विश्व स्तर पर 200 से अधिक स्वास्थ्य पत्रिकाओं ने एक समान संपादकीय प्रकाशित कर विश्व नेताओं तथा स्वास्थ्य पेशेवरों से इस बात को मानने का आह्वान किया है कि जलवायु परिवर्तन एवं जैव विविधता हृास एक गंभीर संकट है।’’
द लैंसेट, द ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे), जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (जेएएमए) और नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया सहित प्रमुख पत्रिकाओं के प्रधान संपादकों ने कहा कि स्वास्थ्य को बनाए रखने और तबाही से बचने के लिए समस्या से मिलकर निपटना चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से इस गंभीर संकट को वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने का आग्रह करते हुए लेखकों ने कहा कि जलवायु संकट और प्रकृति संकट को अलग-अलग चुनौतियां मानकर प्रतिक्रिया देना एक खतरनाक गलती है।
जलवायु संकट और जैव विविधता का नुकसान दोनों ही मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं और ये आपस में जुड़े हुए हैं। बीएमजे के प्रधान संपादक कामरान अब्बासी ने एक अलग बयान में कहा, जलवायु और प्रकृति वैज्ञानिकों तथा राजनीतिक नेताओं के लिए स्वास्थ्य और प्रकृति संकटों पर अलग-अलग विचार करने का कोई मतलब नहीं है।
संपादकों ने कहा कि बढ़ता तापमान, प्रतिकूल मौसम की घटनाएं, वायु प्रदूषण और संक्रामक रोगों का प्रसार जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर स्वास्थ्य खतरों में से कुछ हैं और इस प्रकार, जलवायु संकट तथा प्रकृति संकट दोनों से मानव स्वास्थ्य को सीधे नुकसान होता है।
उदाहरण के लिए, लेखकों ने कहा कि प्रदूषण पानी की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाकर और जल-जनित बीमारियों में वृद्धि का कारण बनकर, मानव स्वास्थ्य के लिए आवश्यक स्वच्छ पानी तक पहुंच को खतरे में डालता है।
उन्होंने समुद्र के अम्लीकरण का उदाहरण भी दिया जिससे समुद्री भोजन की गुणवत्ता और मात्रा कम हो गई है जिस पर अरबों लोग भोजन और अपनी आजीविका के लिए निर्भर हैं।
जैव विविधता के नुकसान पर लेखकों ने कहा कि इससे पोषण कमजोर होता है और प्रकृति से प्राप्त नयी दवाओं की खोज बाधित होती है।
दिसंबर 2022 के जैव विविधता सम्मेलन (सीओपी) में 2030 तक दुनिया की कम से कम 30 प्रतिशत भूमि, तटीय क्षेत्रों और महासागरों के संरक्षण और प्रबंधन पर सहमति व्यक्त की गई थी, लेकिन लेखकों ने उल्लेख किया कि जलवायु और प्रकृति वैज्ञानिकों द्वारा सीओपी के लिए दिए गए साक्ष्य काफी अलग हैं।
उन्होंने संपादकीय में कहा कि इनमें से कई प्रतिबद्धताएं पूरी नहीं हुई हैं।
संपादकों ने कहा, भले ही हम ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से कम रख सकें, फिर भी हम प्रकृति को नष्ट करके स्वास्थ्य को विनाशकारी नुकसान पहुंचा सकते हैं।