कर्नाटक उच्च न्यायालय ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में पूर्व विधायक अभय कुमार पाटिल के खिलाफ तीसरी बार दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया है।
पाटिल के खिलाफ निजी शिकायत पहली बार 2012 में एक व्यक्ति द्वारा दर्ज कराई गई थी। निचली अदालत के निर्देश के आधार पर, पुलिस ने पूर्व में दो बार प्राथमिकी दर्ज की थी और दोनों बार उच्च न्यायालय द्वारा प्राथमिकी को रद्द कर दिया गया था क्योंकि (तत्कालीन) विधायक के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए राज्य सरकार से कोई मंजूरी नहीं ली गई थी।
इसके बावजूद, निचली अदालत ने पुलिस को तीसरी बार प्राथमिकी दर्ज कर मामले की जांच करने का निर्देश दिया था।
न्यायमूर्ति के. नटराजन ने अपने फैसले में ताजा प्राथमिकी को रद्द करते हुए कहा कि तत्कालीन विधायक के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार से भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के तहत मंजूरी प्राप्त नहीं की गई थी। अदालत ने कहा कि पाटिल को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत संरक्षण प्राप्त था, इसलिए कानून के तहत निजी शिकायत टिकाऊ नहीं है।’’
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 कहती है कि कोई भी अदालत सरकार की स्वीकृति के बिना लोक सेवकों द्वारा कथित अपराधों का संज्ञान नहीं ले सकती है।
वर्ष 2012 में मूल शिकायत में आरोप लगाया गया था कि 2004 और 2008 के बीच विधायक के रूप में अभय पाटिल ने आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित की थी, इसलिए उन पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जाना चाहिए।