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Bihar : गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन सहरसा जेल से रिहा

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) जी. कृष्णैया की करीब तीन दशक पहले हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन को बृहस्पतिवार सुबह बिहार की सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया।
गैंगस्टर से नेता बने मोहन की रिहाई ‘जेल सजा छूट आदेश’ के तहत हुई है। हाल में बिहार सरकार ने जेल नियमावली में बदलाव किया था, जिससे मोहन समेत 27 अभियुक्तों की समयपूर्व रिहाई का मार्ग प्रशस्त हुआ।
गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी कृष्णैया की हत्या के मामले में मोहन को दोषी ठहराया गया था।

वर्ष 1994 में मुजफ्फरपुर के गैंगस्टर छोटन शुक्ला की शवयात्रा के दौरान आईएएस अधिकारी कृष्णैया की हत्या कर दी गई थी।
तेलंगाना से ताल्लुक रखने वाले कृष्णैया अनुसूचित जाति से थे।
अक्टूबर 2007 में एक स्थानीय अदालत ने मोहन को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन दिसंबर 2008 में पटना उच्च न्यायालय ने मृत्युदंड को उम्रकैद में बदल दिया था। मोहन ने निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
नीतीश कुमार नीत बिहार सरकार ने 10 अप्रैल को बिहार जेल नियमावली, 2012 में संशोधन किया था और उस उपबंध को हटा दिया था, जिसमें कहा गया था कि ‘ड्यूटी पर कार्यरत लोकसेवक की हत्या’ के दोषी को उसकी जेल की सजा में माफी/छूट नहीं दी जा सकती।

आलोचकों का कहना है कि मोहन की रिहाई में मदद के लिए ऐसा किया गया। वहीं, मोहन के समर्थकों का मानना है कि उनके नेता को कृष्णैया की हत्या के मामले में ‘‘फंसाया’’ गया था।
सरकार के इस कदम से राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद एवं पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के समर्थन से सत्ता में बने रहने के लिए कानून की बलि चढ़ा दी।
दिवंगत आईएएस अधिकारी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने आनंद मोहन को रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले पर निराशा जाहिर की है। आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन ने भी मोहन की रिहाई के कदम की आलोचना की है।

इस बीच, सरकार का पक्ष रखते हुए मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि मोहन की रिहाई नियमानुसार हुई है।
सुबहानी ने दावा किया, ‘‘किसी को कोई विशेष लाभ नहीं दिया गया है। सामान्य प्रक्रिया के तहत कारागार के नियमों में समय-समय पर संशोधन किया जाता है। ड्यूटी पर सरकारी कर्मचारी के बारे में खंड हटा दिया गया क्योंकि यह भेदभावपूर्ण पाया गया था। इसके अलावा, हमने पाया कि कोई अन्य राज्य इस तरह के हत्या मामलों से अलग तरह से नहीं निपटता है।’’

उन्होंने बताया कि मोहन ने 15 साल, नौ महीने और 25 दिन जेल में बिताए, लेकिन इस सवाल को टाल दिया कि क्या कृष्णैया के परिवार के सदस्यों को मोहन की रिहाई के खिलाफ आपत्तियां उठाने का मौका दिया गया था।
मोहन ने उनकी रिहाई का कृष्णैया की पत्नी और आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन द्वारा किये जा रहे विरोध पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।
मोहन ने सोमवार को सहरसा रवाना होने से पहले पटना में संवाददाताओं से कहा था, ‘‘चाहे कृष्णैया की पत्नी हों या आईएएस ऑफिसर्स एसोसिएशन, मैं सभी लोगों को प्रणाम करता हूं। इस समय मैं कुछ भी नहीं कहना चाहता। जब मैं बाहर आऊंगा, तब मुझे जो भी कहना होगा, मैं कहूंगा।’’

आनंद मोहन की रिहाई को बिहार के सत्तारूढ़ महागठबंधन द्वारा राजपूतों के बीच अपना समर्थन मजबूत करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। पारंपरिक रूप से राजपूत भाजपा के मतदाता समझे जाते हैं
ऐसा लगता है कि मोहन की रिहाई के मुद्दे पर भाजपा के अंदर ही अलग-अलग राय है। ऊंची जाति के नेताओं ने मोहन की रिहाई का खुलकर विरोध तो नहीं किया है लेकिन यह जरूर कहा है कि इससे अन्य अपराधियों को मदद मिलेगी।

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी और पूर्व राज्य मंत्री नीरज कुमार सिंह बबलू आदि नेताओं ने कहा कि उन्हें ‘‘आनंद मोहन की रिहाई से कोई समस्या नहीं है।‘‘
हालांकि, इन नेताओं ने आरोप लगाया कि ‘‘राजनीतिक लाभ के लिए कई अन्य अपराधियों को रिहा किया गया है।’’
इस बीच, मोहन की पत्नी एवं पूर्व सांसद लवली आनंद ने पति की रिहाई पर राहत महसूस की और उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आभार जताया।

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