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World Championship में कांस्य पदक के साथ दीपक ने साबित किया वह अब दूसरे विकल्प नहीं

खराब वित्तीय स्थिति, चोटों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दमदार प्रदर्शन करने वाले अमित पंघाल के कारण मौका नहीं मिलने से भी दीपक कुमार भोरिया का हौसला नहीं डगमगाया और 25 साल के इस मुक्केबाज ने शुक्रवार को ताशकंद में विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतकर अपने प्रदर्शन का लोहा मनवाया।
हरियाणा के हिसार के रहने वाले दीपक ने अपने चाचा रविंदर कुमार की सलाह पर मुक्केबाजी शुरू की। रविंदर खुद मुक्केबाज बनने के सपने को साकार नहीं कर पाये थे।
उनके होमगार्ड पिता और गृहिणी मां मुक्केबाजी के उनके फैसले से बहुत खुश नहीं थे लेकिन उन्होंने अपने 11 साल के बेटे को राजेश श्योराण की यूनिवर्सल मुक्केबाजी अकादमी में शामिल किया।

दीपक के पहले कोच श्योराण ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, जब वह साढ़े 11 साल का था तब वह मेरे पास आया था। वह काफी दुबला-पतला और हल्के वजन का था।’’
कोच ने कहा, ‘‘ उसका वजन इतना कम था कि जब वह पहली बार राज्य स्तर परखेल रहा था तो हमें उसे अधिक पानी पिलाना पड़ा ताकि वह अपने वजन वर्ग में जगह बना सके।’’
दीपक के कौशल से प्रभावित श्योराण ने इस मुक्केबाज का ख्याल रखने का फैसला किया।
उन्होंने कहा, ‘ वह बहुत प्रतिभाशाली और कुशल मुक्केबाज था। उसमें एक खिलाड़ी के सभी गुण थे। मैंने उनमें काबिलियत देखी। एक कोच के तौर पर  आपका हमेशा सपना होता है कि आपका कोई शिष्य ओलंपिक खेले। मुझे पता था कि उसमें ओलंपिक खेलने की प्रतिभा है।’’

श्योराण ने कहा, ‘‘ इसके बाद हमने उसके आहार के मामले में बहुत सहायता की। मैं अपने हिस्से का जूस उसे देता था, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसे दिन में दो बार जूस मिले। हमने उसे ‘सप्लीमेंट्स’ दिए। अकादमी के अन्य छात्र भी उसके आहार में मदद करने के लिए पैसे देते थे।’’
दीपक को एक जोरदार झटका लगा जब उनके दाहिने हाथ में फ्रैक्चर हो गया। सर्जरी से पहले लगभग दो साल तक चोट उन्हें परेशान करती रही।
आर्थिक रूप से स्थिर रहने के लिए दीपक ने कभी-कभी किसी मित्र की समाचार पत्र एजेंसी के लिए भुगतान एकत्र करने का कार्य किया। वह इसके बाद भारतीय सेना के लिए चुने गये।

 उन्होंने रिंग के अंदर एक अन्य सेना मुक्केबाज अमित पंघाल के साथ प्रतिद्वंद्विता की। दोनों एक ही भार वर्ग में खेलते है।
श्योराण ने कहा, ‘‘ उन्होंने  सेना की आंतरिक प्रतियोगिताओं में अच्छा प्रदर्शन किया। लेकिन उनकी किस्मत हमेशा खराब रही। उन्हें कुछ भी जल्दी नहीं मिला। उन्होंने अमित पंघाल को 2-3 बार हराया, लेकिन फिर भी उसे राष्ट्रीय टूर्नामेंट खेलने का मौका नहीं मिला।’’
जब पंघाल राष्ट्रमंडल खेलों, एशियाई खेलों में पदक और विश्व चैंपियनशिप में अभूतपूर्व रजत जीतकर नयी ऊंचाइयों को छू रहे थे तब दीपक चोट के कारण प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पा रहा था।

दीपक के पिता ने उस समय को याद करते हुए कहा, ‘‘ दीपक ने कहा था कि वह उसके कर्म है मेरे कर्म मेरे पास है, मेरा समय भी आएगा।’’
स्ट्रैंड्जा मेमोरियल टूर्नामेंट 2021 में उन्होंने सेमीफाइनल में  2019 विश्व चैंपियन और रियो ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता उज्बेकिस्तान के शाखोबिद्दीन जोइरोव को हरा कर बड़ा उलटफेर किया
उन्हें नयी चयन नीति के आधार पर पंघाल की जगह टीम में चुना गया। इस नये चयन नीति को हाई परफार्मेंस निदेशक (एचपीडी) बर्नार्ड डन द्वारा तैयार किया गया था, जिसके तहत मुक्केबाजों का मूल्यांकन पिछले मुकाबलों के साथ शिविर के प्रदर्शन के आधार पर किया जाता है।

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