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‘The Kerala Story’ सत्य का सिनेमा है, जिसे स्वीकारने की जरूरत है

सत्य घटनाओं पर आधारित ऐसे कई किस्से, कहानियां सिनेमाई पर्दे का हिस्सा बनी हैं। जिसकी चर्चा हमेशा होती रही है। देश की आजादी के बाद व उसके पहले भी ऐसे बहुत सारे फिल्मकारों ने समाज की व्यथा की कथा को सिनेमा के माध्यम से समाज के बीच लाने का पूरा प्रयास किया है। ऐसी बहुत सी फिल्में बनी, जिससे भारतीय जीवन दर्शन से सिनेमा के दर्शक अवगत होते रहे हैं। हर सिनेमा ने समाज को वर्तमान से अवगत कराया है और भविष्य को दिशा दी है। इसलिए सिनेमा के सार्थकता को हम नकार नहीं सकते हैं। आजादी के इन 75 वर्षों के बाद द ताशकंद फाइल्स, कश्मीर फाइल्स व अभी वर्तमान में प्रदर्शित फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ दर्शकों को वहां के हालत से रूबरू कराती है और देश-दुनिया को यह सचेत कर रही है कि आतंकवाद और आतंकी संगठन की किस तरह से टारगेट कर रहे हैं। वैसे भी सिनेमा समाज का कार्य सिर्फ मनोरंजन करना भर नहीं है, बल्कि समाज और देश को परिस्थितियों से अवगत कराकर शिक्षित भी करना है। ऐसी सत्य पर आधारित सिनेमा को कतई भी सियासी चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए।

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किसी भी धर्म का नाता अधर्म से नहीं हो सकता। इसलिए ‘द केरला स्टोरी’ को लेकर धार्मिक आधार पर चर्चा होनी गलत है। यह फिल्म विशुद्ध रूप से सत्य का सिनेमा है जिसे समूचा समाज स्वीकार रहा है। हर कोई इस फिल्म के पहलुओं से जुड़कर वहां की हालत में अपने आपको महसूस करता है यह किसी भी फिल्म का मनोवैज्ञानिक पक्ष हो सकता है। जब दर्शक उस फिल्म को देखने के बाद उस पूरी कहानी को अपनी जीवन व समाज से जोड़ता है। ‘द केरला स्टोरी’ में वहां के एक ऐसे पक्ष को दर्शाया गया है जिसमें बेटियों को धोखे में रखकर, डर पैदा कर, अपनी आस्था, विश्वास और परिवार के प्रति नफरत पैदा कर आतंकवाद से जुड़ने को विवश किया जाता है। इस पूरी कहानी को फिल्म में सिलसिलेवार दिखाया गया है। फिल्मकार व पूरी टीम ने कहानी के साथ पूरी से तरह से न्याय किया है। पूरी फिल्म वहां की वास्तविकता को बताती है इसलिए देश के साथ दुनिया के दर्शक इस फिल्म से जुड़ रहे है। इसकी सफलता यह बताती है कि इसे स्वीकार समूचा समाज कर रहा है और यह कहीं भी फिल्म सियासी व उन्माद फैलाने वाला नहीं है जिसे लेकर आशंका व्यक्त की जा रही है। यह फिल्मों के इतिहास को लेकर एक ऐसी घटना होगी कि फिल्मों का लोकतांत्रिकरण सिनेमा भी कहा जा सकता हो सिनेमा घरों में बढ़ते दर्शक व फिल्म निर्माण को लेकर नए अध्याय की शुरूआत भी होगी। इसे हम दूसरे शब्दों में भारतीय सिनेमा के नए युग के रूप में देख सकते हैं। यह सत्य के सिनेमा का नव सूत्रपात है।
– नेहा पायल
अभिनेत्री व फिल्म स्कॉलर हैं

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