बच्चों का चुलबुलापन और शरारतें भला किसे पसंद नहीं होती हैं। वहीं उम्र बढ़ने के साथ ही बच्चों के शरीर में कई तरह के शारीरिक और मानसिक विकास भी होते रहते हैं। जिस तरह से धीरे-धीरे बच्चा बड़ा होता जाता है, वैसे-वैसे उनकी इंद्रियों की क्षमता भी विकसित होने लगती है। बच्चे जब बचपन में इंद्रियों में संवेदी अनुभव की तलाश करना शुरू करते हैं। तो बच्चे हर चीज की तरफ आकर्षित होने लगते हैं।
हांलाकि सभी बच्चों में एक जैसी गतिविधियां नहीं पाई जाती हैं। इस तरह की स्थिति को सेंसरी सीकिंग कहा जाता है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको बच्चों में होने वाले सेंसरी सीकिंग के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
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क्या है Sensory Seeking
आपको बता दें कि बढ़ती उम्र के साथ ही बच्चे स्वाद, ध्वनि, गंध, दृष्टि और स्पर्थ जैसी चीजों के प्रति आकर्षित होते हैं। वह धीरे-धीरे इन चीजों को जानते और समझते हैं। हांलाकि सभी बच्चों में यह स्थिति समान नहीं होती है। जहां कुछ बच्चे खेलकूद के प्रति आकर्षित होते हैं, तो वहीं कुछ बच्चों का किसी खास तरह के म्यूजिक और कुछ का खाने-पीने की चीजों की तरफ आकर्षण होता है। इस स्थिति को ही सेंसरी सीकिंग कहा जाता है। लेकिन क्या आपको मालूम है कि कुछ बच्चों में सेंसरी सीकिंग से जुड़ी कुछ परेशानियां भी होती हैं।
सेंसरी सीकिंग से जुड़े लक्षण
गले लगने में हिचकिचाना
किसी की गोद में न जाना
वस्तुओं को छूना या सहलाना
स्थिर बैठने में परेशानी होना
हाइपर एक्टिव होना
ऊँचे स्थानों से कूदना
बार-बार चीजों को मुंह में डालना
बच्चों में इस तरह के लक्षण दिखने पर उनका विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए। इस स्थिति को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि इससे उनके कई तरह की परेशानियों का खतरा बढ़ जाता है। बता दें कि सेंसरी सीकिंग से जुड़ी स्थितियां बच्चों को इंद्रियों को ट्रिगर कर सकती हैं। सेंसरी सीकिंग के कारण बच्चों में स्पर्श, लाइट, साउंड और गंध आदि से जुड़ी परेशानियों का खतरा होता है।
इसके अलावा बच्चों को किसी बात के लिए रोकटोक न करना भी उनके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। वहीं हर बात के लिए बच्चों को न कहना भी कम खतरनाक नहीं होता है। लेकिन बच्चे की हर बात को मानना उन पर नकारात्मक असर डाल सकता है। इसलिए माता-पिता को बच्चों को हां या नहीं बोलने की लिमिट सेट करनी चाहिए। वहीं असामान्य लक्षण दिखने पर डॉक्टर से जरूर संपर्क करना चाहिए।