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प्राचीन भारत का खेल है ‘मल्लखंब’, कलाकारों को करनी पड़ती है खास मशक्कत

मलखंब भारत के प्राचीन खेलों में शुमार रहा है, जिसे पहली बार बर्लिन 1936 ओलंपिक खेलों के दौरान पुरी दुनिया के सामने पेश किया गया था। इस खेल में खेलने वाले खिलाड़ी को मलखंब कलाकार कहा जाता है। एक मलखंब कलाकार का शरीर रबर बैंड की तरह होता है। इन कलाकारों का शरीर ऐसा बंधा होता है कि वो कभी मलखंब के ऊपर खड़े होकर प्रदर्शन करते हैं तो कभी पोल के चारों ओर लटकते हुए शानदार कलाकृतियां दिखाते है। एक आम धारणा यह है कि दिखने में कलाबाजी की तरह होने के कारण ये स्वदेशी खेल असम में जिमनास्टिक से अधिक एक पोल के साथ कुश्ती के रूप में देखा जाता है। यह खेल इस तरह से अपनी पैठ बना रहा है कि यह संभव है कि हम इसे 2028 में लॉस एंजिल्स ओलंपिक में एक प्रदर्शन खेल के रूप में देख सकें। जैसा कि भारतीय जड़ों वाला यह खेल दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल कर रहा है, मल्लखंभ के कलाकार भी दावा करते हैं कि इसमें उत्कृष्टता अन्य खेलों में प्रगति और सफलता का मार्ग प्रशस्त करती है। 
 
ऐसे होती है मलखंब कलाकारों की ट्रेनिंग
एक अच्छा मलखंब कलाकार बनने के लिए जरुरी है कि खिलाड़ी को कम से कम दो साल तक अपने शरीर को खेल को समर्पित करना पड़ता है। सिर्फ यही नहीं मलखंब खेलने वाले खिलाड़ी अन्य खेलों में भी आसानी से विकास करने में सक्षम होते है। कहा जाता है कि मल्लखंब में न केवल कुश्ती होती है, बल्कि कलाबाजी, योग के साथ-साथ जिमनास्टिक भी होता है। अगर किसी मलखंड कलाकार को इस दिशा में उत्कृष्टता चाहिए तो उसके पास लचीलापन, ताकत, सहनशक्ति होना जरुरी है। मल्लखंब के खेल में विकास करने के लिए कलाकारों को अपने शरीर के वजन को भी केंद्रित करना होता है।
 
खिलाड़ियों का कहना है कि छह घंटों तक उन्हें ट्रेनिंग और प्रैक्टिस करनी  होती है। खिलाड़ियों को ईमानदार होना चाहिए। खिलाड़ियों की ट्रेनिंग क्षमता वर्तमान वातारण पर भी निर्भर करता है। पोल के लिए अधिक ताकत और मांसपेशियों के धीरज की आवश्यकता होती है और रस्सी के लिए लचीलेपन और गतिशीलता की आवश्यकता होती है। इसलिए मलखंभ के खिलाड़ी के तौर पर स्टैमिना के साथ-साथ इन सभी चीजों पर ध्यान देने की जरूरत है। खिलाड़ियों के लिए जरुरी है कि रस्सी या खंभे पर चढ़ने से पहले वो कुछ चीजों की जांच करे। कई बार मलखंब में प्रैक्टिस करते हुए चोट लगने की संभावना भी होती है।
 
खिलाड़ियों या कलाकारों को जरुरी है कि मलखंब पर चढ़ने से पहले वार्म अब, फ्लेकिसिबिलिटी, स्ट्रेचिंग आदि करें। इसके साथ ही योगा करना भी सहायक होता है। ऐसा करना इसलिए आवश्यक है ताकि खिलाड़ी मलखंब पर चढ़ने के दौरान क्रैंप या किसी दर्द से पीड़ित ना हो जाए। ऐसे में जरुरी है कि मलखंब पर चढ़ने से पहले जमीन पर प्रैक्टिस करनी चाहिए।
 
6-14 वर्ष की उम्र के बच्चों के लिए उपयोगी
वैसे तो ये खेल ऐसा है जिसे किसी भी उम्र के लोग खेल सकते है। मगर इसकी शुरुआत करने के लिए सबसे जरुरी है कि 6-14 वर्ष की उम्र तक बच्चे इस खेल से जुड़ जाएं ताकि उनका शरीर खेल के अनुरुप ढल जाए। अगर उस उम्र में कोई परेशानी आती है तो उसे जल्दी ठीक भी किया जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मल्लखंब कलाकारों के लिए एक मजबूत कोर आवश्यक है। यह चोटों को रोकता है और सामान्य रूप से उठाने की यांत्रिकी में सुधार करता है, लेकिन संतुलन, स्थिरता और मुद्रा भी जोड़ता है, जो इस खेल में सभी आवश्यक हैं।

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