नयी दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय खेलों के नक्शे पर पहले पहल तिरंगे की छाप छोड़ने वाले खिलाड़ियों में बैडमिंटन में प्रकाश पादुकोण, टेनिस में अमृतराज बंधु, शतरंज में विश्वनाथन आनंद,बिलियर्ड्स में माइकल फरेरा, भारोत्तोलन में मल्लेश्वरी देवी, निशानेबाजी में अभिनव बिंद्रा, एथलेटिक्स में मिल्खा सिंह, पी.टी. ऊषा और भाला-फेंक में नीरज चोपड़ा का नाम सुनहरे हरफों में दर्ज है। महिला टेनिस में सानिया मिर्जा का नाम इस कतार को आगे बढ़ाता है।
सानिया मिर्जा ने हाल ही में टेनिस से संन्यास लेने का ऐलान किया है। उनका कहना है कि उन्होंने ऑस्ट्रेलियन ओपन से अपने ग्रैंड स्लैम करियर की शुरुआत की थी और इस साल वही उनका आखिरी ग्रैंड स्लैम होगा। फरवरी में होने वाला दुबई टेनिस टूर्नामेंट उनका अंतिम प्रफेशनल टेनिस टूर्नामेंट होगा और इसके साथ ही एक बेहतरीन खिलाड़ी के रूप में उनका 30 साल का टेनिस जीवन और 20 साल का प्रफेशनल करियर समाप्त हो जाएगा।
एक समय ‘‘खेलोगे कूदोगे होगे खराब, पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब’’ जैसे मुहावरे गढ़ने वाले इस देश में पिछले कुछ दशक में ही खेलों की संस्कृति विकसित हुई है, लेकिन उसमें भी कई तरह की बंदिशें रहीं, खास तौर से लड़कियों के लिए यह क्षेत्र वर्जित ही बना रहा।
ऐसे माहौल में तीन दशक पहले एक मुस्लिम परिवार की छह साल की बच्ची अपनी मां का हाथ पकड़े हैदराबाद के निजाम क्लब के टेनिस कोर्ट पहुंची तो पहले पहल तो कोच को भी लगा कि टेनिस खेलने के लिए वह बहुत छोटी है, लेकिन खेल के प्रति उसकी लगन और उसके सपनों की उड़ान उसकी उम्र से कहीं बड़ी थी।
सानिया ने संन्यास का ऐलान करते हुए अपने ट्विटर हैंडल पर तीन पेज का एक पोस्ट लिखा है।
इसमें उन्होंने अपनी सफलता के लिए अपने माता-पिता और बहन सहित पूरे परिवार, कोच, फिजियो और पूरी टीम का शुक्रिया अदा करते हुए लिखा है कि इन लोगों के सहयोग के बिना वह यहां तक नहीं पहुंच पातीं। उन्होंने लिखा है, ‘‘इन तमाम लोगों का शुक्रिया, जो बुरे वक्त में मेरे साथ खड़े रहे। मैंने अपनी हंसी, आंसू, दर्द और खुशी इन तमाम लोगों के साथ साझा की है। आप सभी ने जीवन के कठिन दौर में मेरी मदद की है। आपने छह साल की एक बच्ची को न सिर्फ सपने देखने की हिम्मत दी, बल्कि उन्हें पूरा करने में मदद भी की।’’
सानिया ने अपने पोस्ट में लिखा है, ‘‘काफी विरोध के बावजूद मैंने ग्रैंड स्लैम खेलने और टेनिस के इस सर्वोच्च स्तर पर देश का प्रतिनिधित्व करने का सपना देखा।
अब जब मैं अपने करियर की तरफ मुड़कर देखती हूं तो मुझे लगता है कि मैंने न सिर्फ देश के लिए ग्रैंड स्लैम खेलने का अर्धशतक लगाया, बल्कि उनमें से कुछ जीतने में भी कामयाब रही। देश के लिए मेडल जीतना मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान रहा है। पोडियम पर खड़े होना और तिरंगे का सम्मान होते देखना मेरे लिए गर्व की बात रही है।’’
सानिया का जन्म 15 नवंबर 1986 को मुंबई में हुआ। उनके पिता इमरान मिर्ज़ा एक खेल संवाददाता थे तथा माँ नसीमा मुंबई में प्रिंटिंग व्यवसाय से जुड़ी एक कंपनी में काम करती थीं। कुछ समय बाद उनका परिवार हैदराबाद चला गया और छोटी बहन अनम के साथ सानिया का बचपन वहीं गुजरा।
सानिया ने हैदराबाद के एन ए एस आर स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद हैदराबाद के ही सेंट मैरी कॉलेज से स्नातक स्तर की पढ़ाई की। उन्हें 11 दिसंबर 2008 को चेन्नई में एम जी आर शैक्षिक और अनुसंधान संस्थान द्वारा डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की गई। वर्ष 1999 में विश्व जूनियर टेनिस चैम्पियनशिप से अपने अंतरराष्ट्रीय टेनिस करियर की शुरुआत करने वाली सानिया ने 18 वर्ष की छोटी सी उम्र में वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना ली थी। उनकी लोकप्रियता और सफलता को देखते हुए 2005 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार प्रदान किया गया। 2005 में ही उन्हें टाइम पत्रिका ने एशिया की 50 सबसे प्रभावशाली हस्तियों में शुमार किया।
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2006 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया और वह यह सम्मान पाने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बनीं। उन्हें 2006 में अमेरिका में विश्व की टेनिस की दिग्गज हस्तियों के बीच डब्लूटीए का मोस्ट इम्प्रेसिव न्यू कमर अवार्ड प्रदान किया गया। पारिवारिक जीवन की बात करें तो उनके पिता इमरान मिर्ज़ा हैदराबाद सीनियर डिवीज़न लीग के खिलाड़ी रह चुके हैं। सानिया के मामा फैयाज़ हैदराबाद रणजी टीम में विकेट कीपर रहे हैं। सानिया ने 12 अप्रैल 2010 को पाकिस्तान के मशहूर क्रिकेटर शोएब मलिक के साथ विवाह किया। हालांकि इस दौरान कई विवादों में भी उनका नाम शामिल रहा, लेकिन वह अपने फैसलों पर अडिग रहीं और उन्हें सही साबित किया।