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भारतीय ग्रैंडमास्टर आर प्रज्ञानंद ने मंगलवार को फिडे वर्ल्ड कप चेस टूर्नामेंट के फाइनल के पहले गेम में मैग्रस कार्लसन के खिलाफ ड्रॉ खेला। दोनों के बीच शानदार गेम देखने को मिला। 18 साल के भारतीय खिलाड़ी ने वर्ल्ड नंबर 1 कार्लसन को ड्रॉ खेलने पर मजबूर कर दिया। लेकिन इस दौरान प्रज्ञानंद से ज्यादा अगर किसी की चर्चा हुई तो वो हैं उनकी मां। सोशल मीडिया पर उनकी मां की अलग अलग तस्वीर वायरल हो रही है। जिसमें वो अपने बेटे की फैबियानों कारुना पर जीत के बाद आई। हर कोई प्रज्ञानंद की मां की बातें कर रहा है। चेस मास्टर के साथ उनकी मां को भी बधाइयां मिल रही हैं।
कहते हैं कि, हर सफल आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है। प्रज्ञानंद की सफलता के पीछ भी उनकी मां का हाथ है।
मां के कारण ही सफल हुए प्रज्ञानंद
उनके कोच और साथी खिलाड़ी बताते हैं कि, प्रज्ञानंद को महान खिलाड़ी बनाने में उनकी मां की अहम भूमिका है। चाहे वो उन्हें क्लास के लिए ले जाना हो या फिर घर में उनके अनुकूल माहौल बनाना। इसके अलावा उनकी मां घर से हजारों मील दूर घर का खाना उन्हें खिलाती हैं। नागलक्ष्मी का पूरा जीवन प्रज्ञानंद और उनकी बहन वैशाली को अपने वर्गों में विश्व ग्रैंडमास्टर बनाने में बीता है।
प्रज्ञानंद की मां ने उन्हें खेलने-कूदने की उम्र में शतरंज की दुनिया का बादशाह बना दिया। मां के सपनों को पूरा करने के लिए वह भी 64 मोहरों वाले इस खेल के चाणक्य बन गए। नागलक्ष्मी हर मैच में बेटे के साथ होती हैं। वो अपने बेटे के हर मैच में एक कोने पर बैठकर प्रार्थना करती है। फिर चाहे वो मैच अंतरराष्ट्रीय लेवल को हो या फिर राष्ट्रीय लेवल का, वो बस बैठकर प्रार्थना करती हैं।
एक पुराने इंटरव्यू में नागलक्ष्मी में कहती है कि, प्रज्ञानंद के खेलने वाले अखाड़े इतने शांत होते हैं कि मैं हमेशा डरती हूं कि कहीं लोग मेरी धड़कनों की आवाज सुन ना लें। मैं अपने बेटे से किसी भी गेम के दौरान आंखें नहीं मिलाती, क्योंकि वो नहीं चाहती हैं कि उनका बेटा जाने कि वह क्या महसूस कर रहा है। हालांकि, नागलक्ष्मी को पता होता है कि उनका बेटा कब परेशान है और कब आत्मविश्वास से भरा हुआ है।
प्रज्ञानंद के साथ हमेशा होती हैं मां
प्रज्ञानंद के कोच एस थियागराजन बताते हैं कि, नागलक्ष्मी टूर्नामेंट में आती थीं, एक कोने में बैठ जाती थी और अपने बेटे के खेल खत्म होने तक सिर्फ प्रार्थना करती थीं। कोच आगे बताते हैं कि, वो महज 7 साल का था लेकिन वो हर एक गेम के दौरान प्रार्थना करती थीं। उनके शतरंज कोचिंग की क्लासेस सुबर 10 बजे से शाम 7 बजे तक होती थीं। लेकिन मैं उन्हें उसके बाद तीन-चार घंटे का होमवर्क भी देता था। इस दौरान उनकी मां हमेशा उनके साथ होती थीं।
प्रज्ञानंद और उनकी बहन जब भी टूर्नामेंट के लिए यात्रा करते हैं तो नागलक्ष्मी एक इंडक्शन स्टोव और दो स्टील के बर्तन साथ में ले जाती हैं जिससे उनके बच्चों को घर का खाना मिल सके।