविष्यवाणी हुई सच
जब पिता को पता चला कि लता गाती है तो उसके बाद वह पिता से संगीत सीखने लगी। छोटे भाई हृदयनाथ केवल चार साल के थे जब पिता की मौत हो गई। उनके पिता ने बेटी को भले ही गायिका बनते नहीं देखा हो, लेकिन लता के लिए पहले से ही बड़ी भविष्यवाणी कर चुके थे। लता के मुताबिक, उनके पिता ने भविष्यवाणी कर दी थी कि वो बहुत सफल होंगी और लता जी ये मानती थी कि अगर उनके पिता जिंदा होते तो वे गायिका कभी नहीं बन पाती क्योंकि संगीतकार बनने की इजाजत उन्हें कभी भी नहीं मिलती।
भारत रत्न लता मंगेशकर, भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका हैं, जिनका आठ दशकों का कार्यकाल विलक्षण एवं आश्चर्यकारी उपलब्धियों से भरा पड़ा है। हालांकि लताजी ने लगभग तीस से ज्यादा भाषाओं में 30 हजार से ज्यादा फिल्मी और गैर-फिल्मी गाने गाए हैं लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पाश्र्वगायक के रूप में रही है। सन 1974 में दुनिया में सबसे अधिक गीत गाने का ‘गिनीज बुक रिकॉर्ड’ उनके नाम पर दर्ज है। उनकी जादुई आवाज के दीवाने भारतीय उपमहाद्वीप के साथ-साथ पूरी दुनिया में हैं। टाईम पत्रिका ने उन्हें भारतीय पाश्र्वगायन की अपरिहार्य और एकछत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। वे फिल्म इंडस्ट्री की पहली महिला हैं जिन्हें भारत रत्न और दादा साहब फाल्के पुरस्कार प्राप्त हुआ। वर्ष 1974 में लंदन के सुप्रसिद्ध रॉयल अल्बर्ट हॉल में उन्हें पहली भारतीय गायिका के रूप में गाने का अवसर प्राप्त है। उनकी आवाज की दीवानी पूरी दुनिया है। उनकी आवाज को लेकर अमेरिका के वैज्ञानिकों ने भी कह दिया कि इतनी सुरीली आवाज न कभी थी और न कभी होगी। भारत की ‘स्वर कोकिला’ लता मंगेशकर की आवाज सुनकर कभी किसी की आंखों में आंसू आए, तो कभी सीमा पर खड़े जवानों को हौंसला मिला। वे न केवल भारत बल्कि दुनिया के संगीत का गौरव एवं पहचान है।

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