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नरेला विधानसभा क्षेत्र हरियाणा बॉर्डर से सटा दिल्ली की नॉर्थ वेस्ट लोकसभा सीट का भाग है। ढाई दर्जन से अधिक गांव जबकि लगभग तीन दर्जन अवैध कॉलोनियां इस विधानसभा में हैं। इनके अलावा नरेला सबसिटी में DDA की बड़ी संख्या में नई पुरानी और हाउसिंग अपार्टमेंट भी इस विधानसभा का हिस्सा है, लेकिन अभी यहां की आबादी बेहद कम है। वहीं दूसरी तरफ नरेला की भौगोलिक दृष्टि से यहां की आबादी पिछले दो दशक में तीन गुना बढ़ गई है। इस विधानसभा में चुनावी जीत हार काफी हद तक ग्रामीण इलाकों और अवैध बस्तियों के वोटरों पर निर्भर करती है।
इस क्षेत्र के बड़े गांवों में लामपुर बांकनेर, खेड़ा कलां, खेड़ा खुर्द, घोगा, सिंघु, टीकरी खुर्द, अलीपुर, पल्ला-बख्तावरपुर, भोरगढ़, सन्नोठ शामिल हैं। इसी तरह इस क्षेत्र में DDA के बसाए रेजिडेंशल सेक्टर भी हैं, जो सुनियोजित तरीके से बने हैं। यहां स्वतंत्र नगर, नई बस्ती, त्रिवेणी कॉलोनी, पुनर्वास कॉलोनी में मेट्रो विहार फेज 1, 2, भीम कॉलोनी, टार्जन कॉलोनी, स्वर्ण जयंती विहार और ई-अनधिकृत कॉलोनियां भी हैं।
जाति समीकरण होगा बड़ा फैक्टर
नरेला का ग्रामीण इलाका होने और हरियाणा के अधिकांश हिस्से से लगे हुए होने के कारण यहां पर जाति समीकरण का फैक्टर सबसे अधिक है। साथ ही अब पुनर्वास कॉलोनी और पूर्वांचल का भी असर दिखने लगा है। यहां पिछले दो दशक से अधिक समय तक जाट फैक्टर सबसे हैवी रहा है। इसका स्वाद कांग्रेस और बीजेपी ने चखा है, लेकिन एक दशक पहले आई दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने यहां से बीएसपी में रहे शरद चौहान को टिकट देकर आम आदमी पार्टी के लिए एक अच्छी पकड़ बनाई है।
अगर हरियाणा के समीकरण को देखते हुए बीजेपी यहां से नॉन जाट की उम्मीदवार को तय करती है तो आने वाला मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला है। आम आदमी पार्टी की नई लिस्ट में नरेला से विधायक शरद चौहान का टिकट काट कर अब नए उम्मीदवार के रूप में अर्जुन अवार्ड विजेता, कबड्डी के पूर्व खिलाड़ी दिनेश भारद्वाज को पार्टी टिकट दी है, जो बांकनेर से निगम पार्षद भी है। उससे पहले दिनेश भारद्वाज कांग्रेस की टिकट पर निगम पार्षद का चुनाव लड़ चुके हैं। अब बीजेपी की टिकट पर नजरें होंगी।
जाने क्षेत्र के चुनावी मुद्दे
दिल्ली की नरेला विधानसभा सीट के अंदर करीब दो दशक से मेट्रो की मांग जारी है। हर चुनाव में यह चुनावी बड़ा मुद्दा बनता है। अतिक्रमण, सड़कों पर जाम और अनियमित तरीके से बस्ती जा रही अवैध कॉलोनियों की वजह से यहां पर संसाधन की कमी हो रही है और जनसंख्या विस्फोटक रूप से बढ़ रहा है। गांवों के अंदर गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था तक नहीं है। गांव के डिवेलपमेंट पर काम नहीं हो रहे हैं। हायर एजुकेशन की कमी, हॉस्पिटल के नाम पर सिर्फ एक अस्पताल जहां पर अधिक सुविधाएं तक नहीं है।
विधानसभा का राजनीतिक मिजाज
1993 से अब तक सात बार हुए विधानसभा चुनाव में यहां से तीन बार कांग्रेस ने बाजी मारी है जबकि दो-दो बार बीजेपी और आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है। दरअसल, इस इलाके में वोटर चुनाव के वक्त के माहौल के साथ ही जाते हैं। मसलन, 1993 में यहां बीजेपी ने जीत हासिल की तो उसके बाद शीला दीक्षित की अगुवाई में लगातार तीन बार कांग्रेस ने जीत हासिल की। इसके बाद 2013 में बीजेपी के नील दमन खत्री ने जीत का स्वाद चखा तो उसके बाद लगातार दो बार आम आदमी पार्टी के शरद चौहान ने जीत हासिल की।
पिछले दो विधानसभा चुनाव में लगातार आम आदमी पार्टी के शरद चौहान ने जीत हासिल की। हालांकि पिछली बार हुए चुनाव में आप के शरद चौहान और बीजेपी के नील दमन खत्री के बीच जीत हार का अंतर 25 फीसदी से कम होकर 11 फीसदी रह गया।