श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने तमिल-बहुल उत्तरी प्रांत के मुल्लातीवु में एक जिला न्यायाधीश के जान को खतरा बताकर उनके इस्तीफा देने के संबंध में जांच के आदेश दिए हैं। अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी।
टी सरवनराजा ने अपने जीवन को खतरा होने का दावा करते हुए 23 सितंबर को न्यायिक सेवा आयोग को अपना इस्तीफा दे दिया और कथित तौर पर देश छोड़ दिया।
विभिन्न मामलों में सुनवाई करते हुए उन्होंने एक विवादित पुरातात्विक स्थल पर बौद्ध मंदिर के निर्माण के खिलाफ फैसला सुनाया था। उसी क्षेत्र में एक कथित सामूहिक कब्र की खुदाई पर कानूनी कार्यवाही की अध्यक्षता भी सरवनराजा ने की थी।
अधिकारियों के अनुसार, विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति के सचिव को सरवनराजा के इस्तीफे की परिस्थितियों की जांच करने का निर्देश दिया, क्योंकि न्यायाधीश ने पूर्व में अपने जीवन के लिए कथित खतरे पर कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई थी।
मुल्लातीवु के उत्तरी क्षेत्र के जिला न्यायाधीश के रूप में, सरवनराजा ने एक विवादित पुरातात्विक स्थल कुरुंथमाले में एक बौद्ध मंदिर के निर्माण के खिलाफ फैसला सुनाया था। क्षेत्र के तमिलों ने बौद्ध पुरातात्विक उत्खनन के लिए राज्य द्वारा भूमि दान में दिए जाने का दावा करते हुए इसका विरोध किया था।
सरवनराजा ने उसी क्षेत्र में एक कथित सामूहिक कब्र की खुदाई पर कानूनी कार्यवाही की भी अध्यक्षता की।
जून में, क्षेत्र में एक विकास परियोजना के लिए खुदाई गतिविधियों को अंजाम देते समय राष्ट्रीय जल बोर्ड के कार्यकर्ताओं द्वारा गलती से कोक्कुथुडुवई में कथित सामूहिक कब्र की खोज की गई थी। अल्पसंख्यक तमिल समुदाय ने पूर्वोत्तर जिले में कथित सामूहिक कब्र की विश्वसनीय जांच की मांग की।
लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) के शीर्ष नेता वेलुपिल्लई प्रभाकरण को 2009 में श्रीलंकाई सेना ने मार गिराया था। इससे पहले 30 वर्षों तक द्वीपीय राष्ट्र के उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में एक अलग तमिल मातृभूमि के लिए लिट्टे ने सैन्य अभियान चलाया था। लिट्टे की हार से पहले तक मुल्लातीवु संगठन का एक प्रमुख केंद्र था।
श्रीलंका के बार एसोसिएशन सहित कई कानूनी संघों ने न्यायाधीश के इस्तीफे को द्वीपीय राष्ट्र में न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए ‘‘गंभीर खतरा’’ बताया और न्यायिक सेवा आयोग से स्वतंत्र जांच करने का आग्रह किया।