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किसानों को शीघ्र दिए जाएं आबादी के 07 प्रतिशत विकसित भूखंड: Dhirendra Singh

जेवर विधायक धीरेन्द्र सिंह ने यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी से मुलाकात कर, रबूपुरा व अनेकों ग्रामों के किसानों के आबादी के 07 प्रतिशत विकसित भूखंड न दिए जाने पर खेद व्यक्त किया। इस संबंध में जेवर विधायक धीरेन्द्र सिंह ने मुख्य कार्यपालक अधिकारी यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण को एक पत्र भी प्रेषित किया।
इस संबंध में जेवर विधायक धीरेंद्र सिंह ने यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के सीईओ अरुण वीर सिंह जी को भेजे गए पत्र का मजमून इस प्रकार है-सन् 2009 में, मेरा लडका 10 वर्ष का था और आज वह 25 साल का होने जा रहा है, क्योंकि वह किसान का बेटा है, इसलिए उसे उम्मीद थी कि प्राधिकरण द्वारा सन् 2009 में अधिग्रहित की गयी भूमि के सापेक्ष मिलने वाले 07 प्रतिशत विकसित भूखंड पर अपने जीवन यापन से संबंधित कोई कार्य कर लेगा, लेकिन 15 साल से भी ज्यादा होने के पश्चात प्राधिकरण द्वारा अभी तक रबूपुरा व अनेकों ग्रामों के उपरोक्त विकसित भूखंड किसानों को नही दिए गए हैं, जबकि जो जमीनें सन् 2014 में अधिग्रहित की गयी थी, वहां सैक्टर 28, 29, 32 व 33 आदि बना लिए गए है, जिन पर कई फैक्ट्रियां शुरू भी हो चुकी हैं। 
मेरे कहने का तात्पर्य आप समझ ही गए होंगे, जिन किसानों से जमीनें लेकर, इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास को तेजी से बढाया गया तथा अनेकों फैक्ट्रियां शुरू हो चुकी हैं, लेकिन जिसकी जमीन पर, वह फैक्ट्रियां शुरू हुई हैं, वह किसान और उसके बच्चे, आज भी इस आशा से प्राधिकरण की ओर निहार रहे हैं कि हम भी इस औद्योगिक विकास की गति के साथ कदम ताल करते हुए, अपने जीवन यापन का कोई जरिया बना पाएंगे।
आखिर प्राधिकरण के समक्ष, ऐसी कौन सी मजबूरी हैं, जो 15 वर्ष बाद भी अनेंकों ग्रामों के किसानों को, इस लाभ से महरूम रखा गया, वह कारण अगर मैं, जान पाऊँ तो, हो सकता है कि भविष्य में इस अनावश्यक विलंब से बचा जा सकता है। मुझे यह भी पता है कि प्राधिकरण की तरफ से इसका जबाव आएगा कि शीघ्र ही हम विकसित आबादी भूखंड वितरित करने जा रहे हैं। लेकिन विषय यह नही है, विषय यह है कि बाद में अधिग्रहित की गयी जमीन पर उद्योग धंधे चालू हो सकते हैं तो किसान के परिवार के जीवन यापन का एक मात्र जरिया, वह विकसित भूखंड, जिससे वह अपने भविष्य को संवार सकता था, ऐसी क्या मजबूरियां है, जो अभी तक उसका, यह अधिकार, उसे नही मिल पाया है। संवैधानिक रूप से जनप्रतिनिधि होने के नाते, मुझे सिर्फ ध्यान आकर्षित कराने का अधिकार मिला हुआ है, बाकी नीति निर्धारण और अंतिम निर्णय प्राधिकरणों का विशेष अधिकार है।
इस संबंध में जेवर विधायक धीरेन्द्र सिंह ने अपर मुख्य सचिव, औद्योगिक एवं अवस्थापना, उत्तर प्रदेश शासन, लखनऊ को भी एक पत्र प्रेषित करते हुए कहा कि आखिर ऐसी भी क्या मजबूरी है कि 15 वर्ष बाद भी प्राधिकरण, किसानों को आबादी के 07 प्रतिशत विकसित भूखंड नही दे पाई है, जो किसानों के बच्चों के जीवन यापन का जरिया बन सकते थे, जबकि सन् 2014 में अधिग्रहित की जमीनों पर आज फैक्ट्रियां शुरू हो चुकी हैं। इसलिए प्राधिकरणों को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जिससे किसान भी औद्यौगिक विकास के साथ कदम ताल मिलाकर चल सकें।”

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