विभिन्न राज्यों में मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच चल रही खींचतान के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय ने पंजाब सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए जो कुछ कहा है उस पर सभी राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों को ध्यान देना चाहिए। देखा जाये तो विधानसभा का सत्र नियम अनुसार ही चले, राज्यपाल विधेयकों को ‘राजनीतिक कारणों’ से लटकाएं नहीं तथा मुख्यमंत्री और राज्यपाल एक दूसरे के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बयान नहीं दें तो राज्यों में इस तरह के विवाद देखने को नहीं मिलेंगे।
जहां तक पंजाब का विवाद है तो आपको बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने को लेकर पंजाब सरकार और राज्यपाल के बीच जारी गतिरोध को शुक्रवार को ‘गंभीर चिंता’ का विषय बताते हुए कहा है कि राज्य में जो हो रहा है उससे वह खुश नहीं है। भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने पंजाब सरकार और राज्यपाल दोनों से कहा, ‘‘हमारा देश स्थापित परंपराओं और परिपाटियों से चल रहा है और उनका पालन करने की जरूरत है।’’ पीठ ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर सहमति नहीं देने के लिए पंजाब के राज्यपाल पर अप्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा ‘‘आप आग से खेल रहे हैं।’’ साथ ही पीठ ने विधानसभा सत्र को असंवैधानिक करार देने की उनकी शक्ति पर सवाल उठाया।
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पीठ ने पंजाब सरकार से भी सवाल किया कि उसने विधानसभा के बजट सत्र की बैठक को स्थगित क्यों किया, सत्रावसान क्यों नहीं किया गया। पीठ ने कहा कि वह विधेयकों को मंजूरी देने की राज्यपाल की शक्ति के मुद्दे पर कानून तय करने के लिए एक संक्षिप्त आदेश पारित करेगी। हम आपको यह भी बता दें कि छह नवंबर को शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्य के राज्यपालों को इस तथ्य से अनजान नहीं रहना चाहिए कि वे जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं हैं। अदालत ने राजभवन द्वारा राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई नहीं करने पर अपनी चिंता व्यक्त की और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर पंजाब के राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित द्वारा की गई कार्रवाई का विवरण रिकॉर्ड पर रखने का निर्देश दिया था।
हम आपको यह भी बता दें कि पंजाब सरकार ने पूर्व में राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित की ओर से मंजूरी देने में देरी का आरोप लगाते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था। याचिका में कहा गया है कि इस तरह की ‘‘असंवैधानिक निष्क्रियता’’ ने पूरे प्रशासन को ‘‘ठप्प’’ कर दिया है। इसमें कहा गया है कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयकों को रोक नहीं सकते क्योंकि उनके पास संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत सीमित शक्तियां हैं, जो किसी विधेयक पर सहमति देने या रोकने या राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को रखने की राजभवन की शक्ति से संबंधित है। गौरतलब है कि पंजाब के राज्यपाल का मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी सरकार के साथ लंबे समय से विवाद चल रहा है।
केरल के राज्यपाल का बयान
इस बीच, अदालत की टिप्पणियों के मद्देनजर केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा है कि वह संविधान के अनुसार काम कर रहे हैं। उन्होंने साथ ही सवाल किया कि क्या इस बात का कोई सबूत है कि उन्होंने राज्य में कोई राजनीतिक संकट पैदा किया है। राष्ट्रीय राजधानी में संवाददाताओं से बात करते हुए, आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि राज्य सरकार ने कई मौकों पर “सीमा लांघी” है। हम आपको बता दें कि आरिफ मोहम्मद खान का यह बयान कुछ विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं करने के मुद्दे पर राज्य सरकार और राजभवन के बीच बढ़ती खींचतान के बीच आया है।
राज्यपाल ने कहा, “क्या उन्होंने (राज्य सरकार) कोई सबूत दिया है कि मैंने राज्य में कोई राजनीतिक संकट पैदा किया है? केवल बयान देने का मतलब संकट नहीं है। संकट का मतलब है, जब आप संविधान द्वारा आपको दी गई शक्तियों या अधिकारों से परे चले जाते हैं।’’ आरिफ मोहम्मद खान ने कहा, “मुझे एक भी उदाहरण दिखाइए, जहां मैंने सीमा लांघी है और मेरी अपनी सरकार ने कितनी बार ऐसा किया है, इसकी एक लंबी सूची है। तो संकट कौन पैदा कर रहा है?” राज्यपाल ने यह भी आरोप लगाया कि राज्य में पेंशन और वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है और हाल के केरलीयम कार्यक्रम का संदर्भ देते हुए कहा कि राज्य में “बड़ा जश्न मनाया जा रहा है”। हम आपको बता दें कि हाल ही में, केरल सरकार ने राज्यपाल द्वारा कुछ विधेयकों पर हस्ताक्षर नहीं करने और इसे अनिश्चित काल तक विलंबित करने के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय का रुख किया था। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने आठ नवंबर को कहा था कि खान संविधान के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य हैं।