केंद्र के पश्चिम बंगाल का मनरेगा बकाया कथित तौर पर रोके जाने के विरोध में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने बृहस्पतिवार को राजभवन तक मार्च निकाला। वहीं, राज्यपाल सी वी आनंद बोस बाढ़ की स्थिति की समीक्षा के लिए राज्य के उत्तरी हिस्से में हैं।
इससे पहले, पार्टी ने इसी मुद्दे पर नयी दिल्ली में दो दिवसीय विरोध कार्यक्रम आयोजित किया था।
टीएमसी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी के नेतृत्व में हजारों पार्टी कार्यकर्ताओं और उसके शीर्ष पदाधिकारियों ने रैली में भाग लिया। यह मार्च शहर के सांस्कृतिक केंद्र रवीन्द्र सदन से शुरू होकर लगभग चार किलोमीटर की दूरी तय करते हुए राजभवन के गेट तक पहुंचा।
पोस्टर और तख्तियां लेकर टीएमसी कार्यकर्ताओं ने केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के खिलाफ नारे लगाए।
टीएमसी नेताओं ने पूर्व में राज्यपाल से मिलने का समय मांगा था, लेकिन उन्हें इनकार कर दिया गया, क्योंकि बोस बंगाल के उत्तरी हिस्से में हैं। हालांकि, पार्टी ने एक नया पत्र लिखा है, जिसमें राज्यपाल के कोलकाता लौटने पर एक बैठक का अनुरोध किया गया है।
बनर्जी ने टीएमसी के सांसदों और विधायकों, राज्य के मंत्रियों और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) कामगारों सहित समर्थकों के साथ मंगलवार को नयी दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया था, जिसके एक दिन पहले उन्होंने महात्मा गांधी की जयंती पर राजघाट पर दो घंटे का धरना दिया था।
बाद में उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी स्थित कृषि भवन में ग्रामीण विकास मंत्रालय तक मार्च निकाला, जहां उनकी राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति से मुलाकात हुई। हालांकि, कृषि भवन जाने के करीब डेढ़ घंटे बाद टीएमसी नेताओं ने दावा किया कि राज्य मंत्री ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया और कहा कि वह पांच से अधिक प्रतिनिधियों से नहीं मिलेंगी।
राजभवन तक आयोजित टीएमसी के विरोध मार्च को समर्थन देते हुए शिक्षाविदों के टीएमसी समर्थक मंच ने पश्चिम बंगाल के लोगों की आवाज को ‘‘दबाने’’ के लिए केंद्र की आलोचना की।
विभिन्न विश्वविद्यालयों के पूर्व कुलपतियों और वरिष्ठ प्रोफेसर के संगठन ‘एजुकेशनिस्ट्स फोरम’ ने राज्य संचालित विश्वविद्यालयों में अंतरिम कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर राज्यपाल और राज्य के बीच टकराव का जिक्र करते हुए राजभवन की कार्रवाई को ‘‘अवैध’’ बताया।