ब्रिटेन की गृह मंत्री सुएला ब्रेवरमैन के दिल्ली में रह रहे चाचा एवं कैथोलिक पादरी आयरेस फर्नांडिस ने अपनी भतीजी को आप्रवासन पर सावधानीपूर्वक टिप्पणी करने की सलाह दी और उनसे यह नहीं भूलने का आग्रह किया है कि वह खुद भी प्रवासियों की संतान हैं।
शनिवार को प्रकाशित ‘द टाइम्स’ की एक खबर के मुताबिक, फर्नांडिस (73) ने भारत से अखबार को बताया कि उन्हें अवैध आप्रवासन की रोकथाम करने की जरूरत नजर आती है। हालांकि, ओखला में एक ‘रिट्रीट सेंटर’ के निदेशक फर्नांडिस ने कहा कि शरणार्थियों और शरण चाहने वालों के प्रति अधिक करुणा की आवश्यकता है।
फर्नांडिस ने कहा, ‘‘मैं केवल यही प्रार्थना करता हूं कि उन्हें याद रहे कि वह खुद प्रवासी माता-पिता की संतान हैं, इसलिए, ऐसी टिप्पणियां करते समय उन्हें थोड़ा सावधान रहने की जरूरत है।’’
उन्होंने दावा किया, ‘‘जितना मैं जानता हूं, वह (सुएला) अपने आप में काफी मजबूत हैं और उनकी अपनी सोच है। मेरा मानना है कि ऐसी टिप्पणियां करने के लिए कोई उन्हें उकसा रहा है। लेकिन, एक मंत्री होने के नाते ऐसे पद पर रहते हुए शायद उन्हें थोड़ा सावधान रहना चाहिए।’’
ब्रेवरमैन ने इस सप्ताह की शुरुआत में मैनचेस्टर में एक सम्मेलन के दौरान अपने संबोधन में कहा, ‘‘20वीं सदी में परिवर्तन की जो हवा मेरे अपने माता-पिता को दुनिया भर में ले गई, वह आने वाले तूफान की तुलना में महज एक झोंका थी।
क्योंकि आज, एक गरीब देश से अमीर देश में जाने का विकल्प अरबों लोगों के लिए सिर्फ एक सपना नहीं, बल्कि यह पूरी तरह से यथार्थवादी संभावना है।’’
फर्नाडिंस अपने चार भाई-बहन के साथ केन्या में पले-बढ़े, जिनमें ब्रेवरमैन के पिता क्रिस्टी फर्नाडिंस भी शामिल थे।
कांफ्रेंस ऑफ कैथोलिक बिशप्स ऑफ इंडिया के पूर्व निदेशक, फर्नांडिस ने ब्रिटिश अखबार को बताया कि उन्होंने और परिवार के एक अन्य सदस्य ने एक रिश्तेदार के साथ ब्रेवरमैन के राजनीतिक रुख पर चर्चा की थी और उनका यह कठोर रवैया कंजर्वेटिव पार्टी के दक्षिणपंथियों द्वारा समर्थित होने के कारण रहा होगा।
फर्नांडिस ने यह सलाह इस सप्ताह की शुरूआत में मैनचेस्टर में, टोरी सम्मेलनके दौरान ब्रेवरमैन के दिये भाषण के बाद दी है, जिसकी उनकी पार्टी के भीतर से ही आलोचना हुई थी।
प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने भी बड़ी संख्या में प्रवासियों के आने से संबंधित मंत्री के बयान का समर्थन करने से इनकार कर दिया था।
ब्रेवरमैन ने कहा था, अनियंत्रित आप्रवासन, और बहुसंस्कृतिवाद की गलत हठधर्मिता ने पिछले कुछ दशकों में यूरोप के लिए एक विकट स्थिति उत्पन्न की है… बहुसंस्कृतिवाद विफल हो गया।