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Shaurya Path: Israel-Hamas, Russia-Ukraine, Biden-Jinping, Myanmar और Mizoram से संबंधित मुद्दों पर Brigadier Tripathi से बातचीत

प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क के खास कार्यक्रम शौर्य पथ में इस सप्ताह इजराइल-हमास संघर्ष, रूस-यूक्रेन युद्ध, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और चीनी राष्ट्रपति की मुलाकात और म्यांमा में बिगड़ते हालात से संबंधित मुद्दों पर ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) के साथ चर्चा की गयी। पेश है विस्तृत साक्षात्कार
प्रश्न-1. इजराइल-हमास संघर्ष अब किस मोड़ पर है? भारत ने संयुक्त राष्ट्र में लाये गये प्रस्तावों पर इजराइल का साथ क्यों नहीं दिया? इसी मुद्दे से जुड़ा एक सवाल यह भी है कि क्या इजराइल-हमास युद्ध से रूस और चीन को फायदा हो सकता है?
उत्तर- इजराइल हमास को पूरी तरह मिटाने का जो संकल्प ले चुका है उसे वह पूरा करने में लगा हुआ है। उन्होंने कहा कि ताजा हालात यह हैं कि इजरायली सैनिक बुधवार को गाजा के सबसे बड़े अस्पताल में घुस गए और उसके कमरों और तहखाने की तलाशी ली। उन्होंने कहा कि इजराइल के इस कदम से अस्पताल के अंदर फंसे हजारों नागरिकों के लिए लोग चिंतित हो रहे हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि गाजा शहर में अल शिफा अस्पताल इजरायली बलों द्वारा जमीनी कार्रवाई का मुख्य लक्ष्य बन गया है। उन्होंने कहा कि इजराइल कहता है कि हमास के लड़ाकों ने अस्पताल के नीचे सुरंगों में एक मुख्यालय बनाया हुआ लेकिन हमास इस बात से इंकार करता है। उन्होंने कहा कि दूसरी ओर, दुनिया का ध्यान बुनियादी चिकित्सा उपकरणों को संचालित करने की सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे अस्पताल के अंदर फंसे सैंकड़ों मरीजों और वहां आश्रय लेने वाले हजारों विस्थापित नागरिकों की ओर लगा हुआ है। उन्होंने कहा कि गाजा के अधिकारियों का कहना है कि इजराइल द्वारा अस्पताल को घेरने के परिणामस्वरूप हाल के दिनों में तीन नवजात शिशुओं सहित कई मरीजों की मौत हो गई है। दूसरी ओर, इज़राइल ने कहा है कि उसके सैनिक अस्पताल में प्रवेश करते समय अंदर मरीजों के लिए चिकित्सा आपूर्ति लेकर गये थे। साथ ही इज़रायली सेना ने कहा, “अस्पताल में प्रवेश करने से पहले हमारी सेना का सामना विस्फोटक उपकरणों और आतंकवादी दस्तों से हुआ, जिसके बाद लड़ाई हुई जिसमें आतंकवादी मारे गए।” उन्होंने कहा कि इजरायली सेना ने अपने बयान में कहा है कि हम इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि इजराइल से आईडीएफ टैंकों द्वारा लाए गए इनक्यूबेटर, शिशु आहार और चिकित्सा आपूर्ति सफलतापूर्वक शिफा अस्पताल तक पहुंच गई है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक इस युद्ध से चीन और रूस को होने वाले फायदे की बात है तो इस बारे में दुनिया में तमाम तरह की चर्चाएं चल रही हैं। उन्होंने कहा कि ग़ाज़ा में इजराइल और हमास के बीच युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है, ऐसे में यह सवाल भी उठ रहा है कि बड़ी शक्तियां कौन-सा रुख अपना सकती हैं। उन्होंने कहा कि एक ओर जहां ज्यादातर पश्चिमी देश इजराइल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन करने के लिए एकजुट हैं, वहीं चीन और रूस अपने गणित में व्यस्त हैं। व्यापक ‘ग्लोबल साउथ’ के साथ-साथ, चीन और रूस ने गाजा में इजराइल की सैन्य प्रतिक्रिया और फलस्तीनी नागरिकों पर इसके प्रभाव की आलोचना से झिझक नहीं की है। उन्होंने कहा कि इजराइल और हमास के बीच लड़ाई से रूस और चीन को फायदा होता है या नहीं, यह सोचने वाली बात होगी। पश्चिमी देश रूस और चीन के रुख को ऐसा अवसरवादी कह सकते हैं जिसके पीछे और रणनीतिक लाभ के लिए पश्चिमी देशों का उनका विरोध शामिल है। वैसे ‘ग्लोबल साउथ’ की राय अब भी प्रभावशाली हो सकती है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि 1960 के दशक में पनपा ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द आम तौर पर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। खासकर इसका मतलब, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बाहर, दक्षिणी गोलार्द्ध और भूमध्यरेखीय क्षेत्र में स्थित ऐसे देशों से है जो ज्यादातर कम आय वाले हैं और राजनीतिक तौर पर भी पिछड़े हैं। उन्होंने कहा कि बहरहाल, रूस और चीन को यह सुनिश्चित करना होगा कि यूक्रेन और गाजा संकट को लेकर परस्पर विरोधी रुख के चलते आलोचना से घिर कर कहीं उनकी स्थिति पश्चिमी देशों के समान न हो जाए। उन्होंने कहा कि खुद को महान शक्तियों के रूप में दिखाने और ग्लोबल साउथ का समर्थन हासिल करने के लिए, उन्हें नागरिकों की रक्षा करने और कानूनी और मानवीय दायित्वों को बरकरार रखने के लिए अपनी कथनी और करनी के अंतर को खत्म करना होगा, जैसा कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में व्यक्त किया गया है। उन्होंने कहा कि रूस और चीन दोनों ही देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है।

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ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इजराइल पर सात अक्टूबर को एकाएक किए गए हमास के भयावह हमले के बाद गाजा को लेकर दुनिया के देशों में विभाजन गहरा हो गया है। इस हिंसा पर इजराइल का सत्ता प्रतिष्ठान हक्का बक्का हो गया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी स्तब्ध रह गया। कई पश्चिमी देशों ने इजराइल का समर्थन किया। इजराइल की जवाबी कार्रवाई में गाजा से दस लाख से अधिक नागरिक विस्थापित हो गए, क्षेत्र की घेराबंदी की गई और बिजली, पानी की आपूर्ति बंद करने के साथ साथ मानवीय सहायता भी रोक दी गई। रूस और चीन ने अपने बयानों में संतुलन बनाने की कोशिश की जिसमें इजराइल की प्रतिक्रिया की आलोचना शामिल थी। इजराइल और हमास के बीच युद्ध के बाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को लड़ाई रोकने के लिए आम सहमति तक पहुंचने में संघर्ष करना पड़ा। एक तरफ अमेरिका और दूसरी तरफ रूस और कभी-कभी चीन के वीटो के कारण प्रस्तावों का मसौदा तैयार करने के चार प्रयास विफल रहे। ज्यादातर प्रस्तावित प्रस्तावों में नागरिकों पर हमलों की निंदा की गई थी। अमेरिकी आपत्तियों में इज़राइल के आत्मरक्षा के अधिकार की स्वीकृति न होना शामिल था। उन्होंने कहा कि इसके विपरीत, न तो रूस और न ही चीन ने मसौदा प्रस्तावों में युद्धविराम के आह्वान की कमी पर आपत्ति जताई। हमास की खुले तौर पर आलोचना न करने के मामले में भी वे पश्चिम से भिन्न रहे हैं। हमास के एक प्रतिनिधिमंडल ने युद्धविराम की संभावनाओं और बंधक स्थिति के समाधान पर चर्चा करने के लिए मास्को का दौरा भी किया था।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दोनों देशों ने हाल के दशकों में इज़राइल के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंध बनाए हैं। इजराइल में चीनी निवेश से लेकर सीरियाई गृहयुद्ध के दौरान रूसी और इज़राइली समन्वय तक, वे अरब दुनिया में जनता की राय के प्रति सचेत हैं, जो इज़राइल की सैन्य प्रतिक्रिया की आलोचना करता रहा है। उन्होंने कहा कि इजराइल की कार्रवाई को लेकर गुस्सा इतना अधिक है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की सरकारें भी सार्वजनिक रूप से खुद को इजराइल से दूर करने की जरूरत महसूस कर रही हैं। उन्होंने कहा कि हमास के लिए थोड़ी नरमी रखने वाले संयुक्त अरब अमीरात ने जहां इजराइल के साथ संबंध सामान्य कर लिए थे वहीं सऊदी अरब ऐसा करने की प्रक्रिया में था। लेकिन अब दोनों ने रुख बदल लिया है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वैसे रूस और चीन की स्थिति ने व्यापक वैश्विक भावना को भी प्रतिबिंबित किया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के अभाव में, सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधित्व वाली महासभा ने 27 अक्टूबर को मानवीय संघर्ष विराम के लिए एक गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव सफलतापूर्वक पारित किया। इस प्रस्ताव में नागरिकों पर हमलों की निंदा की गई और “नागरिकों की सुरक्षा तथा कानूनी एवं मानवीय दायित्वों को बनाए रखने” का आह्वान किया गया। रूस और चीन, अरब जगत के अधिकतर देशों और ग्लोबल साउथ के साथ 120 सदस्य देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि अमेरिका सहित 14 देशों ने विरोध में मतदान किया और आस्ट्रेलिया सहित 45 देशों ने मतदान से परहेज किया। अमेरिका ने प्रस्ताव में हमास के संबंध में कोई स्पष्ट जिक्र नहीं होने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि रूस का रुख यूक्रेन में उसके युद्ध से भी प्रभावित हो सकता है। यूक्रेन पर फरवरी 2022 में हमला करने के बाद रूस ने उसके कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया है। रूस उम्मीद कर सकता है कि इजराइल-हमास संघर्ष पश्चिमी देशों का ध्यान यूक्रेन से हटा सकता है तथा उसे (यूक्रेन को) हथियारों की आपूर्ति एवं अन्य व्यावहारिक सहायता रुक सकती है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि इज़राइल-हमास युद्ध के संबंध में रूस और चीन का रुख अब तक व्यापक ग्लोबल साउथ के अनुरूप रहा है। हालात ऐसे हैं कि पिछले कुछ हफ्तों में इजरायली राजनीतिक प्रतिष्ठान के भीतर रूस और चीन के प्रति अविश्वास बढ़ा है। उन्होंने कहा कि इज़राइल ने कभी भी रूस और चीन को अमेरिका के समान सहयोगी या तुलनीय सहायता की पेशकश करने वाला नहीं माना है, इसलिए सात अक्टूबर के हमले पर उनके (इन दोनों देशों के) बयानों में देरी और इज़राइल की सैन्य प्रतिक्रिया की उनके द्वारा आलोचना के दूरगामी परिणाम मिल सकते हैं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि जहां तक संयुक्त राष्ट्र में मतदान की बात है तो भारत ने ‘कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र’ में बस्तियां बसाने की इजराइली गतिविधियों की निंदा करने वाले प्रस्ताव सहित पश्चिम एशिया में स्थिति से संबंधित पांच प्रस्तावों के पक्ष में मतदान किया, जबकि एक से दूरी बनाई। उन्होंने कहा कि ‘पूर्वी यरुशलम सहित कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र और कब्जे वाले सीरियाई गोलान में इजराइली बस्तियां’ शीर्षक वाले मसौदा प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा की विशेष राजनीतिक और विउपनिवेशीकरण समिति (चौथी समिति) ने रिकॉर्ड 145 मतों से मंजूरी दे दी। मतदान में प्रस्ताव के विरोध में सात वोट पड़े और 18 देश अनुपस्थित रहे। प्रस्ताव के ख़िलाफ़ मतदान करने वालों में कनाडा, हंगरी, इज़राइल, मार्शल द्वीप, माइक्रोनेशिया संघीय राज्य, नाउरू और अमेरिका शामिल थे। भारत, बांग्लादेश, भूटान, चीन, फ्रांस, जापान, मलेशिया, मालदीव, रूस, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका और ब्रिटेन सहित 145 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि प्रस्ताव की शर्तों के अनुसार, महासभा पूर्वी यरुशलम सहित कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र और कब्जे वाले सीरियाई गोलान में बस्तियां बसाने की गतिविधियों और भूमि की जब्ती, व्यक्तियों की आजीविका में व्यवधान, नागरिकों के जबरन स्थानांतरण से जुड़ी किसी भी गतिविधि की निंदा करती है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा भारत ‘फलस्तीनी लोगों और कब्जे वाले क्षेत्रों के अन्य लोगों के मानवाधिकारों को प्रभावित करने वाले इजराइली गतिविधियों की जांच करने के लिए विशेष समिति के कार्य’ शीर्षक वाले मसौदा प्रस्ताव पर मतदान से अनुपस्थित रहा। इस प्रस्ताव को 13 के मुकाबले 85 मतों से मंजूरी दी गई, जबकि 72 सदस्य अनुपस्थित रहे। यह प्रस्ताव ‘‘इजराइल की उन नीतियों और गतिविधियों की निंदा करता है जो फलस्तीनी लोगों और कब्जे वाले क्षेत्रों के अन्य निवासियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं।’’ प्रस्ताव में “गैरकानूनी इजराइली कदमों, और उपायों के परिणामस्वरूप पूर्वी यरुशलम सहित कब्जे वाले फलस्तीनी क्षेत्र में गंभीर स्थिति के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की गई और निंदा की गई है तथा अवैध बस्तियों की इजराइली गतिविधियों और निर्माण को तत्काल बंद करने का आह्वान किया गया है।’’
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि एक अन्य मसौदा प्रस्ताव, जिसके पक्ष में भारत ने मतदान किया वह ‘कब्जे वाले सीरियाई गोलान’ से संबंधित था जिसे 146 के रिकॉर्ड वोट से अनुमोदित किया गया। प्रस्ताव में इजराइल से कब्जे वाले सीरियाई गोलान के भौतिक स्वरूप, जनसांख्यिकी, संस्थागत संरचना और कानूनी स्थिति को बदलने और विशेष रूप से बस्तियां बसाने से दूर रहने का आह्वान किया गया है। भारत ने ‘फलस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी के संचालन’ से संबंधित प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। इस मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में 160 और विरोध में 4 मत पड़े। सात सदस्य अनुपस्थित रहे। उन्होंने कहा कि भारत ने ‘फलस्तीनी शरणार्थियों को सहायता’ शीर्षक वाले मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में भी मतदान किया। इसे 161 मतों से मंजूरी दी गई। इस प्रस्ताव पर मतदान से 11 सदस्य अनुपस्थित रहे, जबकि सिर्फ इजराइल ने इसके विरोध में वोट दिया। प्रस्ताव में, फलस्तीन शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत एजेंसी के काम को जारी रखने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। उन्होंने कहा कि इसके बाद, भारत ने ‘फलस्तीनी शरणार्थियों की संपत्ति और उनका राजस्व’ शीर्षक वाले एक मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। प्रस्ताव के पक्ष में 156 और विरोध में 6 वोट पड़े।
प्रश्न-2. इजराइल और फिलस्तीन के मुद्दे पर हाल ही में जो अरब लीग की बैठक हुई थी उससे क्या निकल कर सामने आया?
उत्तर- अरब लीग की बैठक में कुछ स्पष्ट सामने नहीं आ पाया क्योंकि इसमें शामिल देश भले इजराइल की आलोचना कर रहे हों और फिलस्तीन के समर्थन में तमाम तरह की बातें कह रहे हों लेकिन खुल कर कोई भी आकर गाजा में मदद नहीं कर रहा है।
प्रश्न-3. रूस और यूक्रेन युद्ध अब किस पड़ाव पर पहुँचा है? इस समय कौन बढ़त लिये हुए है?
उत्तर- फिलहाल युद्ध स्थिर नजर आ रहा है और इसे चलते हुए भले 630 दिन से ज्यादा हो गये हैं लेकिन फिर भी इसके समापन के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि दोनों ही पक्षों का अपने रुख पर अड़े रहना दर्शा रहा है कि युद्ध अभी लंबा खिंचेगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि ताजा खबर यह है कि यूक्रेन ने दावा किया है कि उसके बलों ने डीनिप्रो नदी के पूर्वी तट पर एक महत्वपूर्ण सफलता हासिल कर ली है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन पश्चिमी देशों से और हथियार देने का आग्रह कर रहा है और उसने इस समय अपने चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ को अमेरिका भेजा हुआ है। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में यूक्रेन का यह दावा करना महत्वपूर्ण है कि वह युद्ध में निर्णायक बढ़त हासिल कर रहा है। उन्होंने कहा कि इससे यूक्रेन के मददगार देशों के बीच यह संदेश जायेगा कि उनका दिया हुआ धन और गन बेकार नहीं जा रहा है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदमीर ज़ेलेंस्की ज़ेलेंस्की की वेबसाइट के अनुसार, उनके चीफ ऑफ स्टाफ एंड्री यरमैक ने अमेरिका में हडसन इंस्टीट्यूट थिंक टैंक को बताया कि सभी बाधाओं के बावजूद, यूक्रेन के रक्षा बलों ने डीनिप्रो के बाएं (पूर्वी) तट पर पैर जमा लिया है। उन्होंने कहा कि उनका यह बयान यूक्रेन द्वारा खेरसॉन क्षेत्र में डीनिप्रो के पूर्वी तट पर पैर जमाने की पहली आधिकारिक पुष्टि थी। इससे क्रीमिया की ओर एक संभावित मार्ग खुल जाता है। जिस पर 2014 में रूस ने कब्ज़ा कर लिया था और हाल के हफ्तों में यह यूक्रेनी हमलों का केंद्र रहा है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन ने दावा किया है कि उसने क्रीमिया तक की 70% दूरी तय कर ली है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि फरवरी 2022 के आक्रमण के शुरुआती दिनों में रूसी सेना ने यूक्रेन के दक्षिणी खेरसॉन क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था। हालाँकि, पिछले साल के अंत में, वे क्षेत्रीय राजधानी, जिसे खेरसॉन भी कहा जाता है, से बाहर निकल गए और डीनिप्रो के पश्चिमी तट को छोड़ दिया। अब वहां वापस यूक्रेन अपना कब्जा होने का दावा कर रहा है। उन्होंने कहा कि रूसी सेना की बात करें तो उसने अब पूर्वी यूक्रेन पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने अक्टूबर के मध्य से अवदिव्का को निशाना बनाया है और शहर के अधिकारियों का कहना है कि युद्ध-पूर्व की आबादी 32,000 थी पर अब एक भी इमारत बरकरार नहीं बची है। उन्होंने कहा कि ज़ेलेंस्की ने भी अपने संबोधन में कहा है कि अवदीवका सहित पूर्वी डोनेट्स्क क्षेत्र में रूसी हमले “बहुत तीव्र” थे, लेकिन रूस तेजी से जनशक्ति और उपकरण खो रहा है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यूक्रेन दुनिया को बार-बार कह रहा है कि उसे और हथियारों की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इजराइल-हमास संघर्ष शुरू होने के बाद से दुनिया का ध्यान यूक्रेन को मदद देने से हट गया है जिससे जेलेंस्की को काफी परेशानी हो रही है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन पश्चिमी देशों से अपील कर रहा है कि उसे अभी हथियारों की ज़रूरत है क्योंकि रूस के पास अभी भी हवाई हमलों में श्रेष्ठता है। उन्होंने कहा कि रूस के आक्रमण के बाद से अमेरिका ने यूक्रेन को 46 अरब डॉलर से अधिक की सैन्य सहायता भेजी है। हालाँकि, 7 अक्टूबर को इज़राइल-हमास युद्ध के फैलने के बाद से, अमेरिकी सांसदों ने यूक्रेन को और सहायता देने के बारे में संदेह व्यक्त किया है और इज़राइल को धन पुनर्निर्देशित करने की वकालत की है। उन्होंने कहा कि यूक्रेन के लिए फिलहाल राहत की बात यही है कि उसके एक अन्य प्रमुख सहयोगी देश जर्मनी ने हाल ही में अगले साल यूक्रेन को अपनी सैन्य सहायता दोगुनी कर 8.6 अरब डॉलर करने की योजना की घोषणा की है।
प्रश्न-4. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात को आप कैसे देखते हैं? क्या दोनों देशों की दूरियां कम हो रही हैं?
उत्तर- बाइडन ने जिनपिंग के लिए जो सम्मान और गर्मजोशी दिखाई वह अद्भुत थी। उन्होंने कहा कि बाइडन ने सैन फ्रांसिस्को से लगभग 30 मील (48 किमी) दक्षिण में फिलोली एस्टेट में चीनी नेता का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि APEC की बैठक अपेक्षाकृत चीनी आर्थिक कमजोरी, पड़ोसियों के साथ बीजिंग के क्षेत्रीय झगड़े और मध्य पूर्व संघर्ष के बीच हो रही है जो अमेरिका को सहयोगियों से विभाजित कर रहा है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि शी जिनपिंग अमेरिका से सम्मान की उम्मीद में बैठक में आए क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था सुस्त वृद्धि से उबरने के लिए संघर्ष कर रही है। उन्होंने कहा कि बैठक के दौरान दोनों नेताओं के हाव-भाव ओर बयान गौर करने लायक हैं। उन्होंने कहा कि बैठक के बाद जाते समय दोनों नेताओं के हाथ जोड़ने का वीडियो देखने लायक है। साथ ही जब दोनों नेता एक भव्य सम्मेलन कक्ष में लंबी मेज पर एक-दूसरे के सामने बैठे थे, तो शी ने बाइडन से कहा, “दोनों देशों की सफलता के लिए पृथ्वी काफी बड़ी है।” इस दौरान बाइडन ने कहा कि अमेरिका और चीन को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके बीच प्रतिस्पर्धा “संघर्ष में न बदले” और दोनों अपने रिश्ते को “जिम्मेदारी से” आगे बढ़ाएं।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दोपहर के भोजन के बाद, लगभग चार घंटे तक चली बातचीत के बाद नेताओं ने उस हवेली के सुव्यवस्थित बगीचे में एक साथ थोड़ी देर की सैर भी की। यह पूछे जाने पर कि बातचीत कैसी चल रही है, तो बाइडन ने पत्रकारों की ओर हाथ हिलाया और संकेत दिया कि सब “ठीक है”। उन्होंने कहा कि बैठक के दौरान शी जिनपिंग ने अमेरिका-चीन संबंध को “दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंध” करार दिया। उन्होंने कहा, “चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे दो बड़े देशों के लिए, एक-दूसरे से मुंह मोड़ना कोई विकल्प नहीं है।” उन्होंने कहा कि यह दोनों नेताओं की एक साल के भीतर दूसरी बार आमने-सामने की मुलाकात थी। दोनों पिछले साल 14 नवंबर को इंडोनेशिया के बाली में जी20 शिखर-सम्मेलन से इतर व्यक्तिगत रूप से मिले थे।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि शी की अमेरिका यात्रा के बारे में चीन ने कहा था कि बीजिंग प्रतिस्पर्धा से नहीं डरता, लेकिन हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि चीन-अमेरिका संबंध प्रतिस्पर्धा से परिभाषित होने चाहिए। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि अमेरिका को चीन के हितों को लेकर अपनी चिंताओं पर जोर देने के बजाय उसकी चिंताओं का और विकास के वैध अधिकार का सम्मान करना चाहिए। चीनी प्रवक्ता ने कहा था कि चीन नहीं चाहता कि अमेरिका बदले और ना ही अमेरिका को चीन को बदलने का प्रयास करना चाहिए। चीनी प्रवक्ता ने कहा था कि उसे उम्मीद है कि अमेरिका उसके साथ नया शीत युद्ध नहीं चाहने और स्थिर विकास के लिए द्विपक्षीय संबंधों को पटरी पर लाने के लिए चीन के साथ काम करने की अपनी प्रतिबद्धता पर अमल करेगा।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि चार घंटे की मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं ने उच्च स्तरीय सैन्य संचार, मादक द्रव्य विरोधी सहयोग और कृत्रिम मेधा पर चर्चा फिर से शुरू करने पर सहमति व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि एक संवाददाता सम्मेलन में बाइडन ने कहा, ‘‘क्या जरूरी है और क्या नहीं है, क्या हानिकारिक है और क्या संतोषजनक है, यह सब कुछ निर्धारित करने के लिए यह सही दिशा में उठाया गया कदम है। अमेरिका पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ अपनी प्रतिस्पर्धा जारी रखेगा, लेकिन हम इस प्रतिस्पर्धा को जिम्मेदारी के साथ जारी रखेंगे, ताकि यह किसी विवाद में न बदल जाए।’’ बाइडन ने कहा कि जब दोनों पक्षों में बातचीत नहीं होती है तो ‘‘मतभेद बढ़ जाते’’ हैं, ऐसे में अब दोनों राष्ट्रपतियों को ‘‘एक दूसरे का फोन उठाकर सीधे तौर पर एक दूसरे की बात सुननी चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि पिछले साल तत्कालीन अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे के बाद चीन ने सैन्य संचार बंद कर दिया था। बीजिंग स्व-शासित ताइवान को अपना क्षेत्र मानता है और जरूरत पड़ने पर बलपूर्वक इस पर अधिकार स्थापित करने की धमकी देता है। उन्होंने कहा कि संवाददाता सम्मेलन में बाइडन ने कहा कि हालांकि, उनके बीच कई मतभेद थे, लेकिन शी ‘‘अपनी बात को लेकर स्पष्ट रहे।’’
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि दोनों पक्षों ने उन क्षेत्रों में कई अन्य समझौतों की भी घोषणा की जो हाल के दिनों में तनाव की वजह बने हुए थे। दोनों देश संयुक्त रूप से कृत्रिम मेधा (एआई) में अपार संभावनाएं तलाशने पर सहमत हुए। उन्होंने कहा कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं अमेरिका और चीन के बीच संवाद शुरू होना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि यह शिखर बैठक न सिर्फ राष्ट्रपति बाइडन के दृष्टिकोण से, बल्कि राष्ट्रपति शी के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। चीन की अर्थव्यवस्था संकट के दौर से गुजर रही है। उसकी विकास यात्रा में कुछ मुद्दे हैं, बेरोजगारी है। उन्होंने कहा कि अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं और दो युद्ध भी जारी हैं- एक पश्चिम एशिया में और एक यू्क्रेन में। इसलिए उसे एक ऐसे चीन की जरूरत है, जो स्थिर हो, उसे एक ऐसे चीन की जरूरत है, जो सहयोगात्मक हो। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से भारत इस पर बहुत गंभीरता से नजर रखे हुए है।
प्रश्न-5. रिपोर्टें हैं कि चिन राज्य में भीषण लड़ाई के बाद म्यांमा के दो हजार लोग भागकर भारत आ गये हैं। कहीं इससे मिजोरम को उसी तरह तो खतरा नहीं हो जायेगा जैसा कि मणिपुर में हाल में देखने को मिला था? मणिपुर हिंसा के समय भी बाहरी तत्वों पर ही तमाम तरह के आरोप लगे थे। म्यांमा की स्थिति को देखते हुए भारत सरकार को क्या एहतियाती प्रबंध करने चाहिए?
उत्तर- मणिपुर का सशक्त उदाहरण हमारे सामने है क्योंकि उसके पीछे भी चीनी साजिश सामने आई थी। उन्होंने कहा कि दरअसल पूर्वोत्तर क्षेत्र में सीमा का बड़ा इलाका ऐसा है जहां की भूभागीय स्थिति ऐसी है कि वहां किसी प्रकार की फेंसिंग नहीं हो सकती इसलिए दोनों ओर रहने वाले लोग आसानी से इधर उधर आते जाते रहते हैं। चीन इसी बात का फायदा उठाते हुए पूर्वोत्तर भारत में मुश्किलें खड़ी करने का प्रयास करता रहता है। वह सीधे कुछ नहीं करता लेकिन भारत की सीमा से सटे देशों के सशस्त्र समूहों को हर तरह की मदद देता है ताकि वह भारत में माहौल बिगाड़ें इसलिए इस समय सैन्य शासित म्यांमा में जो कुछ हो रहा है उस पर भारत सरकार को कड़ी नजर रखनी चाहिए। मणिपुर में हिंसा के कारणों के संदर्भ में पूर्व सेनाध्यक्ष एमएम नरवणे ने चीन के बारे में जो बयान दिया था वह हमें ध्यान होना चाहिए।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि म्यांमा के चिन राज्य में भीषण लड़ाई हो रही है क्योंकि यहां सैन्य शासन के खिलाफ सबसे ज्यादा विद्रोह देखने को मिलता है इसलिए यहां हवाई हमले भी किये गये। उन्होंने कहा कि हवाई हमलों के बाद लोग काफी डरे हुए हैं इसलिए हजारों की संख्या में मिज़ोरम की अंतरराष्ट्रीय सीमा से लोग भारत आ गये हैं। यह स्थिति तब है जब पहले ही बड़ी संख्या में म्यांमा के लोग मिजोरम और मणिपुर में रह रहे हैं। उन्होंने कहा कि म्यांमा में सत्तारुढ़ जुंटा समर्थित सुरक्षा बलों और मिलिशिया समूह ‘पीपुल्स डिफेंस फोर्स’ (पीडीएफ) के बीच भीषण गोलीबारी में कई लोगों के मारे जाने की खबर है इसलिए वहां दहशत और भगदड़ मची। उन्होंने कहा कि लड़ाई तब शुरू हुई जब पीडीएफ ने भारतीय सीमा के पास चिन राज्य में खावमावी और रिहखावदार में दो सैन्य ठिकानों पर हमला किया। इसके बाद चिन के खावमावी, रिहखावदार और पड़ोसी गांवों के हजारों लोग गोलीबारी से बचने के लिए भारत आ गए और चम्फाई जिले के ज़ोखावथर में शरण ली। उन्होंने कहा कि मिलिशिया ने म्यांमा के रिहखावदार में स्थित सैन्य अड्डे पर सोमवार तड़के और खावमावी के अड्डे पर दोपहर में कब्ज़ा कर लिया। जवाबी कार्रवाई में म्यांमा की सेना ने सोमवार को खावमावी और रिहखावदार गांवों पर हवाई हमले किए।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि वैसे भारत सरकार ने अभी दो दिन पहले ही यूएपीए के तहत नौ मेइती संगठनों, जिनमें उनकी राजनीतिक शाखाएं भी शामिल थीं, पर प्रतिबंध पांच साल के लिए बढ़ा दिया है। लेकिन क्षेत्र की अस्थिर स्थिति के लिए एक सुसंगत दृष्टिकोण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार के आंतरिक सुरक्षा और राजनयिक प्रयासों और राज्य सरकारों के दृष्टिकोणों में भी समन्वय होना चाहिए।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि भारत और म्यांमार 1,643 किमी लंबी भूमि सीमा साझा करते हैं। यह एक खुली सीमा है, जिसे दोनों तरफ 16 किमी की मुक्त आवाजाही व्यवस्था (एफएमआर) द्वारा परिभाषित किया गया है। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर के चार राज्य म्यांमा के साथ सीमा साझा करते हैं। म्यांमा में 2021 में हुए सैन्य तख्तापलट से दो भारतीय राज्यों मणिपुर और मिजोरम पर सर्वाधिक असर पड़ा है क्योंकि वहां से भाग कर लोग इन दोनों राज्यों में बड़ी संख्या में आये हैं। उन्होंने कहा कि जब लोग बड़ी संख्या में भाग कर शरण ले रहे होते हैं तब इससे संसाधनों पर तो बोझ बढ़ता ही है साथ ही यह सुनिश्चित कर पाना मुश्किल होता है कि भीड़ में से कौन अराजक तत्व है और कौन पीड़ित है। उन्होंने कहा कि म्यांमा में खराब हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सैन्य शासन ने अब अपने ही नागरिकों के खिलाफ वायु सेना का धड़ल्ले से उपयोग करना शुरू कर दिया है।
ब्रिगेडियर श्री डीएस त्रिपाठी जी (सेवानिवृत्त) ने कहा कि म्यांमा में लोकतांत्रिक सरकार के पतन के बाद से शरणार्थियों की आमद अंतरराष्ट्रीय नशीले पदार्थों के व्यापार को बढ़ावा दे रही है जोकि चिंता की बात है। उन्होंने कहा कि म्यांमा से संभावित खतरों को भारत सरकार द्वारा प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि रिश्तेदारी संबंधों के कारण यह संभव नहीं है कि भारत में शरणार्थियों का प्रवाह रोका जा सके। मिज़ोरम सरकार का उनके प्रति उदार रवैया चिन शरणार्थियों और मिज़ोस के बीच संबंधों से प्रेरित है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को शरणार्थियों को यहां लाने वाले कारक को बेअसर करने के लिए म्यांमा के सैन्य शासन के साथ अपने प्रभाव का उपयोग करने की आवश्यकता है।

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