Breaking News
-
समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और आप के राष्ट्रीय संयोजक और नई दिल्ली विधानसभा…
-
तेज रफ्तार के सामने संजू सैमसन की कमजोरी और रिंकू सिंह का खराब फॉर्म और…
-
पटना । उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से मिलने के बाद कहा…
-
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस पर आगामी चुनावों में आम आदमी पार्टी…
-
राष्ट्रीय राजधानी के वजीराबाद इलाके में एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर उसके कब्जे से करीब…
-
मलाइका अरोड़ा गोवा में कुछ समय बिताने के बाद मुंबई वापस आ गई हैं। आज…
-
सहारनपुर जिले की कोतवाली थाना पुलिस ने एक महिला समेत तीन कथित मादक पदार्थ तस्करों…
-
प्रयागराज महाकुंभ की वायरल सनसनी मोनालिसा, जो अपनी मनमोहक आँखों और सांवले रंग के लिए…
-
बिग बॉस 18 के दूसरे रनर-अप रजत दलाल ने हाल ही में एल्विश यादव के…
-
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने नगर निकाय के साइट आवंटन में लगभग 56 करोड़ रुपये की…
कई खेल हैं जो दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं, इन्हीं में से एक क्रिकेट है। जिसके दुनियाभर में कई दिवाने हैं। भारत में भी क्रिकेट के प्रति लोगों का जुनून सिर चढ़ कर बोलता है। भारत में क्रिकेट को धर्म समझा जाता है और क्रिकेटर्स को भगवान की तरह पूजा जाता है। क्या शहर, गांव और कस्बा हर जगह क्रिकेट के प्रेमी मिल ही जाएंगे। लेकिन 41 साल पहले एक क्रिकेट मैच को लेकर कुछ ऐसा हुआ जिससे इस्लामिक विद्रोह की शुरुआत हुई।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर में 13 अक्टूबर 1983 को पहला क्रिकेट मैच खेला गया। इस लिहाज से ये दिन जम्मू-कश्मीर क्रिकेट के लिए होना चाहिए, लेकिन अस में है एक बदनुमा दाग। उस दिन श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में जो कुछ भी हुआ उसकी याद शायद ही किसी के दिल से जाती होंगी। बीते चार दशकों में भारत में क्रिकेट की एक अलग पहचान बनी है। देश के कोने-कोने में अंतर्राष्ट्रीय मुकाबले खेले जाते हैं, लेकिन शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम में पिछले कई सालों से सूना पड़ा है।
बता दें कि, श्रीनगर के इस खूबसूरत मैदान को अनिश्चितकालीन वनवास क्यों झेलना पड़ रहा है। बात 1983 वर्ल्ड कप के बाद की बात है, भारत जब लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान पर वेस्टइंडीज जैसी बेहतरीन टीम को हराकर अपने सिर पर ताज सजाने में कामयाब रही थी। भारत में क्रिकेट का खुमार अपने चरम पर था। उधर, वेस्टइंडीज भी फाइनल में मिली हार का बदला लेने के लिए बेताब था। उसे ये मौका मिला वर्ल्ड कप के करीब 5 महीने बाद, जब कैरेबियाई टीम वनडे और टेस्ट मैच की सीरीज खेलने भारत आई।
श्रीनगर में, 13 अक्टूबर 1983 में पहला वनडे मुकाबला था । मशहूर कमेंटेटर सुशील दोशी उस मैच में कमेंट्री कर रहे थे। वह अपनी किताब आंखों देखा हाल, में लिखते हैं। पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। लेकिन, हैरानी की बात ये थी कि वहां मौजूद दर्शक भारतीय टीम का हौसला नहीं बढ़ा रहे थे। वे लोग योजनाबद्ध तरीके से भारत विरोधी माहौला बनाने में जुटे थे। ये भारत के खिलाफ पाकिस्तानी साजिश का हिस्सा लग रहा था।
भारतीय खिलाड़ियों को ऐसे माहौल का कतई अंदाजा नहीं था। उनके साथ अपने ही देश में दर्शक दुश्मनों जैसा बर्ताव कर रहे थे। लेकिन, असल में भारतीय समर्थक तो हुड़दंग की आशंका से मैच में गैरहाजिर रहे और देश विरोधी ताकतों को अपना प्रभाव दिखाने का ये सबसे मुफीद मौका लगा। ये पाकिस्तानी साजिश का ही हिस्सा था, जिसे खेल के मैदान से मूर्त रूप देने की कोशिश की जा रही थी।
यहां बता दें कि, 1983-84 के समय में कश्मीर में आतंकवाद नहीं था। लेकिन, पाकिस्तान समर्थक स्थानीय नेता कश्मीरी अवाम को भारत के खिलाफ भड़काने में लगे थे।
उस मैच का हिस्सा रहे दिग्गज क्रिकेटर सुनील गावस्कर अपनी किताब रन्स एंड रुइन्स में लिखते हैं, अगर कोई टीम खराब प्रदर्शन करे या हार जाए, तो हूटिंग समझ में आती है। लेकिन, श्रीनगर में मैच से पहले भारतीय टीम के खिलाफ नारे लगते देख हम हैरान रह गए। दर्शकों की भीड़ में से कुछ लोग पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगा रहे थे। ये बहुत परेशान करने वाला मसला था। हम वेस्टइंडीज के खिलाफ खेल रहे थे ना कि पाकिस्तान के खिलाफ।
क्या हुआ था उस दिन
उस दिन टॉस वेस्टइंडीज ने जीता और भारत को पहले बल्लेबाजी का न्योता दिया। लेकिन नफरत और तनाव वाले मैदान में भारतीय पारी 42वें ओवर में सिर्फ 176 रनों पर ही सिमट गई। इनिंग ब्रेक में तो अराजक तत्वों ने सारी हदें पार कर दी। वे लोग लोग पिच की ओर बढ़े और पिच खो दी।
पिच खोदने वाले भारत के विरोध में थे, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि इसका नुकसान भारत को नहीं बल्कि वेस्टइंडीज को होगा, क्योंकि दूसरी पारी उसे ही खेलनी थी। पिच को जल्द से ठीक कर मैच खेलने लायक बना दिया गया। वेस्टइंडीज की ओर से डेसमंड हेंस और गॉर्डन ग्रीनिज की चर्चित सलामी जोड़ी उतरी। भारत की ओर से कप्तान कपिल देव ने गेंदबाजी का आगाज किया।
लेकिन एक बार फिर भारतीय खिलाड़ियों के साथ बदसलूकी शुरु हो गई। बाउंड्री पर फील्डिंग कर रहे भारतीय खिलाड़ियों पर खाली बोतलें और कंकड़-पत्थर फेंके जाने लगे। दिलीप वेंगसरकर को एक उपद्रवी ने सेब फेंककर मार दिया। टीम मैनेजमेंट भी खिलाड़ियों की सुरक्षा को लेकर परेशान हो गया। हर कोई यही चाहता था कि जितना जल्दी हो सके, मैच खत्म हो।
माहौल इतना खराब हो गया था कि ज्यादातर दर्शक स्टेडियम छोड़कर भाग गए। बाद में मैच जैसे-तैसे पूरा हुआ। धूल भरी आंधी और खराब लाइट के कारण वेस्टइंडीज को 22 ओवर में 81 रन का लक्ष्य मिला। लेकिन तब तक वेस्टइंडीज की टीम बिनी किसी नुकसान के 108 रन बना चुकी थी इसलिए उसे 28 रन से विजयी घोषित कर दिया गया।
हालांकि, मुकाबले के बाद 12 लोगों को मैच के दौरान पिच खोदने का आरोपी बनाया गया, लेकिन उन सभी को एक साल के अंदर जमानत मिल गई। बाद में इनमें से कुछ लोग भारत के खिलाफ विद्रोह में भी शामिल हुए। मैच के मामले में सभी आरोपियों को 2011 में सबूतों के बिना बरी कर दिया गया। इस दौरान एक आरोपी ने बताया था कि पुलिस ने उसे बिना किसी सबूत के गिरफ्तार किया है। गिरफ्तार किए गए लोगों में कुछ भारत के समर्थन में थे।