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साइबर क्राइम पर बनीं डॉक्यूमेंट्री Bogus Phone Operators आज चर्चा का विषय है। डॉक्यूमेंट्री का विषय भारतीय फोन घोटालेबाज खुद को आईआरएस अधिकारी बताकर हजारों अमेरिकियों से 50 मिलियन डॉलर से अधिक का घोटाला कर रहे हैं। 2016 में ‘ठाणे कॉल सेंटर स्कैम’ ने बीपीओ इंडस्ट्री में सभी को चौंका दिया था। भारत के घोटालेबाजों ने आईआरएस अधिकारियों का रूप धारण करके अमेरिकियों से 50 मिलियन डॉलर ठग लिए, विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों को निशाना बनाकर। लोगों में डर पैदा किया और पैसा भारत ट्रांसफर करवा लिया गया। डॉक्यूमेंट्री इन कॉल सेंटर अपराधों की कार्यप्रणाली को उजागर करती है क्योंकि ये लगातार बढ़ रहे हैं। डॉक्यूमेंट्री Bogus Phone Operators एक अपराध पर आधारित डॉक्यूमेंट्री है, जिसे आप (UA 16+ )जियो टीवी पर देख सकते हैं। यह 42 मिनट की डॉक्यूमेंट्री है जिसकों सत्यप्रकाश उपाध्याय (Satyaprakash Upadhyay) ने बनाया है। डॉक्यूमेंट्री के निर्देशक सत्यप्रकाश उपाध्याय से प्रभासाक्षी की पत्रकार ने डॉक्यूमेंट्री के विषय और उसे बनाने के पीछे के मकसद, साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ‘भारत को साइबर अपराध का गढ़’बनाने वाली छवि पर भी सवाल किए गये हैं। आइये पढ़ते हैं सत्यप्रकाश उपाध्याय के साथ की गयी लिखित चर्चा के कुछ अंश।
(Satyaprakash Upadhyay Interview)
सवाल- साइबर क्राइम पर कम ही बात की जाती है लेकिन आज ये सबसे बड़ी समस्या है। मासूम लोगों को शिकार बनाया जाता है। ऐसे मेंडॉक्यूमेंट्री के ये विषय आपने क्या सोच कर चुना?
साइबर क्राइम एक विशाल सब्जेक्ट हैं, हमारी फिल्म साइबर क्राइम के एक चैप्टर फर्जी कॉल सेंटर घोटाले के सिस्टम को दर्शाती है। फ़िल्म के रिसर्च के दौरान तीन अनिवार्य कारणों ने मुझे इस विषय पर काम करने के लिए प्रेरित किया। पहली बात, मुझे यह जानकर दुख हुआ कि जो उम्र दराज़ लोग सेवानिवृत्ति का जीवन जी रहे हैं और अपनी बचत पर निर्भर हैं, वे इस तरह केघोटालों का शिकार बन रहे है। मेरे विचार से यह सबसे बड़ा पाप है जिससे मैं सबसे ज्यादा असहज था। दूसरी बात, अपने शोध में मुझे दूसरे प्रकार के पीड़ितों का भी पता चला है, वे किशोरावस्था के बच्चे थे। ये अपने परिवार को आर्थिक रूप सेसमर्थन देने के लिए या एक समृद्ध जीवन शैली जीने की इच्छा और जल्दी पैसे कमाने के लिए ऐसे फर्जी कॉल सेंटर का हिस्सा बन गए थे। मैंउनका बचाव करने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ लेकिन मैं जानता हूँ कि एक बड़ी योजना में वे सिर्फ छोटी कठपुतलियाँ हैं जिनका इस्तेमाल किया जा रहा है और पकड़े जाने पर उनके आकाओं ने उन्हें सबसे पहले त्याग दिया था।
और अंत में, जिस बात ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया था, वह था फर्जी कॉल सेंटर उद्योग का आकार और बुद्धिमत्ता। यह एक व्यवस्थित रूप से काम करता है, जिसमें युवा आसानी से पैसे कमाने के लिए कानून को तोड़ने को तैयार रहते हैं। उन्होंने दुनिया भर में लोगों को धोखा देनेके लिए ग़ैर कानूनी और आधुनिक तकनीक का ग़लत उपयोग करते हुए अपने तरीकों में सुधार किया है। हमारा व्यक्तिगत डेटा पहले से ही उनकेहाथों में है। उनके पास हर 6 महीने में नए डेटा के साथ नयी धोकाधड़ी की योजनाएँ आती हैं। यह चिंताजनक है कि कैसे उन्हें वैध कॉर्पोरेटनौकरियों के समान उचित प्रशिक्षण मिलता है, जिससे वे अपनी धोखाधड़ी की योजनाओं में और भी अधिक प्रभावी हो जाते हैं।”
सवाल- इस डॉक्यूमेंट्री को बनाने के पीछे किस तरह की अप्रोच थी?
उन्होंने कहा- मैं इस डॉक्यूमेंट्री विषय पर एक जिज्ञासु मनोभाव और जांच करने की दृष्टि कोण से आगे बढ़ा।फ़िल्म बनाते वक़्त मैंने यह भी ध्यान में रखा किइस अपराध की जटिलता को सामान्य व्यक्ति द्वारा समझा जाए, ताकि वे अपने आप को इसका शिकार बनने से बचा पाएँ।
सवाल- अमेरिकियों से 50 मिलियन डॉलर से अधिक की ठगी साइबर क्राइम के माध्यम से हुई है। इस क्राइम को करने वाला मास्टरमाइंडभारतीय है। ऐसे में क्या आपको नहीं लगता की भारत की छवि इससे धूमिल हो रही हैं?
हमारा देश अपराध और अपराधियों का साथ नहीं देता, यही कारण हैं कि भारत और अमेरिका के बीच अंतर्राष्ट्रीय साइबर क्राइम के ख़िलाफ़ एक्स्ट्राडिशन जैसी कई ट्रीटी अस्तित्व में हैं और आपको यह भी समझना होगा कि फर्जी कॉल सेंटर उद्योग में “मास्टरमाइंड” शब्द केवल एकछलावा है, इस नेटवर्क में बड़े खिलाड़ी हैं और यह ज़रूरी नहीं है कि वे केवल एक देश या क्षेत्र से इस सिस्टम को चला रहें हो। हम इस जटिलमुद्दे को इस बात से समझ सकते हैं कि स्कैम करने वाला अपराधी जब एक स्कैम से धन राशि लूटता हैं तो उसका कुछ प्रतिशत ही उसके अपनेखाते में जाता हैं, अब आप सोचें कि बची हुई कुल राशि किसको मिल रही है? क्या आपको लगता है कि यह सिर्फ़ एक इंसान का कार्य हैं याफिर एक समूह का?
सवाल- डॉक्यूमेंट्री के लिए तथ्य जुटाने में क्या अमेरिका की एजेंसियों ने पूरी तरह से सपोर्ट किया?
उन्होंने कहा कि हमें अमेरिकी और भारतीय एजेंसियों द्वारा इस डाक्यूमेंट्री पर शोध करने में बड़ा समर्थन मिला और मैं हमेशा उनका कृतज्ञ रहूँगा।
सवाल- यह विषय ऐसा है जिसमें अमेरिका में हो रहे फ्रॉड के पीछे एक भारतीय है। ऐसे में आपके सामने क्या चुनौतियां रही थी?
जब मैं रिसर्च कर रहा था तब मेरी प्राथमिकता यह थी कि फर्जी कॉल सेंटर्स काम कैसे करते हैं । मैंने अपने रिसर्च को केवल एक घटना तकसीमित नहीं किया बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों की भी जाँच की। कुछ मामलों में कोर्ट का निर्णय हो चुका था और कुछ सब ज्यूडिसथे। मुझे इन मामलों को ठीक से अध्ययन करना था ताकि मैं अपनी ओर से कोई कानूनी गलती न करूं। इसके अलावा, हमें अनुसंधान औरडॉक्यूमेंट्री फिल्मिंग की प्रक्रिया के दौरान बड़ी ही सावधानी और संवेदनशीलता के साथ पीड़ितों और अपराधियों से संवाद करना था, जिसकेलिए मुझे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कानून का अध्ययन करना पड़ा। फिल्ममेकर के रूप में हालांकि विषय बहुत तकनीकी और जटिल था, लेकिन सामान्य दर्शकों को समझाने के लिए मुझे डाक्यूमेंट्री का नैरेटिव सरल रखना पड़ा।
सवाल- साइबर क्राइम पर जमतारा जैसी कई फिल्में और ओटीटी पर वेब सीरीज उपलब्ध है और यह एक डॉक्यूमेंट्री है!जिसकी आम लोगों तकपहुंच कम हो जाती है। आपको क्या लगता है कि यह कितनी कारगर होगी?
एक फ़िल्ममेकर के तौर पर मेरा मानना है कि आज लोगों को रियल स्टोरी और तथ्यों में ज़्यादा दिलचस्पी हैं, वह अपने जीवन में फैक्ट्स, नॉलेजऔर असली हीरो को ढूँढ रहे हैं।मैं बस समाज के महत्त्वपूर्ण सब्जेक्ट्स और लोगों को उन तक पहुँचाना चाहता हूँ। उसमें मुझे एक दिन लगे यासालों लग जाएँ उसपर मैं ज़्यादा फोकस नहीं करता। वैसे भी डॉक्यूमेंट्री अगर सही शोध और समाज की मदद के लिए सही इरादे से बनाई जाएतो वह अमर हो जाती है।
सवाल- क्या यह केवल किसी फिल्म फेस्टिव में प्रदर्शित करने के लिए है या इसके पीछे का कारण जागरुकता भी है?
हमारा एक मात्र उद्देश्य देश-विदेश के लोगों को जागरूक करना ही है, हालाँकि डॉक्यूमेंट्री फिल्म “बोगस फोन ऑपरेटर्स” डोक्यूबे ऑरिजिनलहै, यह एक ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म डोक्यूबे के लिए बनाई गई हैं, जो दुनिया भर से रोचक डॉक्यूमेंटरी फीचर फिल्म और सीरीज़ प्रस्तुत करता है। डोक्यूबे के COO गिरिश द्विभाष्यम और डोक्यूमेंट्री के निर्माता यूल कुरुप ने मेरे विचार और फिल्म के उद्देश्य में विश्वास दिखाया और फिल्म केदौरान बहुत ही समर्थन किया। फिल्म अब सभी प्लेटफ़ॉर्मों पर डॉक्युबे ऐप द्वारा अवेलेबल है।
सवाल- फिल्म की कास्ट को सलेक्ट करते वक्त दिमाग में क्या सवाल थे, क्या किसी बड़ी सिनेमा हस्ती को कास्ट करने ख्याल आया?
क्योंकि यह फ़िल्म एक इनवेस्टिगेटिव डाक्यूमेंट्री हैं तो इसमें किसी बड़े नायक या कलाकार की आवश्यकता नहीं थी। हालाँकि डाक्यूमेंट्री मेंकिस तरह के स्पीकर्स हमें चुनने हैं जिससे हम अपने सब्जेक्ट को बखूबी अपने ऑडियंस तक पहुँचा सकें, इसके लिए हमने बहुत ही ध्यान औरसमय लेकर एक अच्छे रिसर्च कि सहायता से सभी स्पीकर्स के इंटरव्यू लिए।
सवाल- हाल ही में आपके फ़िल्म को अमेरिकन एम्बेसी और अमेरिकन एम्बेसडर एरिक गार्सेटी द्वारा अमेरिकन सेंटर में दिखाया गया, उस अनुभव के बारे में बतायें?
फ़िल्मों के विपरीत, डॉक्यूमेंट्री को अधिक समर्थन की आवश्यकता होती है क्योंकि ये सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं बनाई जाती हैं; वे समाज केतत्काल समस्याओं और समाधानों के बारे में लोगों को शिक्षित करती हैं। ऐसे आयोजन हर डॉक्यूमेंट्री फ़िल्ममेकर के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। मैंअमेरिकी राजदूत और दूतावास के सभी लोगों को उनके समर्थन और इस गंभीर मुद्दे के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए एक मंच प्रदान करने केलिए अपना हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी न केवल “ बोगस फ़ोनऑपरेटर्स” के विषय के बारे में विस्तार से जानते थे, बल्कि मेरी पिछली राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता डॉक्यूमेंट्री “बुनकर – द लास्ट ऑफ द वाराणसी वीवर्स” से भी परिचित थे। उन्होंने बुनकरों के मुद्दों और इस प्राचीन कला को संरक्षित करने और कलाकारों के समर्थन के लिए की गई पहल केबारे में विस्तार से बात की। मैं आभारी हूँ कि उन्होंने अपने व्यस्त कार्यक्रम से समय निकालकर हमारी फ़िल्म की स्क्रीनिंग में भाग लिया और फिल्म देखने के बाद व्यक्तिगत रूप से मुझे बधाई दी।