Breaking News

Prajatantra: KCR के गढ़ में उन्हें मात दे पाएगी BJP-Congress, जानें Telangana के गठन की कहानी

देश के सबसे नए राज्य तेलंगाना में इस साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। वहीं, अगले साल लोकसभा के भी चुनाव हैं। यही कारण है कि तेलंगाना में फिलहाल सियासी हलचल जमकर हो रही है। 3 अक्टूबर 2013 को तत्कालीन केंद्र की यूपीए सरकार ने तेलंगाना के गठन को मंजूरी दी जबकि 2 जून 2014 को राज्य ने औपचारिक रूप से आकार लिया और के चंद्रशेखर राव इसके पहले मुख्यमंत्री बने। 
 

इसे भी पढ़ें: Prajatantra: Andhra Pradesh की राजनीति को कितना प्रभावित करेगी चंद्रबाबू नायडू की गिरफ्तारी?

हालांकि, अलग तेलंगाना राज्य की मांग की लड़ाई काफी पुरानी है। अगस्त 1947 में भारत को आज़ादी मिलने के बाद, तेलंगाना लंबे समय तक तत्कालीन निज़ाम की हैदराबाद रियासत का हिस्सा था, जो आज़ादी के बाद भी 13 महीने तक एक स्वतंत्र रियासत बनी रही। सितंबर 1948 में, भारत सरकार ने हैदराबाद को भारतीय संघ का हिस्सा बनाने के लिए “ऑपरेशन पोलो” नामक एक सैन्य अभियान चलाने का फैसला किया। 1 नवंबर 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों के तहत तब के हैदराबाद, यानी तेलंगाना प्रांत का भाषाई आधार पर आंध्र प्रदेश में विलय कर दिया गया था। हालाँकि, तेलंगाना क्षेत्र के तेलुगु भाषी लोग अपना खुद का एक राज्य चाहते थे।

इससे 1950 के दशक की शुरुआत में पहला तेलंगाना आंदोलन शुरू हुआ। इस मुद्दे को हल करने के लिए, भारत सरकार ने देश भर में विभिन्न राज्यों की मांगों का मूल्यांकन करने के लिए राज्य पुनर्गठन आयोग (एसआरसी) की नियुक्ति की। तेलंगाना आंदोलन के नेता एक अलग राज्य की मांग कर रहे थे लेकिन इसके बजाय, आंध्र प्रदेश राज्य बनाने के लिए तेलंगाना क्षेत्र को आंध्र राज्य में मिला दिया गया। 1969 में तेलंगाना राज्य के लिए आंदोलन की दूसरी लहर के दौरान छात्रों ने एक अलग राज्य के लिए विरोध प्रदर्शन किया। यह आंदोलन काफी हिंसक रही और हो करीब 300 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद कुछ समय के लिए यह शांत को हुआ पर समय-समय पर इसकी मांग उठती रही। 1972 और 2009 में भी बड़े आंदोलन हुए। 

1997 में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तेलंगाना इकाई ने एक अलग राज्य की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया। वर्तमान में राज्य के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना के गठन में अहम भूमिका निभाई। केसीआर अप्रैल 2001 तक तेलुगु देशम पार्टी के नेता थे। हालाँकि, उन्होंने टीडीपी छोड़ दी और एक अलग तेलंगाना राज्य बनाने के एकल-बिंदु एजेंडे के साथ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) का गठन किया जो वर्तमान में भारत राष्ट्र समिति के रूप में जाना जा रहा है। नवंबर 2009 में, केसीआर ने तेलंगाना राज्य के निर्माण की मांग को लेकर आमरण अनशन करने की घोषणा की। इसके बाद केंद्र सरकार ने घोषणा की कि तेलंगाना के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। 

तेलंगाना की राजनीति को भी देखें तो काफी दिलचस्प है। यहां के चंद्रशेखर राव के पार्टी भारत राष्ट्र समिति का मजबूत आधार है। हालांकि, वर्तमान में देखे तो कांग्रेस और भाजपा की ओर से चुनौती देने की तैयारी की जा रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में 119 सीटों में से के चंद्रशेखर राव की पार्टी ने 88 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि कांग्रेस को 19 सीटें मिली थी। ओवैसी की पार्टी भी तेलंगाना में अच्छा आधार रखती है। हैदराबाद के आस पास वाले सीटों पर उसका प्रभाव है। 2018 में उसे 7 सीटों पर जीत मिली थी। भाजपा के खाते में 1 जबकि टीडीपी के खाते में 2 सीटें गई थी। वहीं 2019 के आम चुनाव की बात करें तो तेलंगाना की 17 सीटों में से 9 सीटों पर केसीआर की पार्टी का कब्जा हुआ था। 4 सीटें भाजपा को मिली थी। कांग्रेस को तीन जबकि एआईएमआईएम को एक। बार भी तेलंगाना में चुनाव दिलचस्प होते दिखाई दे रहे हैं। 
 

इसे भी पढ़ें: Prajatantra: Rajnath Singh को क्यों आई ‘India Shining’ की याद, नसीहत के बहाने विपक्ष पर किया वार

के चंद्रशेखर राव की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं किसी से छिपी नहीं है। दिल्ली का सपना देखते हुए उन्होंने अपनी पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति तक कर दिया। वे फिलहाल ना एनडीए और ना इंडिया गठबंधन के हिस्सा है और देश के सामने तीसरा विकल्प रखने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, जनता की नजर तमाम चीजों पर होती हैं। तेलंगाना की सरकार पर भ्रष्टाचार के कई बड़े आरोप विपक्षी दलों की ओर से लगाए जाते हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में केसीआर की राजनीति को कितनी कामयाबी मिलती है। यही तो प्रजातंत्र है।

Loading

Back
Messenger