बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को एल्गार परिषद-माओवादी लिंक मामले में आरोपी 33 वर्षीय कार्यकर्ता महेश राउत को जमानत दे दी है। कोर्ट ने यह देखते हुए कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने उनके खिलाफ जिन सबूतों पर भरोसा किया, वे अफवाह थे और उनकी पुष्टि नहीं की गई थी। न्यायमूर्ति ए एस गडकरी और न्यायमूर्ति शर्मिला देशमुख की खंडपीठ ने कहा कि राउत को सीपीआई (माओवादी) का सदस्य कहा जा सकता है, लेकिन किसी भी गुप्त या प्रत्यक्ष आतंकवादी कृत्य के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है और एनआईए ने यह दिखाने के लिए कोई सबूत नहीं दिया है कि वह प्रतिबंधित संगठन में व्यक्तियों की भर्ती में शामिल थे।
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पीठ द्वारा अपना आदेश सुनाए जाने के बाद एनआईए की ओर से पेश विशेष लोक अभियोजक संदेश पाटिल ने इस पर दो सप्ताह के लिए रोक लगाने की मांग की। पीठ ने अपने आदेश के क्रियान्वयन पर एक सप्ताह के लिये रोक लगा दी। राउत को जून 2018 में गिरफ्तार किया गया था और वर्तमान में वह मुंबई के बाहरी इलाके तलोजा जेल में न्यायिक हिरासत में हैं। वर्तमान मामले में, अभियोगात्मक सामग्री किसी भी तरह से प्रथम दृष्टया यह निष्कर्ष नहीं निकालती है कि अपीलकर्ता (राउत) ने यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम) की धारा 15 के तहत विचार किए गए ‘आतंकवादी कृत्य’ को अंजाम दिया है या उसमें शामिल है।
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पीठ ने कहा कि अधिक से अधिक यह कहा जा सकता है कि राउत सीपीआई (माओवादी) का सदस्य था और इस पर केवल यूएपीए की धारा 13 और 38 के प्रावधान लागू होंगे। इसमें कहा गया है कि इन धाराओं के तहत अधिकतम सजा सात साल और दस साल है। अदालत ने कहा कि हमारे अनुसार, यह बताने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सामग्री नहीं है कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि अपीलकर्ता के खिलाफ यूएपीए की धारा 16, 17, 18, 20 और 39 के तहत आरोप प्रथम दृष्टया सच हैं। ये धाराएं भर्ती, आतंकवादी गतिविधियों के लिए सजा, आतंकवादी गतिविधि करने की साजिश, आतंकवादी समूह का सदस्य होने के लिए सजा और आतंकवादी समूह का समर्थन करने के लिए अपराध करने से संबंधित हैं।