भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और छह बार के लोकसभा सांसद बृज भूषण शरण सिंह अपने पसंदीदा खेल और राजनीति की अलग-अलग दुनिया में अपने जुझारू अंदाज और दमखम के साथ अपने विचारों को रखने वाले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसदों की घटती जमात से ताल्लुक रखते हैं।
देश के कुछ सबसे प्रमुख पहलवानों से यौन उत्पीड़न और डराने-धमकाने के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे 66 साल के इस खेल प्रशासक ने इन आरोपों को राजनीतिक और कॉर्पोरेट प्रतिद्वंद्वियों का काम करार देते हुए इस्तीफे की मांग को खारिज कर दिया।
भाजपा के बड़े नेताओं के दबाव में सिंह हालांकि महासंघ के दैनिक कामकाज के मामले से हटने को सहमत हुए है और और उनके खिलाफ जांच का आदेश दिया गया है।
उनसे हालांकि उम्मीद की जा सकती है कि वह खेल निकाय पर अपनी मजबूत पकड़ बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले और उसके आसपास के इलाके में अपनी राजनीतिक जागीर को और मजबूत करने की कोशिश करेंगे।
राम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़े और बाद में बाबरी विध्वंस मामले में आरोपी सिंह 1991 में पहली बार सांसद बने।
उन्हें क्षेत्र में अपनी ‘शक्तिशाली’ छवि के साथ अकूत संपत्ति और लगभग 50 शैक्षणिक संस्थानों के एक विशाल नेटवर्क को तैयार करने के लिए जाना जाता है। उनके समर्थक पार्टी या विचारधारा की जगह सीधे उनके प्रति वफादारी रखते है।
उनके संस्थान बहराइच, गोंडा, बलरामपुर, अयोध्या और श्रावस्ती जैसे जिलों में चलाए जा रहे हैं। उनके पैतृक स्थान पर उनकी विशाल हवेली में एक हेलीपैड है और उन्हें महंगी कारों और वाहनों का शौक है।
वह लोकसभा में गोंडा और बलरामपुर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं और 2009 से कैसरगंज से जीतते आ रहे हैं।
भाजपा नेतृत्व से नाराज होकर उन्होंने 2008 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार द्वारा लाए गए विश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था और फिर 2009 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते।
बीजेपी के बाहर उनकी यही एकमात्र संसदीय पारी थी लेकिन समाजवादी पार्टी के दिवंगत संरक्षक मुलायम सिंह यादव के लिए उनका सम्मान हमेशा बना रहा। उन्हें अक्सर यादव को संसद के गेट पर विदा करते हुए देखा जाता था।
वह 2012 से भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष है।
इस खेल को लेकर उनके जूनून को इस बात से समझा जा सकता है कि वह मुकाबलों के दौरान मर्यादा को पीछे छोड़कर रेफरी, कोच और खिलाड़ियों से अपने मन की बात कह सकते हैं।
रांची में एक युवा पहलवान को थप्पड़ मारने का उनका एक वीडियो 2021 में वायरल हुआ था। उस पहलवान ने उनसे अपने मामले की पैरवी करने की कोशिश की थी। अधिकारियों ने तब दावा किया था कि वह खिलाड़ी अधिक उम्र का था और वह चाहता था कि सिंह उसकी मदद करे क्योंकि वह उनके द्वारा संचालित केंद्रों में से एक में प्रशिक्षण ले रहा था।
वह एक तरफ जिस खेल से प्यार करते हैं और उस पर राज करते हैं तो वही राजनीति में पार्टी की राय से अगल विचार रखने में कभी संकोच नहीं करते थे।
एक केंद्रीय मंत्री को पिछले साल उनके गुस्से का सामना करना पड़ा था क्योंकि इस मंत्री ने सिंह को मिलने का समय नहीं दिया था।
सिंह ने पिछले मानसून के दौरान बाढ़ से निपटने के लिए एक ठाकुर समाज के साथी नेता और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार की भी आलोचना की थी।
उन्होंने यह कह कर सुर्खियां बटोरी थी कि लोगों को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है।
सिंह ने अकेले ही महाराष्ट्र के नेता राज ठाकरे की अयोध्या में राम मंदिर जाने की योजना को विफल कर दिया था। उन्होंने मुंबई में उत्तर भारतीय प्रवासियों के खिलाफ हुए हमले का हवाला देते हुए अभियान चलाकर अपने क्षेत्र के लोगों को ठाकरे की यात्रा के खिलाफ लामबंद किया।
सिंह ने उस समय अपनी पार्टी के कई नेताओं को नाराज किया जब उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना का मुकाबला करने के लिए राज ठाकरे के प्रति गर्मजोशी दिखाई।
निलंबित भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा की टिप्पणियों पर विवाद पर उन्होंने किसी भी धर्म और धार्मिक हस्तियों को लक्षित करने वाली टिप्पणियों के खिलाफ कानून बनाने का आह्वान किया। नूपुर के बयान से इस्लाम को मानने वाले देश नाराज हो गये थे।
स्थानीय लोग उन्हें छात्रवृत्ति और मुफ्त अध्ययन के साथ वंचित छात्रों की मदद करने का श्रेय देते हैं। ऐसे दावे किए गए हैं कि उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि अधिकांश छात्र परीक्षा के तरीके के बावजूद ‘सफल’ डिग्री के साथ शैक्षिक संस्थानों से बाहर निकलें।
उन्हें अप्रत्याशित रूप से ‘ नकल माफिया’ चलाने के आरोपों का सामना करना पड़ा है। दाऊद इब्राहिम गिरोह के सदस्यों के साथ संबंध सहित कई आपराधिक आरोप उन पर लगे।
सिंह के बेटे मौजूदा विधायक हैं और पत्नी एक पूर्व सांसद हैं। वह तीन दर्जन से अधिक मामलों का सामना कर चुके हैं और उनमें से दो अभी भी लंबित हैं।
उन पर 1993 तक यूपी गैंगस्टर एक्ट के तहत चार बार मामला दर्ज किया गया था और एक बार खतरनाक आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत आरोप लगाया गया था।
उन्हें छह दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह और अन्य के साथ गिरफ्तार किया गया था। उन्हें इस मामले में हालांकि 2020 में एक अदालत ने बरी कर दिया।
कोई भी भविष्यवाणी नहीं कर सकता है, लेकिन यह तय है कि वह ज्यादा समय तक चुपचाप नहीं बैठेंगे।