जानकारी और ज्ञान में अंतर होने का दावा करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने मंगलवार को कहा कि जानकारी से नेतृत्व नहीं बनता है बल्कि ‘ज्ञान हमें अनुभव की ओर प्रवृत्त करता है और नेतृत्वशील बनाता है।’
उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और तकनीकी उन्नति के साथ ही जानकारियों का दायरा तो बढा रहा है लेकिन इस का सही सदुपयोग ही नौजवानों को नई दिशा दे पायेगा इसीलिए आज जानकारी को ज्ञान में तब्दील करना जरूरी है।
मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के व्यवसाय प्रबंधन विभाग के मास्टर ऑफ ह्यूमन रिसोर्सेज मैनेजमेंट के तत्वावधान में दो दिवसीय ‘लीडरशिप कॉनक्लेव-2023’कार्यक्रम को संबोंधित करते हुए बिरला ने कहा कि भारत के मूल स्वभाव को साथ लेकर चलना जरूरी है जिसमें ज्ञान, संस्कृति, इतिहास, चिंतन आदि का समावेश होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि नेतृत्व कोई एक दिन में बनने की चीज नहीं होती बल्कि वह हर क्षण, हर पल और हर दिन दैनिक जीवन के निर्णय से बाहर निकल कर आता है।
आजादी के आंदोलन का जिक्र करते हुए बिरला ने शहीदों को याद किया।
उन्होंने महाराणा प्रताप की नेतृत्व क्षमता का जिक्र करते हुए कहा कि दुनिया भर में महाराणा प्रताप को आदर और सम्मान की दृष्टि से याद किया जाता है। उन्होंने कहा कि यह उनकी नेतृत्व क्षमता ही थी जो उनको पूरी दुनिया में पहचान दिलाती है।
बिरला ने कहा कि परस्पर संवाद, संवेदना और सहयोग से ही नए भारत का निर्माण होगा और अंतिम व्यक्ति तक के सहयोग से ही परिवर्तन की परिकल्पना बन पाएगी।
राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी ने कहा कि विधायिका का काम ‘निगरानीकर्ता’ की तरह होता है लेकिन बहुत चिंता का विषय है कि केरल को छोडक़र पूरे देश में औसत सदन 20-25 दिन ही चल पाते है।
उन्होंने कहा , ‘‘ सब लोग अपेक्षा करते हैं कि हम ‘क्वालिटी ऑफ गवर्नन्स’ की बात करें लेकिन संसदीय लोकतंत्र में यदि सदन पूरे दिन नहीं चलेगा यह कैसे तय हो पाएगा कि हम गुणवत्ता पूर्ण लोकतंत्र की कल्पना को साकार करने में समर्थ होंगे।’’
उन्होंने सवाल किया कि क्या कारण है कि भारत में संसदीय चुनावों में प्रधानमंत्री के चेहरे के साथ तो वोट मिल जाते हैं, जनता वोटों का पिटारा खोल देती है लेकिन वहीं दूसरी ओर वही वोट विधानसभा चुनाव में स्थानांतरित नहीं हो पाते।
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों को सोचना होगा कि क्या कारण है कि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के चेहरे पर वोट मिलते हैं लेकिन वही वोट स्थायी रहने की बजाय ‘फ्लोटिंग वोट’ में तब्दील हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि सभी राजनीतिक पार्टियों को इसका कारण समझना पड़ेगा और खोजना भी पड़ेगा।