कोलकाता से दक्षिण पश्चिम दिशा में 70 किलोमीटर दूर औद्योगिक शहर हल्दिया के सामने और हल्दी नदी के दक्षिण किनारे पर स्थित नंदीग्राम क्षेत्र हल्दिया डेवलपमेंट अथॉरिटी के तहत आता है। नंदीग्राम का इतिहास अपने आप में बेहद ही दिलचस्प रहा है। महाभारत से लेकर मौर्यकाल तक में इस क्षेत्र का जिक्र मिलता है। नंदीग्राम में स्थित रेयापाड़ा के सिद्धेश्वर शिव मंदिर का इतिहास एक हजार साल पुराना बताया जाता है।
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कई विद्धानों का मानना है कि वर्तमान दौर का तामलुक ही प्राचीन काल की ताम्रलिप्टि जनपद था। अपने नाम के अनुरुप यहां ताबें के औजारों या धातु से जुड़े काम करने वालों का गढ़ होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत के भीष्म पर्व में भी इसका जिक्र है। एक ऐसा प्रसंग जिसमें भीम ने पूर्वी राज्य के ऊपर चढ़ाई करते हुए ताम्रलिप्ति के राजा को पराजित कर दिया और फिर वहां से कर की वसूली की। कहा तो ये भी जाता है कि विजय के प्रतीक में यहां शिव मंदिर का भी निर्माण कराया गया।
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सम्राट अशोक के दौर में ताम्रलिप्ति का बौद्ध धर्म संबंधी से कैसे बढ़ा जुड़ाव
मौर्यकाल में ताम्रलिप्ति की प्राकृतिक स्थिति जलीय मार्ग के अनुकूल रही औऱ दक्षिण पूर्वी भारत को ही नहीं समुद्रपार के देशों को भी मध्य एशिया के नगरों से कनेक्ट करने वाली थाी। इतिहासकारों का मानना है कि चौथी सदी से 12वीं सदी तक इसके किनारे अनेक देशों के जहाज आकर लगते थे। यही से नील, शहतूत और पशम का निर्यार बाहरी देशों को किया जाता था। अशोक के दौर में ताम्रलिप्ति का बौद्ध धर्म संबंधी से जुड़ाव भी बढ़ा। सिंहल के बौद्ध ग्रंथों महावंश और दीपवंश में उसे तामलप्ति, ताम्रलिप्ति कहा गया है।
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