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म्यांमा में अस्थिरता और मणिपुर के हथियारबंद समूहों का राज्य पर दुष्प्रभाव : कलिता

सेना के पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलिता ने शनिवार को कहा कि मणिपुर में युद्धरत समूहों के पास बड़ी संख्या में हथियारों की उपलब्धता और पड़ोसी म्यांमा में अस्थिरता का संघर्षग्रस्त पूर्वोत्तर राज्य की स्थिति पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
कलिता ने कहा कि सेना और असम राइफल्स, मणिपुर पुलिस और वहां तैनात केंद्रीय अद्धसैनिक बलों (सीएपीएफ) के साथ मिलकर राज्य में हिंसा को काफी हद तक नियंत्रित करने में सक्षम हुई है। मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच गत कई महीनों के तनाव एवं संघर्ष की स्थिति है।
सेना के पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल कलिता ने कहा, ‘‘दोनों समुदायों के पास बड़ी संख्या में हथियारों की उपलब्धता और सीमा पार म्यांमा में अस्थिरता का मणिपुर की स्थिति पर खासा प्रभाव पड़ा है।’’

वह शनिवार को विजय दिवस के अवसर पर यहां पूर्वी कमान मुख्यालय फोर्ट विलियम में विजय स्मारक पर आयोजित पुष्पांजलि समारोह के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि संघर्षग्रस्त राज्य में हिंसा की कुछ छिटपुट घटनाएं होने की आशंका है लेकिन सेना और असम राइफल्स का उद्देश्य ऐसी घटनाओं को काफी हद तक नियंत्रित करना है।
लेफ्टिनेंट जनरल कलिता ने कहा, ‘‘ केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा शांति और सुलह प्रक्रिया चलाई जा रही है, हमारा ध्यान हिंसा को कम करने पर रहा है।’’
कलिता ने कहा, हालांकि इस समस्या के समाधान के लिए कोई समय सीमा बताना मुश्किल है क्योंकि इसमें कई ऐतिहासिक और विरासती मुद्दे जुड़े हैं।

पूर्वी कमान के कमांडर ने कहा कि सेना और असम राइफल्स को इस साल तीन मई को मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हुई झड़पों के बाद बुलाया गया था और वे कुछ समय बाद ही कानून और व्यवस्था स्थापित करने और स्थिति पर नियंत्रण स्थापित करने में सक्षम थे।
इस अवसर पर 30 मुक्ति योद्धाओं, सेवारत बांग्लादेश सेना के अधिकारियों और परिवार के सदस्यों सहित 70 से अधिक सदस्यीय बांग्लादेशी प्रतिनिधिमंडल को बधाई देते हुए, कलिता ने कहा कि पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के युद्ध में भारत की ऐतिहासिक जीत से न केवल एक नए राष्ट्र का जन्म हुआ बल्कि दक्षिण एशिया की भू-राजनीति भी बदल गयी।
उन्होंने कहा, ‘‘ 1971 के युद्ध में पूर्वी कमान सबसे आगे थी, इसलिए विजय दिवस कमान के इतिहास में गौरव का विशेष स्थान रखता है।

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