भारत के दिग्गज टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस देश की डेविस कप टीम की वर्तमान स्थिति से दुखी हैं और उनका मानना है कि इसके स्तर को ऊपर उठाने में आधा दशक लग जाएगा।
भारतीय डेविस कप टीम इस महीने की शुरुआत में डेनमार्क से 2-3 से हारने के बाद पहली बार विश्व ग्रुप दो में खिसक गई थी।
डेविस कप में रिकॉर्ड 45 युगल मैच जीतने वाले पेस ने कहा,‘‘मुझे लगता है कि डेविस कप टीम में कुछ प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के आने में अभी कुछ साल लगेंगे।’’
पिछले महीने आस्ट्रेलियाई ओपन में भारतीय टेनिस की गिरावट स्पष्ट नजर आई जब 2017 के बाद पहली बार भारत का कोई एकल खिलाड़ी किसी ग्रैंडस्लैम प्रतियोगिता के क्वालीफाइंग दौर में जगह नहीं बना पाया।
ओलंपिक कांस्य पदक विजेता पेस ने पत्रकारों से कहा, ‘‘मैं इससे काफी दुखी हूं कि हमारे पास एकल रैंकिंग में शीर्ष 300 में एक भी खिलाड़ी नहीं है। मुझे नहीं लगता कि ऐसा कभी हुआ है।’’
प्रजनेश गुणेश्वरन वर्तमान में एटीपी सूची में 306वें नंबर के साथ एकल में सर्वोच्च रैंकिंग वाले भारतीय हैं।
पेस ने कहा,‘‘मैं सभी भारतीय खिलाड़ियों का बहुत सम्मान करता हूं जो टेनिस जैसे खेल से जुड़े हैं जिसमें प्रशिक्षण और संचालन (करियर बनाने) की लागत बहुत अधिक है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘टेनिस में 99 प्रतिशत खेल विदेशों खेला जाता है और अकेले दम पर सर्किट में बने रहना आसान नहीं है। जीशान (अली) और मैं लॉकर रूम में भी सोते थे क्योंकि हमारे पास होटल में ठहरने के लिए पैसे नहीं होते थे।’’
पेस ने कहा,‘‘हमारे पास जब रमेश कृष्णन, जीशान अली, विजय अमृतराज और अन्य खिलाड़ी हुआ करते थे, उस दौर को हासिल करने में मुझे लगता है कि कम से कम आधा दशक का समय लगेगा।
अभी डेविस कप के सेमीफाइनल में पहुंचना बहुत मुश्किल है।’’
लिएंडर अपने पिता डॉ. वेस पेस के पास बैठकर पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। वेस पेस बार्सिलोना में 1971 के हॉकी विश्व कप और 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में कांस्य पदक विजेता टीम के सदस्य थे।
पिछले साल गोवा विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस के लिए प्रचार करने वाले पेस ने राजनीति से जुड़े सवालों का जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा कि अभी वह एक ‘बायोपिक’ में व्यस्त हैं जो इस पिता-पुत्र की जोड़ी से जुड़ी है। उन्होंने खुलासा किया कि इसे 18 महीने में तैयार हो जाना चाहिए।
पेस ने कहा,‘‘अभी मैं अपनी कहानी पर ही काम कर रहा हूं। अभी मैं इसके बारे में ज्यादा नहीं बता सकता। यह कहानी बताएगी कि बाबा (पिता) ने कैसे 1972 ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक जीता तथा आपमें से कुछ जानते होंगे कि वहां क्या हुआ था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह कहानी 1972 से 1996 के बारे में होगी। यह प्रेरणादायी कहानी होगी। अभी मैं इस पर काम कर रहा हूं और उम्मीद है कि 18 महीने में आपको यह देखने को मिल जाएगी।