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संगीत की दुनिया में कई फनकार पैदा हुए और मर गए, लेकिन इन सबके बीच कुछ फनकार ऐसे भी हैं जो अपने काम से अमर हो गए और उन्होंने वह मुकाम हासिल किया है, जिसे बरसों बाद भी भुला पाना उनके संगीत के चाहने वालों के लिए नामुमकिन है। कुछ ऐसे ही थे रिदम किंग और ताल के बादशाह कहे जाने वाले ओपी नैय्यर। नैय्यर साहब ने न जाने कितने गानों में अपने संगीत का जादू बिखेरा है। कभी न भुलाया जा सकने वाला संगीत देने वाले ओपी नैय्यर साहब आज ही के दिन इस दुनिया में आये थे।
लाहौर में 16 जनवरी 1926 में लाहौर में जन्मे ओपी नैय्यर ने आसमान फिल्म से अपने करियर की शुरुआत की थी। उन्हें हिंदी फ़िल्म उद्योग के सबसे लयबद्ध और मधुर संगीत निर्देशकों में से एक माना जाता है। उनको पहचान गुरुदत्त की फिल्मों आरपार, मिस्टर एंड मिसेज 55, सीआईडी और तुम सा नहीं देखा से मिली। ओपी नैय्यर अपने समय के पहले ऐसे संगीतकार थे, जिन्होंने लता मंगेश्कर की आवाज का इस्तेमाल किए बगैर इतना सुरीला संगीत दिया है।
उन्होंने नया दौर के लिए 1958 में सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीता था। नैयर साहब ने गीता दत्त, आशा भोसले, मोहम्मद रफ़ी के साथ बड़े पैमाने पर काम किया, हालाँकि बॉलीवुड की प्रमुख महिला गायिका लता मंगेशकर के साथ नहीं। वे किशोर कुमार को उनके लोकप्रिय गायक बनने से बहुत पहले ही पहचान चुके थे। बाप रे बाप (1955) जैसी फ़िल्म किशोर कुमार की खास “ओपी” शैली की हिट फ़िल्मों में से एक है साथ ही फ़िल्म रागिनी (1958) भी लेकिन यह रिश्ता ज़्यादा दिनों तक नहीं चला।
ओपी नैय्यर की मुलाकात एक और महान गायिका आशा भोंसले से हुई। आशा ताई को आशा भोसले बनाने का श्रेय अगर किसी को दिया जा सकता है तो वो थे ओ पी नैय्यर। उन्होंने आशा की आवाज की रेंज का पूरा फायदा उठाया। कई फिल्मों में एक साथ काम करने के दौरान नैय्यर साहब और आशा भोसले काफी करीब आ गए लेकिन यही प्रेम संबंध नैय्यर साहब की बर्बादी का कारण भी बन गया। दोनों के प्रेम संबंधों के बारे में संगीत इतिहासकार राजू भारतन ने अपनी किताब ‘अ जर्नी डाउन मेमोरी लेन’ में लिखा है, ओ पी नैय्यर का आशा भोंसले के साथ प्रेम संबंध 14 साल तक चला।
एक जमाने में ओ पी नैय्यर की कैडलक कार में घूमने वाली आशा भोंसले ने 1972 में अपने जीवन के इस संगीतमय अध्याय को खत्म करने का फैसला किया। इसके बाद आशा भोंसले और ओपी नैय्यर ने एक छत के नीचे कभी कदम नहीं रखा। लेकिन दोनों की गहरी मोहब्बत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि एक बार नैय्यर साहब ने एक पत्रकार से कहा था, ‘ये तो सुना था कि लंव इज ब्लाइंड, लेकिन मेरे मामले में लव ब्लाइंड के अलावा डेफ यानी बहरा भी था, क्योंकि आशा की आवाज के अलावा मैं और कोई आवाज सुन नहीं पाता था’।
क्या थी ओपी साहब की खासियत
संगीत में सुर अगर अच्छे से लगे तो आंख भर आती है वहीं ताल अच्छी हो तो कदम अपने आप थिरकने लगते हैं। नैय्यर साहब के संगीत का सबसे खास पहलू उनकी रिदम पर पकड़ है। पंजाब के ढोल पर बजने वाले लोक गीतों को उन्होंने बड़ी खूबसूरती से इस्तेमाल किया। ‘उड़े जब-जब ज़ुल्फें तेरी’, ‘रेशमी सलवार कुर्ता जाली दा’, ‘कजरा मोहब्बतवाला’। अंग्रेज़ी की मार्च को उन्होंने 50 और 60 के दशक के संगीत की पहचान बना दिया। चलते हुए तांगे की फील देने वाली ये रिदम आपने ‘दीवाना हुआ बादल’ और ‘जिसने तुम्हें बनाया’ में सुनी होगी।