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Uniform Civil Code VIII | क्या था शाहबानो केस?, जिसके चलते 1985 में चर्चा में आया था UCC | Teh Tak

समान नागरिक संहिता की बहस वर्षों पुरानी है और संविधान सभा में इसको लेकर जोरदार बहस भी हुई थी। जिसके बाद संविधान के नीति निर्देशक तत्वों यानी डायरेक्टिव प्रिंसिपल ऑफ स्टेट पॉलिसी के रूप में जोड़ कर रख दिया गया और कहा गया कि सही समय पर इसे लागू किया जाएगा। ये अभी तक हुआ नहीं है। लेकिन बीच बीच में इस पर बहस जरूर तेज हुई। खासकर तब जब फैमिली मैटर पर सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट का कोई बड़ा फैसला आया। एक ऐसा ही चर्चित मामला शाहबानो का था। 

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क्या था शाहबानो केस
ये 1986 की बात है। मां इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी राजनीतिक के दांव-पेंच सीख रहे थे। इसी बीच मध्य प्रदेश के इंदौर की शाह बानो का केस चर्चा में आया। शाह बानो के शौहर मशहूर वकील मोहम्मद अहमद खान ने 43 साल साथ रहने के बाद तीन तलाक दे दिया। शाह बानो पांच बच्चें के साथ घर से निकाल दी गईं। शादी के वक्त तय हुई मेहर की रकम तो अहम खान ने लौटा दी, लेकिन शाह बानो हर महीने गुजारा भत्ता चाहती थीं। उनके सामने कोर्ट जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। कोर्ट ने फैसला शाह बानो के पक्ष में सुनाया और अहमद खान को 500 रुपए प्रति महीने गुजारा भत्ता देने का फैसला सुना दिया। धर्म के नाम पर महिलाओं के साथ कठोर व्यवहार पर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए सरकार को यूनिफॉर्म सिविल कोड तैयार करने का सुझाव भी दिया। शाह बानो की इस पहल ने बाकी मुस्लिम महिलाओं के लिए कोर्ट जाने का रास्ता खोल दिया, जिससे मुस्लिम समाज के पुरुष बेहद नाराज हुए। लेकिन कंट्टरपंथियों के दबाव में राजीव गांधी ने अपने कदम सिर्फ वापस ही नहीं खींचे बल्कि धारा की विपरीत दिशा में कदम बढ़ाते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही पलट दिया। तब तो धर्म की राजनीति कर के राजीव गांधी ने मुस्लिमों को खुश कर दिया था। 

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यूसीसी से संबंधित महत्वपूर्ण मामले कौन-कौन से हैं
शाह बानो बेगम बनाम मोहम्मद अहमद खान (1985): सुप्रीम कोर्ट ने इद्दत अवधि की समाप्ति के बाद भी आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत एक मुस्लिम महिला को अपने पति से भरण-पोषण का दावा करने के अधिकार को बरकरार रखा। यह भी देखा गया कि यूसीसी विचारधाराओं पर आधारित विरोधाभासों को दूर करने में मदद करेगा।
सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक हिंदू पति अपनी पहली शादी को खत्म किए बिना इस्लाम धर्म अपना नहीं सकता और दूसरी महिला से शादी नहीं कर सकता। इसमें यह भी कहा गया है कि यूसीसी इस तरह के धोखाधड़ी वाले धर्मांतरण और द्विविवाह विवाह को रोकेगा।
शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017): सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक और मुस्लिम महिलाओं की गरिमा और समानता का उल्लंघन करार दिया। इसने यह भी सिफारिश की कि संसद को मुस्लिम विवाह और तलाक को विनियमित करने के लिए एक कानून बनाना चाहिए।
संवैधानिक परिप्रेक्ष्य
भारतीय संविधान सांस्कृतिक स्वायत्तता के अधिकार को बरकरार रखता है और सांस्कृतिक समायोजन का लक्ष्य रखता है। अनुच्छेद 29(1) सभी नागरिकों की विशिष्ट संस्कृति की रक्षा करता है। मुसलमानों को यह सवाल करने की ज़रूरत है कि क्या बहुविवाह और मनमाने ढंग से एकतरफा तलाक जैसी प्रथाएं उनके सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप हैं। ध्यान एक न्यायसंगत कोड प्राप्त करने पर होना चाहिए जो समानता और न्याय को बढ़ावा दे। 

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