नयी दिल्ली। अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने ज्ञानवापी मस्जिद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) सर्वेक्षण की अनुमति देने संबंधी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय का रुख किया।
उच्च न्यायालय के फैसले के कुछ घंटे बाद अधिवक्ता निजाम पाशा ने तत्काल सुनवाई के लिए प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ के समक्ष मामले का उल्लेख किया। प्रधान न्यायाधीश अनुच्छेद 370 मुद्दे पर दलीलें सुनने वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे हैं।
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पाशा ने कहा, ‘‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज एक आदेश पारित किया है। हमने आदेश के खिलाफ एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) दायर की है। मैंने (तत्काल सुनवाई का अनुरोध करते हुए) एक ईमेल भेजा है। उन्हें सर्वेक्षण की कार्यवाही आगे नहीं बढ़ानी चाहिए।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैं तुरंत ईमेल देखूंगा।’’
हिंदू पक्ष के एक पक्ष ने उच्चतम न्यायालय में एक कैविएट भी दायर की है जिसमें कहा गया है कि इस मामले में उन्हें सुने बिना कोई आदेश पारित नहीं किया जाए।
इससे पहले दिन में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण के खिलाफ अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी की याचिका खारिज कर दी।
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वाराणसी जिला अदालत ने 21 जुलाई को एएसआई को यह निर्धारित करने के लिए‘‘विस्तृत वैज्ञानिक सर्वेक्षण’’ करने का निर्देश दिया था कि क्या काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद एक मंदिर पर बनाई गई है।
उच्चतम न्यायालय ने 24 जुलाई को वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में एएसआई के ‘विस्तृत वैज्ञानिक सर्वेक्षण’ पर 26 जुलाई को शाम पांच बजे तक रोक लगा दी थी।
इसके बाद मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने इसके खिलाफ 25 जुलाई को उच्च न्यायालय का रुख किया था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश प्रितिंकर दिवाकर ने सभी पक्षों को सुनने के बाद 27 जुलाई को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था।
उच्च न्यायालय ने सर्वेक्षण का आदेश पारित करते हुए कहा कि एएसआई के इस आश्वासन पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि ढांचा क्षतिग्रस्त नहीं होगा, लेकिन उसने साथ ही कहा कि सर्वेक्षण के लिए किसी तरह की खुदाई नहीं की जानी चाहिए।
उच्च न्यायालय ने कहा कि विवादित परिसर के सर्वेक्षण को लेकर जिला अदालत का आदेश उचित है और इस अदालत द्वारा किसी तरह का हस्तक्षेप वांछित नहीं है।
उच्च न्यायालय का निर्णय आने के बाद हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने संवाददाताओं को बताया कि उच्च न्यायालय ने कहा है कि उसके इस निर्णय के साथ जिला अदालत का सर्वेक्षण का आदेश तत्काल प्रभावी हो गया है।
जैन कहा कि उच्च न्यायालय का यह ‘‘बहुत महत्वपूर्ण निर्णय’’ है। उन्होंने कहा कि अंजुमन इंतेजामिया कमेटी ने दलील दी थी कि इस सर्वेक्षण से ढांचा प्रभावित होगा, लेकिन अदालत ने उन सभी दलीलों को खारिज कर दिया है।
उन्होंने कहा कि इससे पूर्व अंजुमन इंतेजामिया कमेटी की दलील थी कि उसे उच्च न्यायालय जाने का मौका नहीं मिला, इसलिए अदालत ने उसकी दलीलों पर सुनवाई की।
जैन ने कहा कि उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर जिला अदालत का निर्णय तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया है।
इससे पहले, मस्जिद कमेटी के वकील ने कहा कि उच्चतम न्यायालय को यह निर्धारित करना है कि यह मामला विचारणीय है या नहीं। उन्होंने कहा कि यदि शीर्ष अदालत बाद में इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, तो पूरी कवायद व्यर्थ हो जायेगी।
वकील ने कहा कि इसलिए उच्चतम न्यायालय के उस फैसले के बाद ही सर्वेक्षण किया जाना चाहिए कि यह याचिका विचारणीय है या नहीं।
दूसरी ओर जैन ने दलील दी है कि अदालत ने एएसआई सर्वेक्षण तार्किक निष्कर्ष पर ले जाने का आदेश दिया था।
जब मामले की सुनवाई शुरू हुई तो एएसआई के अपर निदेशक आलोक त्रिपाठी ने अदालत को आश्वासन दिया कि एएसआई ढांचे की खुदाई नहीं करने जा रहा है।
मस्जिद का वह ‘वजूखाना’ जहां कथित तौर पर शिवलिंग होने के दावे किए जा रहे हैं, इस सर्वेक्षण का हिस्सा नहीं होगा क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने परिसर में उस जगह को संरक्षित करने का आदेश पूर्व में दिया था।
हिंदू कार्यकर्ताओं का दावा है कि इस स्थान पर पहले एक मंदिर मौजूद था और 17वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर इसे ध्वस्त कर दिया गया था।