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संगीत एक ऐसा जादू है, जो हर किसी को अपनी तरफ आकर्षित करता है और इसको सुनने से हमारा मन शांत होता है। हालांकि एक यंत्र से जादू बिखेरना और सबको मंत्रमुग्ध कर देना हर किसी के बस की बात नहीं है। ऐसा ही एक यंत्र बांसुरी है। यह बात सच है कि आज के समय में गानों में बांसुरी की धुन को कम कर दिया गया है, लेकिन अगर आप आज भी बांसुरी की धुनों में गाना सुनते हैं, तो आप उससे कनेक्ट कर पाते हैं।
बांसुरी बजाकर सबके दिलों पर राज करना हर किसी के बस की बात नहीं है, लेकिन इसके बाद भी ‘बांसुरी के जादूगर’ कहे जाने वाले भारतीय शास्त्रीय बांसुरी वादक, संगीतकार और संगीत निर्देशक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने अपनी कला से बांसुरी का ऐसा जादू बिखेरा कि वह देश-विदेश में भी जाने जाते हैं। आज यानी की 01 जुलाई को भारतीय शास्त्रीय बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया अपना 86वां जन्मदिन मना रहे हैं। तो आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर भारतीय शास्त्रीय बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…
जन्म और शिक्षा
प्रयागराज के सेनिया घराने में 01 जुलाई 1938 को पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम छेदीलाल था, जोकि अपने बेटे को नामी पहलवान बनाना चाहते हैं। पहलवान बनने के लिए हरिप्रसाद चौरसिया ने कुछ समय ट्रेनिंग भी ली और साथ में शॉर्ट हैंड की कला भी सीखी। लेकिन हरिप्रसाद चौरसिया का मन तो शुरूआत से ही संगीत में रमा था, लेकिन वह अपनी और अपने परिवार की इच्छाओं के बीच फंसे थे। लेकिन एक दिन उनको उम्मीद की किरण दिखी। हरिप्रसाद का परिवार संगीत से कोसों दूर था, लेकिन पड़ोस से आने वाली संगीत की धुन उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती थी।
बच्चे की बांसुरी से की शुरूआत
बताया जाता है कि एक दिन पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने एक बच्चे की बांसुरी मांगकर बजाई। उस दौरान उन्होंने इसके लिए ट्रेनिंग भी नहीं ली थी। लेकिन इसके बावजूद, उनके द्वारा बजाई गई बांसुरी की धुन सभी के दिलों में घर कर गई। जिस दौरान उन्होंने यह धुन बजाई, उस समय माघ मेला लगा था। वहीं मशहूर संगीतकार राजा राम भी मौजूद थे। जब उन्होंने पंडित हरिप्रसाद को बांसुरी बजाते देखा, तो उन्होंने ठान लिया कि वह इनको ट्रेनिंग जरूर देंगे।
ऐसे शुरू हुआ सफर
इस घटना के बाद पंडित हरिप्रसाद के संगीत का सफर शुरू हो गया। उन्होंने पंडित राजा राम से ट्रेनिंग लेना शुरूकर दिया और आगे चलकर हरिप्रसाद चौरसिया और बांसुरी एक-दूसरे के पर्याय बन गए। जिस दौरान पंडित हरिप्रसाद संगीत की ट्रेनिंग लेनी शुरू की थी, उस दौरान उनकी आयु 14-15 साल की थी। ट्रेनिंग लेने के बाद उनके जीवन में तमाम बड़े-बड़े बदलाव हुए। पंडित हरिप्रसाद की बांसुरी की धुन दूर-दूर तक पहुंचने लगी और लोगों को पसंद आने लगी।
पंडित राजा राम से ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने प्रमुख संगीतकार अन्नपूर्णा देवी से भी ट्रेनिंग लेनी चाही, लेकिन इसके लिए उन्होंने पंडित हरिप्रसाद के सामने एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि पंडित हरिप्रसाद को दांयी की जगह बांयी तरह से बांसुरी बजानी होगी।
आकाशवाणी से की शुरूआत
पंडित हरिप्रसाद को अपनी कला से मिली प्रसिद्धी के बाद आकाशवाणी प्रयागराज में कार्यक्रम मिलने लगा। आकाशवाणी के साथ साल 1952 में उन्होंने अपने करियर की शुरूआत की। बांसुरी बजाने में महारत हासिल करने के बाद उनको प्रेम पूर्वक पंडित की उपाधि दी गई।
कई फिल्मों में दिया संगीत
आकाशवाणी से शुरूआत करने के बाद उनके अच्छे दिन शुरू हो गए। इसके बाद उन्होंने मुंबई का रुख किया और संतूर के सबसे बड़े वादक शिव कुमार शर्मा के साथ जोड़ी बनाई। इस जोड़ी ने चांदनी, डर, लम्हा और सिलसिला समेत कई बॉलीवुड फिल्मों में कमाल का संगीत दिया।
सम्मान
साल 1984 में पंडित हरिप्रसाद चौरसिया को संगीत नाटक अकादमी, 1992 में पद्म भूषण और कोणार्क सम्मान से नवाजा गया। फिर साल 2000 में पद्म विभूषण तथा हाफिज अली खान पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा पंडित हरिप्रसाद चौरसिया को फ्रांसीसी सरकार का ‘नाइट ऑफ द आर्डर ऑफ आर्ट्स एंड लेटर्स’ पुरस्कार दिया गया और ब्रिटेन के शाही परिवार की तरफ से सम्मानित किया गया।