दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को अकासा एयर की इस दलील से सहमति जताई कि नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) को रोजगार समझौतों की शर्तों का उल्लंघन करने वाले पायलटों के खिलाफ कार्रवाई करने से पूरी तरह से नहीं रोका गया है।
अदालत ने हालांकि अकासा एयर को कोई तत्काल राहत नहीं दी, जिसने नोटिस अवधि पूरी किए बिना इस्तीफा देने वाले अपने पायलटों के खिलाफ कार्रवाई के लिए डीजीसीए और केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय को निर्देश देने का अनुरोध किया था।
अदालत ने कहा कि वह पहले विमानन क्षेत्र नियामक द्वारा उठाए गए अधिकार क्षेत्र के मुद्दे पर फैसला करेगी।
न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने कहा कि चूंकि डीजीसीए ने कहा है कि पायलटों और एयरलाइंस के बीच रोजगार समझौते में हस्तक्षेप करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है, इसलिए अदालत को कोई अन्य निर्देश पारित करने से पहले अधिकार क्षेत्र के मुद्दे पर फैसला करना होगा।
उच्च न्यायालय ने अकासा की उस याचिका पर अंतरिम आदेश पारित किया, जिसमें डीजीसीए और मंत्रालय को नियमों के किसी भी उल्लंघन को रोकने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
अदालत ने ‘इंडियन पायलट गिल्ड’ और ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट’ को याचिका में प्रतिवादी पक्ष के रूप में शामिल किया।
अदालत ने विमानन क्षेत्र के नियामक डीजीसीए, नागरिक उड्डयन मंत्रालय, ‘इंडियन पायलट गिल्ड’ और ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट’ को मुख्य याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा।
अकासा एयर की याचिका में कहा गया है कि अनिवार्य नोटिस अवधि पूरी किए बिना अचानक 43 पायलटों के इस्तीफा देने से कंपनी संकट की स्थिति में है।
विमानन कंपनी और उसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) विनय दुबे ने 14 सितंबर को उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसमें डीजीसीए को ‘‘गैर-जिम्मेदाराना कृत्यों’’ को लेकर इन पायलटों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
डीजीसीए ने अपने जवाब में अदालत को बताया कि वह पायलटों और अकासा एयर के बीच रोजगार समझौते में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।