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लखनऊ। उत्तर प्रदेश, जिसका पुलिस बल पूरी दुनिया में सबसे बड़ा एकल पुलिस बल माना जाता है। वो प्रदेश महीनों से कार्यवाहक डीजीपी के सहारे प्रदेशवासियों की सुरक्षा कर रहा है। ये आश्चर्य कि बात है कि क्यों योगी सरकार को स्थायी की जगह कार्यवाहक डीजीपी से काम चलाना पड़ रहा है। इतनी बड़े पुलिस बल के पास यदि कोई स्थायी डीजीपी नहीं हो तो निश्चित ही इससे पुलिस के कामकाज पर भी असर पड़ता है। पिछले 5 सालों में यूपी में पांच कार्यवाहक डीजीपी बने हैं।
हालांकि इस बीच कुछ अफसर डीजीपी भी बने और उन्हें रिटायरमेंट के बाद एक्सटेंशन भी मिला लेकिन ज्यादातर समय प्रदेश पुलिस कार्यवाहक डीजीपी के सहारे ही चलती नजर आई। सवाल यही है कि योगी सरकार को स्थायी डीजीपी क्यों नहीं मिल पा रहा है.इसको लेकर राजनीति भी हो रही है, तो कुछ जानकार इसे योगी सरकार की मजबूरी बता रहे हैं। ऐसे लोगों का कहना है कि डीजीपी के लिए कुछ जरूरी योग्यता का होना जरूरी, जिसे यूपी के पुलिस अधिकारी फुलफिल नहीं कर रहे हैं, इसी के चलते योगी को मजबूरी में कार्यवाहक डीजीपी से काम चलाना पड़ रहा है।
वहीं ऐसे लोगों की भी संख्या कम नहीं है जिनका कहना है कि कार्यवाहक डीजीपी किसी भी सरकार के लिये ज्यादा सहूलियत वाला रहता है। वह यदि सरकार के साथ नहीं चलता है तो उसको बदलने में कोई बवाल नहीं होता है, जबकि पूर्णकालिक डीजीपी को हटाये जाने से राजनैतिक बखेड़ा भी खड़ा हो जाता है।
बहरहाल,सब जानते हैं कि उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में पुलिस की भूमिका कितनी अहम है, काफी हद तक किसी भी सरकार की सफलता-असफलता का पैमाना भी पुलिस की मुस्तैदी से तय होता है, यदि अपराध बढ़ते हैं तो सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाती है। समाजवादी पार्टी हो या बहुजन समाज पार्टी अथवा भारतीय जनता पार्टी सभी के सत्तारूढ़ या सत्ताविहीन होने में प्रदेश की कानून व्यवस्था और अपराध के मुद्दे का सबसे ज्यादा योगदान रहा है।
यही कारण रहा कि भाजपा के सत्ता में आते ही 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद प्रदेश में कानून व्यवस्था और अपराध नियंत्रण को ध्यान में रखते हुए गृह विभाग अपने पास रखा था। मुख्यमंत्री के इस कदम का असर भी दिखा। सपा सरकार के मुकाबले योगी सरकार में प्रदेश की कानून व्यवस्था की स्थिति में काफी सुधार आया. प्रदेश में अपराधियों की धर-पकड़, एनकाउंटर और माफियाओं पर बुलडोजर एक्शन पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया। यूपी पुलिस ने पुलिसिंग और क्राइम कंट्रोल में कई झंडे गाड़े लेकिन इस बीच ये बात समझ से परे ही रही कि आखिर इतने महत्वपूर्ण प्रदेश में, जिसके सीएम तक की प्राथमिकता में पुलिस है, वहां फुल टाइम डीजीपी क्यों नहीं है?
पिछले 6 साल से अधिक के समय की सिलसिलेवार बात करें तो 16 अप्रैल 2017 को प्रदेश में जावीद अहमद को हटाकर सुलखान सिंह को डीजीपी बनाया गया था। सुलखान सिंह इसी साल सितंबर में रिटायर हो रहे थे, लेकिन रिटायरमेंट से पहले उन्हें 3 महीने का एक्सटेंशन दिया गया और उनका कार्यकाल 31 दिसंबर तक हो गया। दिसंबर में ही यूपी सरकार ने केंद्र को पैनल भेजा, जिसमें सीआईएसएफ के डीजी रहे ओपी सिंह का नाम सामने आया। ओपी सिंह की नियुक्ति में करीब 20 दिन का समय लग गया, तब तक एडीजी लॉ एंड ऑर्डर आनंद कुमार ने कार्यवाहक डीजीपी के तौर पर जिम्मेदारी संभाले रहे।
22 जनवरी 2018 को ओपी सिंह ने कार्यभार संभाला। ओपी सिंह यूपी में दो साल तक डीजीपी रहे, वह 31 जनवरी 2020 को रिटायर हुए। इसके बाद फिर से प्रदेश में डीजीपी की खोज शुरू हुई तब तक हितेश चंद्र अवस्थी को कार्यवाहक डीजीपी बना दिया गया। आखिरकार 4 मार्च को हितेश चंद्र अवस्थी ही फुल टाइम डीजीपी बने। वह भी करीब एक साल से ज्यादा इस पद पर रहे और 30 जून 2021 को रिटायर हो गए। फिर मुकुल गोयल नये डीजीपी बने, लेकिन साल भर बाद 11 मई 2022 को मुकुल गोयल को हटा दिया गया गया और वजह बताई गई गोयल कामकाज पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
इसके बाद 13 मई को देवेंद्र सिंह चौहान को कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया। धीरे-धीरे 2023 आ गया और मार्च में डीएस चौहान भी कार्यवाहक डीजीपी ही रहते हुए रिटायर हो गए। उनके रिटायरमेंट के बाद भी डीजीपी के लिए कोई उचित चेहरा नहीं मिला और आरके विश्वकर्मा को कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया। दो महीने बाद ही 31 मई 2023 को आरके विश्वकर्मा रिटायर हो गए तो एक जून 2023 को डीजी विजिलेंस विजय कुमार को कार्यवाहक डीजीपी बना दिया गया। वह दोनों पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
लब्बोलुआब यह है कि उत्तर प्रदेश ही नहीं किसी भी राज्य के लिए फुल टाइम डीजीपी नहीं होना अच्छा नहीं है। एक तो इससे पुलिस के मनोबल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है दूसरे पुलिस महकमें में सुधार का काम धीमा पड़ जाता है। डीजीपी के नहीं होने से या कार्यवाहक रूप से व्यवस्था चलाए जाने से इसका निचले स्तर तक असर पड़ता है।