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Supreme Court के आदेश से पहले कैसे चुने जाते थे चुनाव आयुक्त, संसद के विशेष सत्र में प्रस्तावित विधेयक पास हुआ तो क्या-क्या बदल जाएगा?

13 सितंबर की देर रात जारी संसदीय बुलेटिन में केंद्र सरकार ने 18 सितंबर से शुरू होने वाले संसद सत्र के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर विधेयक को सूचीबद्ध किया है। यह घटनाक्रम मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 और देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए इसका क्या मतलब होगा, पर अटकलों और अटकलों के मद्देनजर आया है।

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विशेष सत्र में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से जुड़ा विधेयक क्या है? 
वर्तमान में कानून मंत्री  प्रधानमंत्री के सामने उम्मीदवारों की लिस्टिंग विचार के लिए की जाएगी। राष्ट्रपति यह नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर करते हैं। विधेयक के अनुसार, कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता वाली एक सर्च कमेटी जिसमें चुनाव से संबंधित मामलों में ज्ञान और अनुभव रखने वाले सरकार के सचिव के पद से नीचे के दो अन्य सदस्य शामिल होंगे, पांच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करेगी जिन पर विचार किया जा सकता है। फिर, विधेयक के अनुसार, प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री की एक चयन समिति सीईसी और अन्य ईसी की नियुक्ति करेगी। चुनाव आयुक्त (सेवा की नियुक्ति शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 विशेष संसदीय सत्र के दौरान चर्चा के लिए निर्धारित पांच विधेयकों में से एक है। बिल पहली बार 10 अगस्त को राज्यसभा में पेश किया गया था। सीजेआई को चयन पैनल से बाहर करना इस साल मार्च के सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले के विपरीत है। शीर्ष अदालत ने सिफारिश की थी कि राष्ट्रपति प्रधान मंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की समिति की सिफारिशों के आधार पर सीईसी और तीन चुनाव आयुक्तों के पदों पर नियुक्तियां करेंगे।
मोदी सरकार कर रही सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन?
शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था कि मुख्य चुनाव आयुक्तों और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश के पैनल की सलाह पर की जाएगी। पीठ ने चयन प्रक्रिया को सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया के समान बनाने की मांग करने वाली कई याचिकाओं पर फैसला सुनाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मार्च में एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि मुख्य चुनाव आयुक्तों और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश के पैनल की सलाह पर की जाएगी। पूरे मामले पर पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का मानना ​​है कि एक कोलेजियम प्रणाली शुरू की जानी चाहिए। कुरैशी ने कहा कि फर्क सिर्फ इतना है कि सीजेआई को बाहर कर दिया गया है और एक कैबिनेट मंत्री की नियुक्ति प्रधानमंत्री ने की हो उसे शामिल किया गया है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णमूर्ति का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को शामिल न करना सरकार का विशेषाधिकार है। हालांकि, सरकार कैबिनेट मंत्री की जगह लोकसभा के अध्यक्ष को शामिल करने पर विचार कर सकती थी। 

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विपक्ष को क्या ऐतराज है?
विपक्ष ने अचानक पेश इस बिल को संविधान विरोधी बताया। कांग्रेस ने कहा कि बिल के माध्यम से पीएम और गृह मंत्री अमित शाह निर्वाचन आयोग को नियंत्रित करना चाहते हैं। दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि इससे चुनाव की निष्पक्षता पर असर पड़ेगा। कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने कहा कि प्रधानमंत्री मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश करने वाली चयन समिति के सदस्य के रूप में सीजेआई की जगह एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को नियुक्त करेंगे। विपक्षी नेता सदस्य होंगे लेकिन उनकी संख्या कम होना तय है। यह किसी संस्था को नियंत्रित करने का एक और तरीका है जिसे स्वतंत्र होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले कैसे चुने जाते थे चुनाव आयुक्त 
अभी तक मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव 1 आयुक्त की नियुक्ति को लेकर कोई कानून नहीं था। नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया केंद्र सरकार के हाथ में थी। सचिव स्तर के मौजूदा या रिटायर हो चुके अधिकारियों की एक सूची तैयार की जाती थी। कई बार इस सूची में 40 नाम तक होते थे। इसी सूची के आधार पर तीन नामों को चुना जाता था। इन नामों पर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति विचार करते थे। इसके बाद प्रधानमंत्री पैनल में शामिल अधिकारियों से बात करके कोई एक नाम राष्ट्रपति के पास भेजते थे। नाम के साथ इसमें प्रधानमंत्री की तरफ से एक नोट भी भेजा जाता था जिसमें उस शख्स के चुनाव आयुक्त चुने जाने की वजह बताई जाती थी। इनका कार्यकाल 6 साल या 65 साल की उम्र तक होता था। 

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