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इसरो को नए पीएसएलवी मिशन में विशिष्ट वैज्ञानिक प्रयोग में मिली सफलता

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों को रविवार को दोहरी सफलता हासिल हुई। एक ओर से तो उसने सिंगापुर के सात उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया वहीं दूसरी ओर उसे पीएसएलवी रॉकेट के चौथे चरण को लेकर विशिष्ट वैज्ञानिक प्रयोग में भी सफलता मिली।
इसरो ने रविवार को अपने भरोसेमंद ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान’ (पीएसएलवी) से सिंगापुर के सात उपग्रहों को निर्दिष्ट कक्षा में स्थापित किया।
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि वैज्ञानिकों ने विशिष्ट वैज्ञानिक प्रयोग करने का निर्णय लिया जिसमें सभी उपग्रहों को 536 किलोमीटर की ऊंचाई पर निर्धारित कक्षाओं में स्थापित कराने के बाद, रॉकेट के चौथे चरण को 300 किलोमीटर पर लाया जाएगा। इसका मकसद अंतरिक्ष में कचरे की समस्या को कम करना है।

इसरो के अनुसार, आम तौर पर एक मिशन के सफल होने के बाद पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश करने से पहले एक रॉकेट अंतरिक्ष मलबे के रूप में एक कक्षा में ‘‘दशकों’’ तक घूमता है। लेकिन रविवार के प्रयोग के साथ यह अवधि घट कर ‘‘दो माह’’ हो गई है।
इससे पहले सोमनाथ ने मिशन नियंत्रण केंद्र में कहा था, ‘‘(यह प्रयोग) अंतरिक्ष में बिताए जाने वाले चरण की अवधि कम करने के इरादे से किया जा रहा है। इसके दो उद्देश्य हैं। पहला-पीएसएलवी को ऊपरी चरण से नियंत्रित तरीके से वापस लाने के लगातार प्रयासों के जरिये अंतरिक्ष में कचरे की समस्या को कम करना। दूसरा-इस मिशन में इस लक्ष्य को प्राप्त करके देखना।’’

पीएसएलवी के मिशन निदेशक एस आर बीजू ने कहा, ‘‘जैसा कि हमारे अध्यक्ष ने संकेत दिया है कि हमारा मिशन अभी समाप्त नहीं हुआ है। मिशन का प्रारंभिक उद्देश्य (सिंगापुर के सातों उपग्रहों को निर्धारित कक्षा में स्थापित करना) पूरा हो गया है, लेकिन प्रयोग करते रहना पीएसएलवी की आदत में शुमार हो गया है।’’
बीजू ने कहा, ‘‘जैसा कि आप जानते हैं कि हमने पिछली बार भी ऐसा किया था। हमने पीओईएम (पीएसएलवी कक्षीय प्रायोगिक मॉड्यूल) तैयार किया, अंतरिक्ष में गाने गाए, हम स्टार्टअप को अंतरिक्ष की कक्षाओं में ले गए। ऐसा हमने पीएस4 चरण के ऊपरी कक्षा में रहते हुआ किया। हमने इस बार कुछ अलग करने की सोची है…।

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